राजधानी के एक बड़े सरकारी अस्पताल से चिकित्सक द्वारा आपातकाल में आये एक मरीज़ को लिखी गयी दवा जिसे अस्पताल के बाहर एक निजी केमिस्ट से खरीदने पर एक अनूठा मामला सामने आया है ! मरीज़ के दवा का पत्ता खोलने पर कैप्सूल छूते ही फटने लगे जिसका मरीज़ द्वारा विडियो भी बनाया गया और बार बार ऐसा होने पर दवा लौटा दी गयी और केमिस्ट द्वारा पैसे भी लौटा दिए गए! मामला दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल शिमला का है ! आपातकाल में दिखाने गया मरीज़ अतिसार और बदहजमी से पीड़ित था ! मरीज़ को कुछ दवाएं अस्पताल के अन्दर ही उपलब्ध करवा दी गयीं जबकि कुछ दवाओं को बाहर से लेने के लिए कहा गया ! मरीज़ का कहना है जब उसने पहला कैप्सूल खोला तो वह फट गया और उसे लगा के शायद उसने ग़लत तरीके से खोला पर जब बार बार एस हुआ तो उसने इसका विडियो बनाया और फोटो भी खींच ली ! दवा के एक पत्ते की कीमत 187 रूपये थी ! मरीज़ ने केमिस्ट से संपर्क किया और केमिस्ट ने पैसे लौटा दिए !
गौर करने वाली बात है के किसी भी दवा की गोली तथा कैप्सूल को अनुद्रव्यों की सहायता से इस तरह शोध कर बनाया जाता है के वे पेट के अम्लीय तथा आंतों के क्षारीय माध्यम के अनुरूप होतीं है और एक ख़ास समय अवधि में आवश्यकता अनुसार अवशोषित होती है और मलोत्सर्ग से शरीर से बाहर हो जाती है ! ऐसे में कैप्सूल का पत्ते से निकलते ही एक सूक्ष्म स्पर्श से फटना और बार बार ऐसा होना अपने आप में संदेहजनक है ! घटनाक्रम में एक सक्षम केमिस्ट की भूमिका भी सवालों के घेरे में आती है के क्या ऐसी घटनाएँ सिर्फ जानकारी के अभाव का नतीजा है या इच्छानुरूप ऐसा हो रहा है ! भारत में ऐसे बहुत से निरंतर चिकित्सीय कार्यक्रम होते रहते हैं जिनमें ऐसे पहलुओं पर विचार किया जाता है ! कंपनियां भी विभिन्न माध्यमों से गुणवत्ता का प्रचार करती हैं और उत्तमता सुनिश्चित भी करती हैं ऐसे में ऐसे वृतांत दुर्भाग्यपूर्ण हैं ! एक दवा का रोग उपचार के साथ साथ निम्न साइड्स इफेक्ट्स का भरोसा भी इनकी गुणवत्ता पर ही टिका होता है !