सम्पादकीय

भारी बरसात के कारण हो रहे जानमाल के नुकसान पर डॉ. दिनेश कुमार का वक्तव्य

"डॉ. दिनेश कुमार बोले – भागना नहीं, हिमाचल को बचाना होगा

भारी बारिश में हर दिन जान-माल का नुकसान, समाधान की राह दिखा रहे डॉ. दिनेश

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आखिर बरसात क्यों पड़ रही है भारी पर अपना वक्तव्य जारी कर डॉक्टर दिनेश कुमार पूर्व विशेष कार्य अधिकारी हिमाचल सरकार एवम् हिमाचल प्रदेश कांग्रेस पार्टी के पूर्व मीडिया को-ओरडीनेटर ने बताया कि जब से बरसात शुरू हुई है तो ऐसा कोई दिन नही छूट रहा जिस दिन कोई जान माल का नुकसान न हो , इसकी बजह क्या है, जिसे जाने बिना कोई सटीक हल नही निकाला जा सकता । उन्होने कहा कि हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला को ही ले ,गत वर्ष भयानक त्रासदी हुई और खतरे को देखकर उस समय कई स्थानीय लोग अपनी सम्पत्ति औने पौने दाम पर बेच कर नई जगह पर बसने के लिए उतावले दिखे लेकिन भागना समस्या का हल नही है अपनी राजधानी और अपने हिमाचल को बचाना है तो हमे और हमारी सरकार को समस्या पर गौर कर निवारण करना चाहिए। प्रथम समस्या का मूल तो व्यक्ति खुद है , जंगल व वस्तियो मे बृक्षो का अंधाधुंध कटान ने जमीनी मिट्टी की पकड़ को ढीला किया है और नजदीक की बस्तियों मे लैंड स्लाइड का कारण बना है वही दूसरी तरफ जनसंख्या विस्फोट के कारण शहरी व ग्रामीण दोनो प्रकार की बस्तियों मे लोग घर बनाने के लिए जगह न मिलने पर नदी, नालों के समीप बस कर ऐसी आपदाओं को निमंत्रण दे रहे है । यही नही मौजूद बस्तियों मे बरसात के कारण प्रत्येक मकान की जल निकासी की कोई उचित व्यवस्था नही है और जहां जल निकास के लिए नालिया बनी भी है तो उन्हें ढक कर मकान या दुकान की एक्सटेंशन बनी हुई है जो सीधा आपदा को निमंत्रण देती है इस पर सरकार , नगर निगम, नगर परिषद, नगर पालिका व ग्राम पंचायतों को गम्भीरता के साथ कार्य करना होगा क्योकि आज के इस वैज्ञानिक युग की आपदा प्राकृतिक कम (मैन मेड) मनुष्य की ज्यादा गलतियों का परिणाम है, जागरूकता के लिए लोकल एन जी ओज को युवक मंडल , महिला मंडल व अन्य ग्रामीण व शहरी सामाजिक संगठनों को प्रेरित करना चाहिए।डाक्टर दिनेश कुमार ने कहा यह सही है कि सड़को की पहुंच गांव की विकास की गाथा लिखती है , लेकिन सरकार निर्माण करने मे सावधानी बरते, भूमि कटाव व बृक्ष कटान कम से कम हो व अन्य वैकल्पिक तरीको से सड़क निर्माण वे चाहे स्थानीय स्तर का हो, जिला स्तर का हो, राज्य स्तर का हो या राष्ट्रीय स्तर का व अन्य डवलपमेंट कार्य हो आधुनिक तकनीकी बैज्ञानिक तरीके से ही किए जाए जिसमे कोई लापरवाही न हो । शिमला मे पांच मंजिल मकान का गिरना सबके सामने एक उदाहरण बना है और यह मानने वाली बात है कि जहां भी विकास किया जायेगा वहां जमीन, जंगल व जल भी प्रभावित होते है और उन्हें बचाने के लिए सटीक योजनाएं पहले बने न कि बस्तियां उजड़ने के बाद जिसमे जान और माल बुरे तरीके से प्रभावित होते है। सरकार को चाहिए कि विकास मे लोकल एरिया डवलपमेंट ऐजेंसी (लाडा ) की सक्रियता, भागीदारी व जबावदेही को सुनिश्चित करे तभी मैन मेड डिजास्टर के साथ साथ प्राकृतिक आपदा से भी बिना जान माल जोखिम मे डाले ‘स्मार्ट वर्क’ से किया जा सकता है ।

Deepika Sharma

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