सम्पादकीय

असर सम्पादकीय: कंगना जी के ठहाके और बेचारे “ठाकुर” साहब।

हिमाचल प्रदेश के नामी लेखक एस आर हरनोट की कलम से

काश! कि सरबजीत सिंह बॉबी के पास भी कैबिनेट होती….?

कंगना जी के ठहाके और बेचारे “ठाकुर” साहब।

शिमला के समाजसेवी बॉबी सरबजीत का नाम कौन नहीं जानता। बड़े बुजुर्ग तो जानते ही हैं पर स्कूल जाते नर्सरी के बच्चे भी उनके दीवाने हैं। अस्पतालों में कई सालों से वे मरीजों के लिए मुफ्त कैंटीन चला रहे हैं। भाजपा सरकार में उन पर खूब हमले हुए इस जनसेवा को बंद करने के लिए फिर न तो सरकार रही न कैंटीन बंद हुई। सुबह जब बच्चों की माएं उनको लंच बॉक्स पैक करती हैं तो वे पूछ लेते हैं कि अतिरिक्त चार रोटियां डाली आपने। ये रोटियां इन्हीं कैंटीनों में गरीब लोगों को इकट्ठी कर के जाती है। शिमला में जगह जगह रोटियों के लिए स्थान निर्धारित हैं जहां लोग रोज रोटियां और अन्य सामग्री देते हैं।

मैने कई बार बॉबी भाई को मरीजों को अपनी गाड़ी में अस्पताल ले जाते देखा है और कई बार किसी अनाथ, जरूरतमंद परिजनों के किसी अपने की डेड बॉडी श्मशान ले जाते। कोई भी कहीं से भी जब इन्हें पुकारता है तो बॉबी ईश्वर बन कर वहां प्रकट हो जाते हैं। मदद के लिए उनके पास कोई “कैबिनेट” नहीं है। ओहदा नहीं है। वे न मंत्री है, न विधायक और कंगना जी की तरह सांसद भी नहीं है। न उनके पास कमांडो है, परंतु उन जैसे ही कई लोग निस्वार्थ भाव से उनके साथ हैं। उन्हें जब कोई पुकारता है तो बॉबी खुद चले आते हैं।

इस समय मंडी के सराज इलाके में हुई त्रासदी के पीड़ितों को उनकी मदद के खूब चर्चे हैं। उन्हें एक अनजान मित्र फोन करते हैं। गुहार लगाते हैं कि वे बाड़ पीड़ियों की मदद के लिए आगे आएं ताकि सहायता उन लोगों के पास पहुंचे जिसे इसकी जरूरी है। वे आश्वासन देते हैं और उसी रात दो ट्रक राशन और कपड़ों के ट्रक मंडी नेर चौक पहुंच जाते हैं। अभी तक राशन से लदी दो गाड़ियों में लगभग 5500 किलो चावल, 2000 किलो दालें, 1500 कंबल, 600 मैट व बर्तन खरीदने के लिए पैसे शामिल हैं। 21000 रुपये शामिल हैं।

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बेचारी मंडी की सांसद अभिनेत्री कंगना रनौत पर बहुत तरस आता है। इतने दिनों बाद फुर्सत मिली अपने क्षेत्र में आने की। मीडिया ने पूछा तो अपनी लाचारी बयान कर दी कि उनके पास न तो कैबिनेट है, न ही शायद देने को कुछ। उनकी तो पंचायत जितनी पावर भी नहीं…. और उसी के साथ कई ठहाके….मंडी के या देश के लोगों ने जब देखा होगा, खुश हुए होंगे कि इतनी बड़ी अभिनेत्री और अब सांसद, कितनी गरीब हो गई है। उनकी बातों से लगा कि जल्दी ही उन्हें उनकी पंचायत B P L में न ले लें….?
और उनकी लाचारी और ठहाकों को, उनके साथ खड़े पूर्व मुख्य मंत्री जय राम जी किस तरह ले रहे थे वे तो वही बता सकेंगे। पर उन्हीं से कंगना जी कुछ सीख लेती कि बिना कैबिनेट के वे पिछले आठ दिनों से लाठी के सहारे किस तरह लोगों के बीच डटे हुए हैं।

कंगना जी इस बुरे वक्त में अपने कमाए धन से न सही, सांसद निधि से ही एक आध कम्बल, दो चार किलो आटा और दो ढाई सौ ग्राम दाल ही अपने बॉडी गार्ड के पास देकर पीड़ितों के पास जाती तो खुशी होती…?

इस समय सरकार के अतिरिक्त उन पीड़ितों को सरबजीत बॉबी, यू ट्यूबर युवा संजय चौहान, स्वर्णभूमि युवक मण्डल बगशाड़ बगशॉड़ आदि बहुत सी निस्वार्थ संस्थाओं की आवश्यकता है न कि सांत्वना, भाषणों और राजनीति की। उनके घर नहीं रहे, पशु नहीं, परिजन नहीं और न जमीनें। कंगना चाहती तो एक अपील करके अपने स्तर पर इतना पैसा इकट्ठा कर लेती की कई गांव फिर आबाद होने लगते….? पर मूलतः तो वे पहले अभिनेत्री हैं, इसलिए इसमें बुरा भी क्या कि उन्होंने आपदा पर थोड़ी बहुत हंसी ठिठोली कर ली।

सचमुच दुर्भाग्यपूर्ण है ये सब….पता नहीं मंडी के मतदाताओं को इन मंडी की बेटी के “आपदाओं पर लगाए ठहाके” कितने बहाए होंगे…..? उन्हें इस दुःख से उबरने की हिम्मत दे ईश्वर और ठाकुर साहब के दिल पर जो इनकी चोट लगी, उस दर्द से उबरने की हिम्मत।

 

Deepika Sharma

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