हैरानी : शिक्षा क्षेत्र के लिए ये कैसा बजट?
अखिल भारतीय माध्यमिक शिक्षक महासंघ के कार्यकारी अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान ने प्रेस वार्ता कर भारत सरकार के द्वारा 2024 25 के बजट पर चर्चा की प्रेस वार्ता का आयोजन शिमला में किया गया

अखिल भारतीय माध्यमिक शिक्षक महासंघ के कार्यकारी अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान ने प्रेस वार्ता कर भारत सरकार के द्वारा 2024 25 के बजट पर चर्चा की प्रेस वार्ता का आयोजन शिमला में किया गया जिसमें हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ के महासचिव तिलकनायक और स्पोक्समैन मनोज शर्मा , तारा चंद शर्मा,दीप राम शर्मा और सूरज नायक उपस्थित रहे।
प्रैस वार्ता के दौरान अखिल भारतीय माध्यमिक शिक्षक महासंघ के कार्यकारी अध्यक्ष ने 19 जुलाई को अखिल भारतीय शिक्षक महासंघ के अध्यक्ष श्री रणवीर सिंह ढिल्लों जी के निधन पर अशोक व्यक्त किया और उन्हें पूरे भारतवर्ष के शिक्षको और कर्मचारी की तरफ से श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि रणवीर सिंह ढिल्लों ने पूरे जीवन में कर्मचारी और शिक्षक वर्ग की समस्याओं को उठाने में अहम रोल अदा किया और कई बार सरकारों से टकराते रहे और कई बार उन्हें यातनाएं भी सहनी पड़ी इसलिए रणवीर सिंह ढिल्लों जी का नाम कर्मचारी इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा
प्रेस वार्ता के दौरान चौहान ने भारत सरकार ने हाल ही में जो 48. 21 लाख करोड़ का बजट अनुमोदित किया है जिसमें शिक्षा के क्षेत्र में 1.48 लाख करोड रुपए का बजट निहित किया गया है उस पर अपनी प्रतिक्रिया दी शिक्षा के ऊपर जो बजट निहित किया गया है वह केवल कुल जीडीपी का 3.06% बजट है जबकि कोठारी कमीशन और नेशनल एजुकेशन पॉलिसी में भारत सरकार ने 6% जीडीपी के बजट को शिक्षा पर खर्च करने की बात कही है इससे पहले पिछले वर्ष 2023 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी आश्वासन दिया था कि हम शिक्षा के क्षेत्र में जीडीपी के 6% तक के खर्च को बढ़ाने की आगामी बजट में कोशिश करेंगे यह उन्होंने अपनी प्रतिबद्धता दोहराई थी लेकिन पिछली साल के कुल बजट के 2.9% बजट को केवल 3.06% तक ही बढ़ाने में मोदी सरकार समर्थ रही जो की शिक्षा के क्षेत्र के लिए काफी नहीं है शिक्षा , रोज़गार और स्किल एजुकेशन जो की व्यक्तित्व निर्माण के लिए बहुत महत्वपूर्ण है उस क्षेत्र में मात्र 1.48 लाख करोड़ रुपए का बजट सुंयोजित करना काफी नहीं है इससे भारत सरकार की शिक्षा के प्रति अपनी वचनबद्धता का पता चलता है कि भारत सरकार शिक्षा के प्रति कितनी गंभीर है।
आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो शिक्षा पर खर्च करने में विश्व में भारत का 176 व रैंक है जिसे यह साबित होता है कि भारत शिक्षा के क्षेत्र में बाकी देशों की तुलना में बहुत पीछे है
चौहान ने कहा यदि एक छोटा सा देश नॉर्वे 6.6 प्रतिशत जीडीपी का खर्च बहन कर विश्व में पहला स्थान प्राप्त कर सकता है और चिली, इसराइल ,ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देश 6% और उससे अधिक की दर से शिक्षा के ऊपर अपने बजट का खर्च करते हैं तो भारतवर्ष इस दिशा में इतना पीछे क्यों है हमें इस दिशा में बजट की एलोकेशन को बढ़ाकर शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है एक आंकड़ों के हिसाब से 2011 में देश के अंदर 61% अनइंप्लॉयमेंट दर थी जो की 2024 में घटने के बजाय बढ़कर 64% हो गई है जो की एक चिंता का विषय है इसलिए एजुकेशन , रोज़गार और स्किल एजुकेशन के ऊपर भारत सरकार को बजट प्रोविजन में वृद्धि कर इस दिशा में और प्रयास करने की आवश्यकता है जो कि मोदी सरकार के वचनबद्धता के ऊपर प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है देश के शिक्षा मंत्री एवं प्रधानमंत्री को इस दिशा में वास्तव में प्रभावशाली कदम उठाने की आवश्यकता है अखिल भारतीय माध्यमिक शिक्षक महासंघ ने समय-समय पर इस दिशा में भारत के शिक्षा मंत्री एवं प्रधानमंत्री को ज्ञापन देकर अपनी चिंता जाहिर की है।
चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर्मचारी और मध्यम वर्ग के उत्थान की बात करते हैं और बार-बार कहते हैं कि कर्मचारी और मध्यम वर्ग को बजट में भारी राहत देने की बात की गई है जबकि वास्तविकता इसके विपरीत है इससे पहले कर्मचारियों के लिए टैक्स वसूली के लिए ओल्ड टैक्स पैटर्न था जो की 2020 में टैक्स की अदायगी के लिए न्यू टैक्स पैटर्न मोदी सरकार के द्वारा लाया गया जिसमें कर्मचारियों को ज्यादा नुकसान हुआ सरकार ने पुराने टैक्स पैटर्न में लगभग जो पहले से 68 तरह की डिडक्शंस और रिलीफ मिलते थे जिसमें मुख्यता कर्मचारियों की सेविंग, इंश्योरेंस, बच्चों की एजुकेशन पर किया जाने वाला खर्चा, होम लोन , डिसेबिलिटी या अन्य कई तरह की डिडक्शंस का प्रावधान रखा गया था उसमें वृद्धि करने के बजाय उसे समाप्त करने की कोशिश है और उसकी जगह नए टैक्स फार्मूले को लाकर कर्मचारियों की कमर तोड़ दी है इसमें ग्रॉस इनकम के ऊपर मात्र 50000 की स्टैंडर्ड डिडक्शन रखी गई थी जिसमें केवल मात्र इस बार 25000 की वृद्धि की गई है और किसी तरह का कोई फायदा कर्मचारियों को नहीं दिया गया इससे अच्छा पिछली बार के बजट में कर्मचारियों को टैक्स में ढाई लाख के बजाय टैक्स लिमिट 3 लाख कर दी गई थी जिसे 50000 इनकम को टैक्स से फ्री कर दिया था इस बार वही 3 लाख तक की इनकम को टैक्स की दायरे से बाहर रखा गया है इसमें किसी तरह का बदलाव नहीं हुआ जबकि कम से कम 5 लाख तक की इनकम कर्मचारियों की टैक्स के दायरे से बाहर होनी चाहिएथी क्योंकि आज के महंगाई के इस दौर में 5लाख़ बहुत छोटी सी रकम है जिससे कोई भी व्यक्ति अपना और अपने परिवार का ननिर्वाह नहीं कर सकता है इस बार के बजट में जो सरकार के द्वारा बात की जा रही है कि 17500 तक की अतिरिक्त राहत कर्मचारियों को दी गई है वह एक दिखावा मात्र है जबकि वास्तविकता यह है कि यह 17500 की रिबेट उन कर्मचारियों को मिलेगी जिनकी आय 15 लाख से अधिक है जिन कर्मचारियों की आय 7 लाख से कम है और वह 5% के टैक्स स्लैब में आते हैं उन कर्मचारियों को केवल 6250 का फायदा होगा और जिन कर्मचारियों की आयत 10 लाख तक है और वह 10% के टैक्स स्लैब में आते हैं उनको इस बार 7500 का फायदा होगा जबकि पिछली बार के बजट में इन्हें 15000 का फायदा हुआ था जिन कर्मचारियों की आय 12 लाख तक है वह 15% के स्लैब में आते हैं उन कर्मचारियों को 13750 का फायदा होगा जबकि पिछली बार इन कर्मचारियों को पिछले बजट में 25000 तक का फायदा हुआ था उसके अगला वर्ग जो 15 लाख की इनकम तक है और वह 20% के स्लैब में है उन कर्मचारियों को इस बार 15000 का फायदा इस नेट टैक्स से होगा जबकि पिछली बार के बजट में उन्हें ₹37500 तक का फायदा हुआ था तो इस तरह से जो इस वित्त वर्ष में टैक्स में कर्मचारियों को राहत मिली है वह अपने आप में एक बहुत ही परेशान करने वाली और कर्मचारियों का शोषण क्या किए जाने वाली घटना है क्योंकि पिछले 10 सालों से कर्मचारियों को किसी भी तरह की बड़ी राहत टैक्स में नहीं मिली है भारतवर्ष का कर्मचारी जो मध्यम वर्ग से संबंधित है अपने आप को शोषित और प्रताड़ित महसूस कर रहा है ।
चौहान ने कहा कि वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री को मध्यम वर्ग के उत्थान के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है और इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाए जाएं और कम से कम 5 लाख तक की आय को टैक्स के दायरे से बाहर किया जाए साथ ही महंगाई भत्ते की भी कम से कम 6% की अदायगी जुलाई माह में की जाए
चौहान ने कहा कि हमारा संगठन शिक्षा के क्षेत्र में किसी तरह के प्राइवेटाइजेशन के खिलाफ है और हमने हर स्तर पर इसका विरोध किया है स्वास्थ्य और शिक्षा दो ऐसे क्षेत्र है जिसमें सरकार को किसी तरह का एक्सपेरिमेंट नहीं करना चाहिए इस पर बजट प्रोविजन में भी वृद्धि करने की आवश्यकता है पीपीपी मोड में स्कूलों को चलाई जाने के केंद्र और प्रदेशों की सरकारों के प्रयास का महासंघ विरोध करता है और इसे किसी भी सूरत में नहीं होने दिया जाएगा क्योंकि इससे देश और प्रदेश के अंदर ठेकेदारी प्रथा शुरू हो जाएगी और जिससे अभिभावको, बच्चों और शिक्षकों का उत्पीड़न होना शुरू हो जाएगा और देश उन्नति के बजाय पतन की तरफ जाएगा साथ ही गरीबी और अमीरी के बीच से एक खाई भी बढ़ जाएगी जिससे गरीब बच्चों को बड़े-बड़े स्कूलों में पढ़ने का अवसर प्राप्त नहीं होगा और उनको अच्छी और बेहतर शिक्षा के अवसर प्राप्त नहीं हो




