विशेषसम्पादकीय

असर विशेष: ज्ञान गंगा” सुमंत्र – दशरथ का विश्वासपात्र”

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी की कलम से...

 

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी

राजा दशरथ को सुशासन में सहयोग देने के लिए कुल आठ ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, जो अपने अपने क्षेत्र में अत्यंत कुशल व विद्वान थे। सुमंत्र ऐसों में एक था जो अत्यंत निपुण व योग्य प्रशासक होने के साथ साथ राजा दशरथ के बहुत करीब था। राजा दशरथ को सुमंत्र पर इतना विश्वास था कि सुमंत्र एक तरह से उनके परिवार का ही सदस्य माना जाता था। सुमंत्र ने ही राजा दशरथ को यह परामर्श दिया था कि पुत्र प्राप्ति के लिए उन्हें यज्ञ करना चाहिए और उस के लिए ऋषि श्रंगी को बुलावा देना चाहिए। सुमंत्र को विशवास था कि अगर ऋषि श्रंगी इस यज्ञ को संपूरण करेंगे तो राजा दशरथ को अवश्य ही पुत्र प्राप्ति होगी।

सुमंत्र को श्री राम के साथ प्रारंभ से ही अत्यंत स्नेह था। श्रीराम को किसी तरह का कोई दुःख हो, इसकी सुमंत्र कल्पना भी नहीं कर सकते थे। जब कैकेयी के दो वर मांगने और फलस्वरूप वन में जाने का समाचार मिला तो सुमंत्र के क्रोध का कोई ठिकाना नहीं रहा। अपने आक्रोश को कैकेयी के प्रति प्रगट करने हेतु बिना कोई हिचकिचाहट दिखाते हुए सुमंत्र कैकेय के महल में चले गए और उसे खूब बुरी भली सुनायी।

उन्हें भली भांति मालूम था कि उस समय महल में राजा दशरथ के साथ कौशल्या व अन्य घर के सदस्य भी उपस्थित हैं। एक समय तो सुमंत्र को इतना गुस्सा आ गया कि वे कैकेयी को श्राप देने का सोचने लगे, लेकिन फिर अपने गुस्से पर काबू कर लिया।

जब श्रीराम के वन में जाने का समय आया तो राजा दशरथ ने सुमंत्र को यह विशेष दायित्व सौंपा कि सुमंत्र श्रीराम के साथ वन में जाएँ और इस बात का ख्याल रखें कि श्रीराम, लक्ष्मण और सीता को कोई तकलीफ न हो। राजा दशरथ ने यह भी अनुरोध किया कि सुमंत्र श्रीराम को मना कर वापिस लाने के प्रयास भी करते रहें। इसे वाल्मीकि रामायण में इस तरह से दर्शाया गया है।( अयोध्या काण्ड, सर्ग ३५, शलोक ५-७, ९,१०,११,१२,१३,१६,१७,२७,३०,३२ )

WhatsApp Image 2025-08-08 at 2.49.37 PM

सुमन्त्र कैकयी को सम्बोधित कर के कहते हैं कि हे रानी, इस पृथ्वी पर तुम्हारे लिए चाहने वाली कोई भी वस्तु नहीं है। तुम्हारे द्वारा तुम्हारे पति राजा दशरथ, जो कि समस्त सृष्टि (चल और अचल) का साथ देने वाले हैं, छले गए हैं। मैं तुम्हें अपने पति की हत्यारिन समझता हूँ। तुमने अपने कृत्यों से अपने पति ही नहीं बल्कि उनके पूरे वंश का सर्वनाश कर दिया है, ऐसे पति का जो राजा इंद्र समान अजेय, पर्वत समान मजबूत और समुन्दर समान शांत व ठहरा हुआ है। निस्संदेह एक राजा की मृत्यु होने पर उनका बड़ा पुत्र ही उनका उतराधिकारी होता है। तुमने इस पुरातन समय से चली आ रही प्रथा को इश्वाकू वंश के शासक के जीवित होते हुए ही तोड़ दिया है। तुम्हारा पुत्र भरत ताज संभाले और इस धरती पर शासन करे। हम सब वहीं जायेंगे जहाँ श्री राम जायेंगे। तुम्हारे शासन में एक भी ब्राह्मण नहीं रहेगा। अगर तुम इसी तरह का दुष्कर्म करने पर आमादा हो तो हम श्रीराम द्वारा चलने वाले मार्ग पर ही चलेंगे। ए शाही औरत, तुम्हें ऐसी सत्ता से किस तरह का सुख मिलेगा, जिसका साथ सभी नेक लोग, नाते-रिश्तेदार और ब्राह्मण छोड़ चुके होंगे? तुम ऐसा दुष्कर्म करने पर आमादा हो।

इस धरा पर ऐसा कौन होगा जो एक नीम के पेड़ को फलने देगा, वो नीम जिसके पत्ते और फल कडवे होते हैं, और कुल्हाड़ी से आम के वृक्ष को काट देगा? नीम के पेड़ को अगर दूध से भी सींचा जाये तब भी वह मीठा नहीं हो जायेगा। निस्संदेह में तुम्हारा यह कृत्य वैसा ही है जैसा कि तुम्हारी माँ का था। यह सूक्ति संसार में बहुधा कही जाती है कि नीम के पेड़ से शहद नहीं टपक सकता। दुर्जनों के बताये हुए मार्ग पर चलते हुए और चहुँ और बुराई को देखते हुए, तुम भी उसी तरह राजा को लालसा कारण कुमार्ग पर चलने के लिए कह रही हो. बुरे लोगों के उकसाने पर भी, अपने पति को – जो पति होने के साथ इस विश्व का सरंक्षक भी है, और शान शौक़त में इंद्र के समान है – गलत मार्ग पर चलने के लिए मत कहो। श्रीराम- जो सभी भाईयों में सबसे बड़े है- जो अत्यंत उदार, बलशाली होने के साथ धर्म का पालन भी करते हैं और क्षत्रिय के तौर पर न सिर्फ अपना कर्तव्य भली भांति निभाते हैं बल्कि सभी जीवित प्राणियों का सरंक्षण करने में भी समर्थ हैं- उन्हें ही अयोध्या की राजगद्दी पर बैठना चाहिए। ए शाही औरत, अगरश्रीराम अपने पिताश्री को छोड़ कर वन को प्रस्थान कर गए तो एक अत्यंत बुरी घटना तुम्हारे साथ घट जाएगी

Deepika Sharma

Related Articles

Back to top button
Close