जीना दूभर मरना आसान क्यों है
हैरत में हैं सब फिर भी ख़ामोश क्यों
रात तो रात दिन भी वीरान क्यों है
रोज मिलता था कल तक जो बार-बार
वो जा रहा बगल से अनजान क्यों है
माथे पर शिकन आंखें ख़ौफ़जदा क्यों
आदमी इतना भी परेशान क्यों है
कब्र अपनी ही खोदने में लगा आज
कमबख्त दिख रहा इतना नादान क्यों है
डॉ एम डी सिंह
महाराजगंज गाजीपुर उत्तर प्रदेश