विशेषसम्पादकीय

कांग्रेस मुक्त भारत

कांग्रेस ख़त्म हो रही या लीडरशिप

ऐसे ही एक नारे के साथ बीजेपी ने 2014 के चुनावो में हुंकार भरी थी ! कांग्रेस की दस वर्षों की नीतियाँ चाहे वे कितनी ही जन कल्याणकारी क्यूँ न रहीं हों और आने वाली सरकारों को भी कमोबेश इन नीतियों का पालन देशहित के लिए मूलभुत रूप से ज़रूरी रहा हो फिर भी ऐसा क्या हुआ के कांग्रेस चुनाव दर चुनाव हाशिये पर सिमट कर रह गयी ! हालाँकि बीजेपी को मिले प्रचंड बहुमत की कहानी की पटकथा का आधार केवल कांग्रेस की नाकामियां मात्र नहीं थी इसके अलावा और कई कारण मसलन एक अच्छी खासी पूंजी का निवेश जिसका आंकड़ा शायद बीजेपी के पास भी न हो, धर्म सम्प्रदाय की अपराजित विधि और बागियों का सम्मान इत्यादि भावनात्मक संसाधन भी रहे !

बहरहाल 2014 का भारी जनमत तो शुरुआत भर थी सत्ता में आने के बाद बीजेपी ने साल दर साल अपने संगठन को मज़बूत किया ! अपनी नीतियों क्रमिक विकास और आम जनता के बीच अपने वर्चस्व को प्रचार प्रसार के माध्यम से स्पष्ट किया ! एक नयी परम्परा का प्रारंभ हुआ जिसके अनुरूप धरातल पर भले ही नीतियों अथवा नेताओं की भागीदारी सिमित हो पर सुचना प्रसार के माध्यमों पर चमकदार होनी चाहिए ! साधारण जीवन उच्च विचार की विरासत वाला राष्ट्र एक नैतिक हीनता की कसौटी वाली संचार सिधांत की चकाचौंध की भेंट चढ़ गया !

WhatsApp Image 2025-08-08 at 2.49.37 PM

वर्तमान में आये नतीजों में साफ़ हुआ है के बीजेपी ने आम जनता का भरोसा जीता है पर वहीँ कांग्रेस के प्रति इतनी उदासीनता जिसका  अवलोकन शायद अभी भी कांग्रेस की कल्पनाओं से परे है ! क्या कांग्रेस आज भी उसी घिसे पिटे नियम पर चल रही है जिसके अनुसार सिर्फ नाम तत्व की महिमा का गान चाहे वो पुरानी पार्टी का हो या किसी महान नेता का जनता को लुभाने के लिए काफी है खासकर जब के उनके सबसे बड़े प्रतिध्वंधी के पास सबसे बड़ा राम का नाम हो ! जनता की नब्ज़ टटोलने में कांग्रेस की विफलता यह प्रमाण है के आज भी कांग्रेस एक चाटुकारिता और अवसरवादी नेताओं से भरे वातावरण में कार्य कर रही है और एक आम कार्यकर्ता या आम जन की भावनाओं की परिधि से बाहर है ! एक नए विचारों से युक्त नेता और विचारधारा का उद्गम किसी भी संगठन के लिए संजीवनी से कम नहीं परन्तु उसके लिए रुढियों का उन्मूलन आवश्यक है ! मुद्दों के विषय पर भी बात हो तो कांग्रेस पिछड़ी नजर आती है उदाह्र्ण स्वरुप यदि पुरानी पेंशन जिसे कभी देश हित में राजकोषीय घाटे और सरकारी क्षेत्र में सेवाओं के स्तर को देखते हुए सुधारा गया था उसे स्वार्थ वश दोबारा लागु कर केन्द्रीय सत्ता का स्वप्न देखना विशेषकर ऐसे देश में जहाँ 90 प्रतिशत जनता असंगठित क्षेत्र से सम्बन्ध रखती हो हास्यस्पद है ! जिस कांग्रेस के नेता कार्यकर्ता आजादी से पूर्व ताड़ी घर के बाहर खड़े हो कर लोगो को शराब पिने से रोकते उसके मुख्यमंत्री आज अपनी शराब नीतियों के फायदे गिनाते फिरते हैं ! प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में सिवाय केन्द्रीय विद्यालयों और नवोदयों को छोड़ राष्ट्र के कोने कोने से आने वाले वांछित वर्ग के बच्चों को राज्य शिक्षा बोर्डों के भरोसे छोड़ देना जो केवल कोष परिव्यय का जरिया बन चुके हैं जिसका अनुमान सरकारी क्षेत्र में प्राथमिक शिक्षा के स्तर को देख आसानी से लगाया जा सकता है और दुर्भाग्यवश यथास्थिति अभी भी बरकरार है परन्तु प्रारम्भिक भूमिका कांग्रेस की ही रही है !

आम जनता से वास्तविक मुद्दों पर जुड़ना भारत जोड़ो यात्रा जैसे प्रपंच तक सिमित न रह कर बल्कि गाँव कस्बों में जा कर उनके समुदायों से आने वाले लोगों के साथ मेलमिलाप कर उन्हें पार्टी में एक सशक्त कार्यकर्ता के रूप में जोड़ कर उनकी समस्याओं और सुझावों को सुन कर सरकार के समक्ष रखना ! सुनवाई न होने पर आन्दोलन जनहित के लिए जो केवल सत्ताधारी पार्टी पर कटाक्ष तक सिमित न हो ! चमचों चाटुकारों और मूंह पर बढाई करने वाले और अपना काम निकलवाने वालों से दूरी कांग्रेस के लिए वरदान सिद्ध  हो सकती है ! कांग्रेस मुक्त भारत निस्संदेह एक जुमला है क्यूंकि कांग्रेस का जन्म ही एक राष्ट्र को अपनी पहचान दिलाने के लिए हुआ था जिसका नाम भारत है और जब तक कोई भी देश हित में सोचेगा कांग्रेस जीवित रहेगी एक सच्चे कार्यकर्त्ता के रूप में जब तक के कोई  अहंकार रूपी राक्षस इसे न निगल ले !

असर न्यूज़ टीम

Deepika Sharma

Related Articles

Back to top button
Close