विशेष

असर विशेष: जब जीते जी प्रण लिया अपनी “देह दान “का

डॉ रमेश की कलम से…

 

शिमला में “देह-दान” का अनूठा उदाहरण पेश हुआ …
शिमला के पूर्व महापौर श्री संजय चौहान जी की पूज्य माता जी ने जीते जी प्रण लिया था कि उनका शरीर उनकी मृत्यु के बाद आई जी एम सी शिमला को मेडिकल छात्रों को पढ़ाई व शोध के लिये दान किया जाए ….
और उनकी मृत्यु के तुरंत बाद पूरे सम्मान के साथ पूरे परिवार के सदस्यों ने अपने पूरे साथियों व समाज के सामने यह देह दान कर इस पुण्य महान आत्मा की शुद्ध इच्छा का सम्मान करते हुए पूरे संसार के सामने एक मिसाल कायम कर दी ….
ऐसा नहीं है कि पहले देह दान हुआ नहीं, हुये भी, मरने वाले की इच्छा से भी हुए… उनकी इच्छा और परिस्थितियां भिन्न-भिन्न होती हैं, कोई अकेले ही होते हैं जिनका आगे पीछे कोई नहीं होता, कोई रोकने वाला नहीं होता…
हमने देखा है मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई के लिये डेड बॉडी मिलती ही नहीं या मिलती भी है तो गली सड़ी अन्क्लेमड
लावारिस लाशें या शरीर के टूटे फूटे अंग पढ़ाई के लिये मिल पाते हैं …
मैं लगभग 40 वर्ष आई जी एम सी से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में जुड़ा रहा..
मेरे पास भी सैकड़ों लोगों ने देह दान के लिये सीधे संपर्क किया, इच्छा जाहिर की, फॉर्म भी भरे, इसका बाकायदा देह दान कार्ड बनाकर ताउम्र मरने तक अपने सीने से भी लगा कर रखा पर अंत में उनके मरने के बाद उनकी यह हार्दिक इच्छा कभी पूरी ना हो सकी क्योंकि हमारे संस्कार, रीति-रिवाज, मिथ्यायें,आत्मा-परमात्मा, गंगा हरिद्वार सब आड़े आ जाते हैं …
समाज ताने देता है बच्चे परिवार इनका अंतिम संस्कार नहीं करना चाहते और ये आत्मा भटकी रहेगी, पाप होगा…
कई बार,कई तरह की भावनायें आड़े आती हैं और परिवार चाहते हुये भी यह बड़ा कदम नहीं उठा पाते और मृत शरीर के अंतिम संस्कार के साथ-साथ उस देह दान कार्ड और उसकी पवित्र इच्छा का भी अंतिम संस्कार कर दिया जाता है …
मैंने कई बार आई जी एम सी से कुछ रिस्तेदारों को, कुछ दिनों बाद भी देह दान की हुई डेड बॉडी को वापिस उठाते हुये देखा है अंतिम संस्कार के लिए..
सारे परिवार व रिस्तेदारों में कहीं न कहीं वैचारिक मतभेद रहता ही है, इस कारण से भी यह संभव नहीं हो पाता..
श्री संजय चौहान जी से मेरे व्यक्तिगत दोस्ताना संबंध हैं बहुत बड़े दिल वाले हैं बहुत वरिष्ठ राजनेता हैं, समाज सेवी हैं, चौबीसों घंटे पूरा परिवार सबके सुख दुःख में सहयोग को खड़ा रहता है!
यह सब संस्कार इन्हें अपनी जननी अपनी पूज्य माता से ही मिलें हैं जिन्होंने माता-पिता दोनों का ही रोल निभा कर कर इन्हें संस्कारी बनाया…..
संजय जी आप ने सबको सारे परिवार को साथ लेकर पूरे विश्व को यह उदाहरण देकर नयी राह दिखाई..माता जी की आखिरी इच्छा का सम्मान किया, आप सभी परिवार जनों को साधुवाद और दिल से सलाम

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Deepika Sharma

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