सम्पादकीय

असर संपादकीय : कठिन समय में साहस-शांति की मशाल हैं बुद्ध के वचन…  

प्रह्लाद सिंह पटेल, केन्द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्रालय के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार )की कलम से

 

*बुद्ध पूर्णिमा पर सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं..!!* 

जब भी गौतम बुद्ध का नाम मेरे मस्तिष्क में आता है तो उनकी एक कहानी मुझे हमेशा याद  जाती है। किस्सा कुछ यूं है- एक बार वे अपने शिष्यों से संवाद कर रहे थे तभी गुस्से से भरा एक व्यक्ति आ गया और उन्हें ज़ोर-ज़ोर से अपशब्द कहने लगा। महात्मा बेहद शांत भाव से मुस्कुराते हुए सुनते रहे। बुद्ध तब तक उसे सुनते रहे जब तक वो थक नहीं गया। शिष्यवृंद क्रोध से भरा जा रहा था। वो व्यक्ति भी आश्चर्यचकित थाहारकर उसने बुद्ध से पूछा-मैं आपको इतने कटु वचन बोल रहा हूं लेकिन आपने एक बार भी जवाब नहीं दियाक्योंबुद्ध ने उसी शांत भाव से कहा- यदि तुम मुझे कुछ देना चाहो और मैं नहीं लूं तो वो सामान किसके पास रह जाएगाव्यक्ति ने कहा- निश्चय ही वो मेरे पास रह जाएगा। बुद्ध ने कहा- आपके अपशब्द किसके पास रह गएव्यक्ति गौतम के पैरों पर गिर पड़ा। यही बुद्ध की ताकत थी। यही बुद्धत्व का सार है। `क्षमा!संयम!त्याग!!मुझे लगता है इन्हीं बातों की आज सबसे ज्यादा जरूरत है।

 

आज बुद्ध पूर्णिमा है। उनके संदेश-शिक्षा के स्मरण का समय है। इसे सरकार `वैसाखः 2565 वीं इंटरनेशनल बुद्ध पूर्णिमा दिवसके रूप में आयोजित कर रही है। मुझे लगता है इतने कठिन समय में अपने प्रेरक जीवन और शिक्षा के साथ बुद्ध बहुत सामायिक हैं। उनका आदर्श जीवन उनकी शिक्षा हमें वो मार्ग दिखा सकती हैं जिन पर चलकर विपत्ति काल से बाहर निकला जा सकता है। मुश्किलों से संघर्ष किया जा सकता है। कोरोना के इस समय ने हमें हमारी महान संस्कृति के बहुत सारे बुनियादी पहलुओं पर लौटने पर विवश किया है। हमें यह भरोसा दिलाया है कि हमने सदियों तक जिस मानक जीवन की बात की हैजिन मूल्यों और संस्कारों को अपने जीवन में स्थापित करने का प्रयत्न किया हैवे कालातीत हैं। कठिनाई में उनकी प्रासंगिकता बार-बार स्थापित हुई है। आगे भी होती रहेगी। 

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हमने अपने जीवन में जिन मानवीय मूल्यों को अंगीकार किया हैपीढ़ी-दर-पीढ़ी निभाया है उसमें गौतम बुद्ध का योगदान अविस्मरणीय है। दीन-दुखियों से लेकर पशु-पक्षियों तक के प्रति हमारे भीतर करुणा और द्रवित हो जाने का जो भाव उत्पन्न होता हैमानवता के प्रति करुणालाचारों के प्रति नेह प्रकट होता हैइन बातों को मन-मस्तिष्क में स्थापित करने में बुद्ध के वचनों का बहुत बड़ा योगदान है। `हर दुःख के मूल में तृष्णाइस बेहद सहज से लगने वाले वाक्य के माध्यम से बुद्ध ने हमारे जीवन की सबसे महान व्यथा को पकड़ा है। हमारे जीवन की सबसे बड़ी पीड़ा को अनावृत किया है। यदि हम जीवन के हर कष्ट-पीड़ा-दुखों पर नज़र डालें तो मूल में एक ही बात मिलेगी-`तृष्णा या लालच`। गौतम बुद्ध बचपन से ही ऐसे प्रश्नों के उत्तर की तलाश में खोए रहते थे जिनका जवाब संत और महात्माओं के पास भी नहीं था। उनका स्पष्ट मत था कि सहेजने में नहीं बांटने में ही असली खुशियां छिपी हुई हैं। त्याग के साथ ही व्यक्ति का खुशियों की दिशा में सफ़र शुरू होता है। वे खु़द संसार को दुखमय देखकर राजपाट छोड़कर संन्यास के लिए जंगल निकल पड़े थे। 

परिवार का त्यागवैभव छोड़ना बहुत मुश्किल काम है। फिर राजसी वैभव की तो बात ही क्या है! लेकिन उन्होंने किया और इसी का संदेश भी दिया। सत्य की तलाश में आईं सैकड़ों अड़चनों के सामने वे इसी तरह से अविचल रहे। उनका संदेश `आत्मदीपो भवःयानी ख़ुद को प्रकाशित करना या जीतना ही सबसे बड़ी जीत है। यही अमृत वाक्य आज नफ़रत के बीच आपको सच्ची शांति दे सकता है।

  

वैशाख पूर्णिमा को बौद्ध धर्म के प्रवर्तक बुद्ध का जन्म हुआ थाइसलिए इसे बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह सिर्फ हमारे ही देश में नहीं मनाई जाती है बल्कि जापानकोरियाचीननेपालसिंगापुरवियतनामथाइलैंडकंबोडियामलेशियाश्रीलंकाम्यांमारइंडोनेशिया सहित कई देशों में इसे त्योहार रूप में मनाया जाता है। 

हमारे देश के बौद्ध तीर्थस्थलों बोधगयासारनाथकुशीनगरसांची के संरक्षण के लिए संस्कृति विभाग और एएसआई ने बहुत काम किया है। इन स्थानों पर पूरी दुनिया से बौद्ध अनुयायी आते हैं। यहां बुद्ध की शिक्षा के अलावा स्मारकों के अद्भुत स्थापत्य का भी अवलोकन किया जा सकता है। 

कुल मिलाकर यही कहूंगा कि बुद्ध पूर्णिमा के दिन यदि हम अपने जीवन में उनके संदेशों को उतारेंगे तो निश्चित ही जानिए बेहतर देशबेहतरीन दुनिया के साथ सबसे परिष्कृत मानव और मानवीय मूल्यों के सृजन करने में सक्षम होंगे। पुनश्चः आप सभी को बुद्ध पूर्णिमा की बहुत बधाइयां..!

 

Deepika Sharma

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