सम्पादकीय

असर संपादकीय: अम्बेडकर के नाम पर राजनीति बंद होनी चाहिए

मामराज पुंडीर की कलम से.

संविधान पर चर्चा के दौरान राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने एक घंटा चालीस मिनट का एक भाषण दिया । इस भाषण में उन्होंने कांग्रेस पर तंज किया कि अम्बेडकर-अम्बेडकर चिल्लाना एक फ़ैशन बन गया है। उन्होंने कहा कि इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक का स्वर्ग मिल जाता । इसके बाद उन्होंने कहा कि आप लोग अम्बेडकर का नाम लेते हो, हमें इसका आनंद है लेकिन आप लोग जो उनके प्रति भाव रखते हो, वो मैं आपको बताता हूं। इसके बाद उन्होंने बताया कि कैसे कांग्रेस ने बाबा साहब का उनके जीवन और उनके महानिर्वाण के बाद उनका अपमान किया है। इस भाषण के कई घंटों बाद कांग्रेस की मीडिया टीम ने इस भाषण की सिर्फ 12 सेकंड की एक वीडियो क्लिप सोशल मीडिया में जारी कर दी और आरोप लगाया कि अमित शाह ने बाबा साहब का अपमान किया है। कितनी अजीब बात है कि विपक्ष के सांसदों के सामने अमित शाह ने डेढ़ घंटे से ज्यादा देर तक अपना भाषण दिया लेकिन किसी भी नेता को यह अहसास तब नहीं हुआ कि अमित शाह ने बाबा साहब का अपमान किया है। जब कई घंटे बाद किसी व्यक्ति ने बताया कि अमित शाह के भाषण का 12 सेकंड का ये अंश राजनीतिक फायदा दे सकता है तो उसका इस्तेमाल शुरू कर दिया गया ।

वास्तव में यह सच है कि उस क्लिप को देखने से ऐसा लगता है कि अमित शाह बाबा साहब का अपमान कर रहे हैं। अमित शाह सही बोल रहे थे लेकिन उनके बोलने का तरीका गलत था । उनकी इसी गलती का कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल फायदा उठाना चाहते हैं। अमित शाह की यह बात सही नहीं है कि अम्बेडकर की जगह भगवान का नाम लिया होता तो सात जन्मों का स्वर्ग मिल जाता। मेरा मानना है कि न सिर्फ अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी इस बात को समझ चुके हैं बल्कि पूरी भाजपा को यह समझ आ गया है कि उनसे बड़ी गलती हो गई है। मैं यह नहीं मान सकता कि अमित शाह बाबा साहब का अपमान करने की नीयत से ऐसा बोल गए हैं बल्कि भाषण की निरंतरता में बह कर उनसे यह गलती हो गई। वर्तमान भारतीय राजनीति का सच यह है कि कोई भी नेता और राजनीतिक दल बाबा साहब का अपमान करने की सोच भी नहीं सकता क्योंकि वो जानता है कि इस देश का दलित-आदिवासी और पिछड़ा समाज बाबा साहब का अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकता । बाबा साहब का अपमान करना अपनी राजनीतिक जड़े खोदने के बराबर है।

विपक्ष ने मुद्दे को लपक लिया है तो भाजपा सतर्क हो गई है। उसे पता है कि ये बहुत संवेदनशील मुद्दा है, इसे हल्के में लेना घातक साबित हो सकता है । मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने पांच ट्वीट करके कांग्रेस पर हमला किया है। इसके अलावा अपनी बात रखने के लिए खुद अमित शाह प्रेस के सामने आए और उनके साथ कई मंत्री भी सामने आए। अमित शाह ने मीडिया से कहा कि वो जनता को पूरा वीडियो देखने को कहे । कांग्रेस झूठ फैला रही है, मैं कभी सपने में भी बाबा साहब का अपमान नहीं कर सकता । एक कहावत है कि दूध का जला, छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है, यह कहावत भाजपा पर चरितार्थ हो रही है। भाजपा पिछले लोकसभा चुनाव में अमित शाह और मोदी जी के भाषणों में फेरबदल करके बनाये गए वीडियो से नुकसान उठा चुकी है । 2015 में संघ प्रमुख भागवत के आरक्षण की समीक्षा वाले बयान का नुकसान भाजपा ने बिहार विधानसभा चुनाव में उठाया था। भाजपा नहीं चाहती कि इस क्लिप को वायरल करके विपक्ष उसे बाबा साहब का विरोधी साबित करने में सफल हो जाये।

दूसरी तरफ भाजपा यह भी जानती है कि विपक्ष भाषण का गलत इस्तेमाल कर रहा है इसलिये वो इस मुद्दे पर रक्षात्मक होने की जगह कांग्रेस पर आक्रामक है। वो यह नहीं कह रही है कि उससे गलती हो गई है बल्कि वो कह रही है कि वो तो बाबा साहब का बहुत सम्मान करती है और इसके लिए वो बाबा साहब के लिए किये गए अपने कामों को गिना रही है। भाजपा देश को बता रही है कि कांग्रेस ने बाबा साहब का कितना अपमान किया है। नेहरू जी और इंदिरा जी ने खुद को ही भारत रत्न दे दिया था। राजीव गांधी की मौत के सिर्फ दो महीने बाद उन्हें भी भारत रत्न दे दिया गया था। जो कांग्रेस बाबा साहब को भगवान बनाने में लगी हुई है, उसकी सत्ता जाने के बाद बनी वीपी सिंह की सरकार ने बाबा साहब को भारत रत्न दिया था । इस सरकार को भाजपा बाहर से समर्थन दे रही थी। इस सवाल का जवाब आज तक कांग्रेस ने नहीं दिया है कि वो बाबा साहब को भारत रत्न के काबिल क्यों नहीं समझती थी । इसके अलावा भी बाबा साहब का अपमान नेहरू सरकार के दौरान कई बार हुआ था। बाबा साहब को मंत्री के रूप में काम नहीं करने दिया गया तो उन्होंने मंत्रिपद से त्यागपत्र दे दिया था। उनके जाने के बाद उनके परिवार के साथ भी कांग्रेस ने बहुत गलत व्यवहार किया था। नेहरू जी ने बाबा साहिब के त्यागपत्र पर कहा था कि इनके जाने से कोई फर्क नही पड़ेगा।

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मेरा मानना है कि पक्ष और विपक्ष इस मुद्दे पर सिर्फ राजनीति कर रहे हैं, उन्हें बाबा साहब के मान-सम्मान से कोई लेना देना नहीं है। आज भारतीय राजनीति में दलित, संविधान,आरक्षण और अम्बेडकर बहुत ही सवेंदनशील मुद्दा बन चुके हैं। हर राजनीतिक पार्टी इन पर बहुत सोच समझ कर बोलती है। दलित और पिछड़ों के लिए संविधान, आरक्षण और बाबा साहब बहुत संवेदनशील मुद्दा है इसलिये सभी राजनीतिक दल उन्हें लुभाने के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं। आजकल तो विपक्ष संविधान को सिर पर उठाकर घूम रहा है लेकिन कई काम संविधान विरोधी कर रहा है। वास्तव में न सिर्फ राजनीतिक दल और नेता बल्कि दलित नेता और दलित संगठन भी बाबा साहब को भगवान बनाने की कोशिश में वर्षों से लगे हुए हैं। दलित बुद्धिजीवी वर्ग भी बाबा साहब को दलितों का भगवान बनाने के अभियान में शामिल हैं। ये सभी दलित हितों के लिए ऐसा कर रहे हैं, मुझे ऐसा नहीं लगता है। वास्तव में सभी अपने-अपने हितों की पूर्ति के लिए इस अभियान में शामिल हैं।

जिस कांग्रेस ने बाबा साहब को न सिर्फ भारत रत्न के काबिल नहीं समझा बल्कि उन्हें और भी कोई राष्ट्रीय सम्मान नहीं दिया, वही कांग्रेस आज कह रही है कि बाबा साहब हमारे लिए भगवान हैं। बाबा साहब हिंदुत्व के सख्त विरोधी थे इसलिए संघ शुरु से उनके खिलाफ रहा है। आज उसकी राजनीतिक शाखा भाजपा भी बाबा साहब को भगवान बनाने पर तुली है। सवाल उठता है कि जो लोग कभी अम्बेडकर विरोधी थे, वही लोग आज बाबा साहब को भगवान क्यों बनाना चाहते हैं। उनके विचारों पर चलने की बात कहीं खो गयी है क्योंकि उन पर चलना आसान नहीं है। किसी महापुरुष को भगवान बनाने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि उसके विचारों पर चिंतन बंद कर दिया जाता है । संविधान को धार्मिक ग्रन्थ बनाने की कोशिश की जा रही है इसलिए उसे बदलने का डर दिखाया जा रहा है। संविधान में तो लगातार बदलाव हो रहे हैं तो वो कैसे ग्रन्थ बन गया।

आज संघ और भाजपा अम्बेडकर का सम्मान इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें समझ आ गया है कि वो हिन्दू धर्म के विरोधी नहीं थे बल्कि हिन्दू धर्म की बुराइयों के विरोधी थे । कांग्रेस को समझ आ गया है कि नेहरू और गांधी के नाम पर आगे राजनीति नहीं की जा सकती इसलिए वो भी बाबा साहब पर अधिकार जता रही है। कितनी अजीब बात है कि जिस नेता को एक सांसद बनने से रोका जाता था,आज उसी नेता को सभी राजनीतिक दल देश का भगवान घोषित करने पर तुले हुए हैं। बाबा साहब को संविधान सभा में आने से रोका गया, सांसद बनने से रोका गया, मंत्री बनने से रोका गया और फिर इसके बाद काम करने से रोका गया। बाबा साहब को उनकी काबलियत के अनुसार काम करने का मौका नहीं दिया गया। कांग्रेस ने 1990 तक बाबा साहब की तस्वीर संसद के सेंट्रल हाल में नहीं लगने दी । आज बाबा साहब के अपमान के नाम पर सिर्फ राजनीति हो रही है।

अमित शाह के भाषण की 12 सेकंड की विडियो क्लिप से साबित किया जा रहा है कि वो अम्बेडकर विरोधी हैं क्योंकि भाजपा भी ऐसा काम कांग्रेस के साथ कर चुकी है । राहुल गांधी के भाषणों में से क्लिप बनाकर उनका कई बार मजाक उड़ाया गया है। ये कहना बहुत मुश्किल है कि वर्तमान राजनीति में कौन अम्बेडकर विरोधी है और कौन उनका समर्थक है । वास्तव में बाबा साहब के नाम को सभी राजनीतिक दल अपने राजनीतिक हितों के लिए इस्तेमाल करते हैं। जहां तक प्रधानमंत्री मोदी जी की बात है तो उन्होंने ही अम्बेडकर जी से सम्बंधित 5 स्थानों को पंच तीर्थ घोषित करके विकसित किया है। इसके अलावा मोदी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का सबसे ज्यादा दलितों और पिछड़ों को मिला है ।
हैरानी की बात है जिन बाबा को कांग्रेस सहित कई पार्टियों ने चुनाव में मिल कर हराने के प्रयास किया, जिन्होंने 1990 तक यानि आजादी के 43 वषों बाद तक भी बाबा साहिब को भारत रत्न सम्मान देने के लिए उचित नही समझा। आज वही लोग बाबा साहिब द्वारा लिखे सविधान की प्रति को सिर पर उठाए घूम रहे हैं। भारत को जनता जाग चुकी है और हैरान करने वाला विषय तब सामने आता है जब बाबा जी जिस देश से जातिवाद को खत्म करना चाहते थे, उसी देश मे कई राजनीतिक पार्टी समाज को जातियों में बांट कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकना चाहती है। इसलिए सभी राजनीतिक दलों से निवेदन है कि
बाबा साहब के नाम पर हो रही राजनीति बंद होनी चाहिए। क्योंकि हम जाग चुके हैं

Deepika Sharma

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