
रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी की कलम से…
लक्ष्मण जो कि शत्रुघ्न के जुड़वां भाई थे उनका बाल्य -अवस्था से ही अपने बड़े भ्राता श्रीराम के प्रति अत्यंत स्नेह व लगाव था। वे श्रीराम के हर प्रकार से प्रशंसक थे और उनका ही सदैव अनुसरण करते थे। श्रीराम उनके लिए इस तरह थे जैसे कि दो शरीरों में एक प्राण श्रीराम तो उनकी एक तरह से दूसरी ज़िन्दगी थे।श्रीराम भी लक्ष्मण के बिना एक पल नहीं रह सकते थे वे लक्ष्मण के बिना पलक तक भी नहीं झपकते थे और उनके बिना अकेले खाना भी नहीं खाते थे।
श्रीराम जब भी शिकार के लिए वन में जाते तो लक्ष्मण घोड़े पर सवार हो कर व तीर कमान के साथ लेकर उनके बिलकुल साथ ही रहते थे। ताकि उनकी सुरक्षा कर सके लक्ष्मण का श्रीराम के प्रति प्यार व स्नेह ही उनको उनके साथ वनवास में खींच कर ले गया।
लक्ष्मण का दशरथ प्रति क्रोध
जब लक्ष्मण को इस बात का पता चला कि उनके पिता ने श्रीराम का राजतिलक स्थगित कर दिया है और उनको आदेश दिया है कि वे तुरंत चौदह वर्षों के लिए वन की ओर प्रस्थान कर दें तो वे अत्यंत क्रोधित हो गये। उसी क्रोध में उन्होनें कैकेयी व दशरथ को अत्यंत बुरा भला सुनाया जिस बारे में वाल्मीकि रामायण में इस तरह से बताया गया है. (अयोध्या काण्ड सर्ग २१, शलोक २-३,८,९,१०,१२,१३,१४,१५ )
लक्ष्मण कहते है कि मुझे यह सब उचित प्रतीत नहीं हो रहा है कि श्रीराम अपनी राजगद्दी को त्याग कर वन में प्रस्थान कर जाएँ एक स्त्री के शब्दजाल में फँस कर काम-पिपासा का शिकार हो कर महाराज ने यह जो निर्णय लिया हैं। वह मात्र अपनी वासनायों को संतुष्ट करने के लिए हैं। हे भ्राता इससे पहले कि किसी भी व्यक्ति को इस बात का पता चले कि राजा ने श्रीराम को वन में भेज देने का अंतिम निर्णय ले लिया है आप शासन की बागडोर अपने हाथों में संभाल लें आप को गद्दी पर बिठाने के लिए मैं आप की सहायता के लिए तत्पर हूँ हाथों में धनुष-बाण ले कर आपके साथ म्रत्यु की भांति जब मैं आप के साथ रहूंगा तो ऐसे में किस में इतना साहस है कि वो आप से अधिक वीरता दिखा सके। हे भ्राता अगर आपके विरुद्ध सम्पूर्ण अयोध्या राज्य भी आ जाए
तो मैं समस्त अयोध्या को अपने नुकीले बाणों का प्रयोग कर के तहस -नहस कर दूंगा अगर कैकेयी को प्रसन्न करने हेतु व उसके उकसावे में आकर हमारे पिता शत्रु की भांति व्यवहार करेंगे तो मैं उनको बंदी बनाने से भी पीछे नहीं हटूंगा।
अगर कोई अनुचित तरीके से जोर-जबरदस्ती करे तो उसका विरोध करना पूर्णतया उचित होता है चाहे फिर वो पिता हो अथवा गुरु विशेषतया ऐसे में जब वे घमंड के नशे में चूर हो चुके हों और क्या सही है क्या गलत, इसमें वे अंतर करना ही बंद कर दें तथा बुराई के मार्ग पर चल चुके हों। हे भाई क्रप्या मुझे यह बताएं कि उनके पास ऐसी कौन सी शक्ति है जिसके बल पर वे कैकेयी के बेटे को सिंघासन सौंपना चाहते हैं जबकि अधिकार की अगर बात की जाए तो वो तो आपका ही बनता है वे किस अधिकार से भरत और आपके तथा साथ ही मेरे बीच में शत्रुता का बीज बो रहे हैं?
लक्ष्मण का श्री राम हेतु तर्क
लक्ष्मण यहीं पर ही शांत नहीं हो गये उन्होंंने अपनी बात कहने के लिय अनेकों तर्क दिय जिसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड के सर्ग २३ व शलोक
८,९,१०,१३,१४,१५,१६,१७,१८,१९ में इस प्रकार से किया गया है. लक्ष्मण कहते हैं कि यह अत्यंत ही हैरानी की बात है कि इन दोनों शैतानों (दशरथ व कैकेयी) के बारे में आपके मन में किसी प्रकार का भी शक नहीं हो रहा है? हे पवित्र श्रीराम क्या आपको मालूम नहीं कि लोग नेकी का लबादा पहने हुए भी होते हैं? यह सब इन दोनों की शरारत व षड्यंत्र का नतीजा ही था जो अपने स्वार्थ की खातिर वे अपना ही भला चाह रहे थे, और आप इतने नेक दिल के हो. आपको मालूम हो कि आपका राज्याभिषेक तो होना ही नहीं था। लेकिन अब जो भी हो रहा है वह प्रजा को कतई भी पसंद नहीं है।आपके इलावा किसी और का राज्याभिषेक हो ऐसा मैं तो बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं कर सकता। आप इस समय मेरी इस द्र्ष्टता को क्षमा करें इस समय आपके सिंघासन पर बैठने में जो दो वर देने की कहानी सुनाकर विघन डाला जा रहा है उस पर तो आपको भी विश्वास नहीं हो रहा हैमुझे तो अत्यंत दुःख भी हो रहा है कि इस तरह से आपकीआँखों में धूल झोंकी जा रही है। ये जो आप दयालुता व नेकी की बात कर रहें हैं अयोध्या के लोगों की नजरों में भी इसकी कोई कीमत नहीं है
मुझे तो यह बात ही नहीं समझ आ रही कि कोई भी अपने विचारों में भी इन दोनों शत्रुयों की इच्छा को क्यों नहीं भांप पा रहा है जो कि अपनी लालसा पूर्ती हेतु ऐसा काम कर रहे हैं और आप के विरुद्ध हो रहे हैं? माना कि ऐसा आपका सोचना है कि माता-पिता द्वारा लिया गया हुया ऐसा निर्णय भाग्य अनुसार हो रहा है।
फिर भी इस को न मानना और परे कर देना ही उचित होगा। भाग्य का लिया हुया ऐसा निर्णय मुझे बिल्कुल भी मान्य नहीं है ऐसा शख्स जो कि कायर हो और शक्तिविहीन हो वो ही भाग्य में विश्वास रखता है वीर पुरुष जिसका मन बलवान होता है कभी भी भाग्य की शरण में नहीं जाता। ऐसा पुरुष जिसमें अपने पुरुषार्थ के सामर्थ्य से ही अपना भाग्य बदल देने की ताकत व हिम्मत हो ऐसे ही भाग्य की वजह से अपने मार्ग से अलग नहीं हट जाते. लोग आज देखेंगे कि भाग्य व पुरुषार्थ में से कौन बलवान होता हैं इन दोनों में क्या अंतर है, आज ही सामने आ जाएगा।