असर सम्पादकीय: अस्पतालों में सम्मानहीन व्यवहार: संवाद की कमी से खतरे में मरीजों की सुरक्षा
डॉ राहुल की कलम से..

अस्पताल, जहाँ इंसान सबसे अधिक भरोसे और संवेदनशीलता के साथ इलाज की उम्मीद लेकर पहुँचता है, वहीं यदि संवाद में सम्मान न हो तो यही स्थान भय, तनाव और असुरक्षा का कारण बन सकता है। स्वास्थ्य सेवाओं में बढ़ता असम्मानजनक व्यवहार न केवल कार्यसंस्कृति को प्रभावित करता है, बल्कि मरीजों की सुरक्षा और उपचार की गुणवत्ता पर भी गहरा असर डालता है।
अध्ययनों से सामने आया है कि अपमानजनक व्यवहार के कारण मेडिकल त्रुटियाँ, प्रतिकूल घटनाएँ और मरीजों की जान तक को खतरा बढ़ जाता है। ऐसा व्यवहार झेलने वाले स्वास्थ्यकर्मियों में भय, क्रोध, आत्मग्लानि, भ्रम और अवसाद जैसी मानसिक स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं। इसके साथ-साथ अनिद्रा, थकान, मतली और उच्च रक्तचाप जैसी शारीरिक समस्याएँ भी देखने को मिलती हैं। इन परिस्थितियों में व्यक्ति की निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है और वह सवाल उठाने या अपनी शंका व्यक्त करने से कतराने लगता है।
मरीजों पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सम्मान की कमी मरीजों के आत्मविश्वास को तोड़ देती है, जिससे वे जरूरी जानकारी साझा करने या प्रश्न पूछने से हिचकिचाते हैं, जो उपचार प्रक्रिया के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।
स्वास्थ्य संस्थानों का तनावपूर्ण माहौल, व्यवस्था की कमियाँ और व्यक्तिगत दबाव अक्सर लोगों को “सर्वाइवल मोड” में धकेल देते हैं। जब यह स्थिति नियंत्रण से बाहर जाती है, तो वही असम्मानजनक व्यवहार का रूप ले लेती है। इसके पीछे असुरक्षा, चिंता, आक्रामकता और अहंकार जैसी मानसिक प्रवृत्तियाँ भी भूमिका निभाती हैं। साथ ही, अस्पतालों की पदानुक्रमित संरचना कई बार उच्च पदों पर बैठे लोगों को अधीनस्थों के प्रति असंवेदनशील बना देती है।
डॉक्टरों और मरीजों के बीच संवाद शैली का अंतर भी तनाव का कारण बनता है—जहाँ एक पक्ष को जानकारी अधिक लगती है, वहीं दूसरा स्वयं को अनसुना महसूस करता है।
आज के शिक्षित और जागरूक समाज में यह समय आत्ममंथन और सुधार का है। अस्पताल केवल उपचार केंद्र नहीं, बल्कि पीड़ित मानवता के लिए आश्रय स्थल हैं। ऐसे में सम्मानजनक संवाद और संवेदनशील व्यवहार को स्वास्थ्य सेवाओं की मूल भावना बनाया जाना ही समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।


