निजी स्कूलों द्वारा फीस वृद्धि का हिमाचल में उग्र विरोध

हिमाचल प्रदेश में स्कूल खुलने के उपरांत निजी स्कूलों के द्वारा नई फीस नीति अपनायी जा रही है। इस नीति के तहत इन निजी स्कूलों ने प्रायोगिक तौर पर किसी से भी परामर्श किए बिना ही नए शिक्षा सत्र में एकतरफा फैसला लेते हुए अभिभावकों से बढे हुए दर से फीस लेने भी शुरू कर दिए हैं। सोमवार 22-03-2021 को निजी स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष के द्वारा एक सोची-समझी रणनीति के तहत किये गए प्रेस कॉन्फ्रेंस के उपरांत इन निजी स्कूलों के मालिकों ने नए सत्र में ट्यूशन फीस और एनुअल चार्जेज बढ़ाने का फैसला लिया है। यदि ये निजी स्कूल एकतरफा फीस वृद्धि का फैसला नहीं बदलते हैं तो हिमाचल प्रदेश अभिभावक संघ पुरज़ोर तरीके से विरोध करेगा।
इस सम्बन्ध में हमारा अभिभावक संघ यह कहना चाहता है कि हमारा देश कल्याणकारी राष्ट्र होने के नाते शिक्षा एक मौलिक मानव अधिकार के रूप में दर्जा प्राप्त करता है और मौलिक अधिकार के क्षेत्र में लाभ पर ध्यान न हो कर लोक कल्याण, समाज सेवा बिना किसी लाभ-हानि का क्षेत्र माना जाता है। हमारा यह भी मानना है कि देश के कानून के पालन करते हुए किसी भी निजी स्कूल संस्थान को कोई वित्तीय नुक्सान ना हो। परन्तु यह शिक्षण संस्थान के प्रशासक शिक्षा के मंदिर को घोर व्यापर के केंद्र भी तो ना बनायें। शिक्षण संसथान सदैव उच्च लाभ के लिए भी नहीं होता है। इन निजी स्कूलों को शिक्षा नियामक कानून का पालन करने में भी किसी तरह के कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। यदि होती है, तो ऐसी क्या मज़बूरी है, जो ये निजी शिक्षण संस्थान के प्रशासक इस शिक्षा नियामक कानून का विरोध कर रहे हैं ! ? ऐसा है तो इनकी मंशा क्या है ? आखिरकार हमारे देश के कानून सब पर लागू होना चाहिए।
इस सन्दर्भ में हमारा यह भी मानना है कि हमारी प्रचलित नयी सामाजिक व्यवस्था के कारण भी इन निजी स्कूलों का बोलबाला बढ़ा हैं। यद्यपि अधिकतर लोगों के आय का साधन सीमित होने के बावजूद भी एक आम नागरिक अपनी भविष्य की पीढ़ी के उज्जवल भविष्य के आस में अच्छी और उन्नत शिक्षा के लिए जैसे-तैसे इन्हें अपने घर एवं गांव से दूर निजी स्कूल में पढ़ने के लिए भेजते हैं। परन्तु समय के चक्र में आज के दौर में ऐसे अभिभावकों की संख्या भी कम नहीं हैं। जिन्होंने अपने बच्चों के स्कूल बैग नौवीं-दसवीं कक्षा तक पूर्व काल के लगभग शत-प्रतिशत सरकारी स्कुल के दौर के विपरीत इन तथाकथित अंग्रेजी स्कुल में पढाई के लिए अपने बच्चों की अच्छी पढाई और इस प्रतिस्पर्धी विश्व व्यवस्था में संभावित रोज़गार के लिए ढोए हैं। परन्तु इन निजी स्कूलों के पास ना तो विशेष रोज़गार उन्मुख योजना या अलग से ऐसी कोई शिक्षा व्यवस्था है और न ही ऐसा कोई तंत्र जो चुम्बकीये तरीके से रोज़गार दिला पाए। निजी स्कूलों में पढ़ कर निकलने वाले चंद अभागे विद्यार्थिंयों को विद्यार्थी काल के उपरांत गृहस्थ काल के प्रवेश तक भी इन अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ने के बावजूद भी कोई रोज़गार नहीं मिल पाता हैं। ऐसे नौजवानों की संख्या बहुत ही कम हैं जो अपने गांव के परिवेश में बहुत जल्द घुल-मिल पातें हैं। इन को विद्यार्थी काल के निजी स्कूलों की गढ़ी गई दिनचर्या या आदतों के बजह गांव की संस्कृति, वोली और परिवेश समझने में समय लगता है। जिससे ये निजी स्कूलों में पढ़-लिख कर निकले हुए बच्चे अपनी पुश्तैनी धरती से अपनी आजीविका हासिल कर सकें।
अतः हम हिमाचल प्रदेश अभिभावक संघ शिमला कार्यकारिणी के सदस्य क्रमशः रमेश कुमार ठाकुर-अध्यक्ष, आचार्य सी एल शर्मा-सचिव, हरी शंकर तिवारी-सलाहकार , डॉक्टर संजय पांडेय-मुख्य संरक्षक, कुुलदीप सिंह -कोषध्यक्ष, जीतेन्द्र यादव-उपाध्यक्ष, श्रीमती कुसुम शर्मा , श्री हमिंदर धौटा ,श्रीमती रीता चौहान, मति प्रतिभा, श्सुरेश, श्रीमती हेमा राठौर, ज्ञान , अम्बिर सहजटा एवं कर्यकारिणी के अन्य सदस्य एक स्वर से मांग करते है कि हमारे हिमाचल प्रदेश की लोकप्रिय सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करें और अतिशीघ्र इन निजी स्कूलों पर न केवल निर्भरता कम करें बल्कि इनके हाल ही में उजागर हुए फ़र्ज़ी प्रमाण पत्र जैसे मामले और कई अनियमितता एवं सरकारी स्कूलों को वास्तविक सशक्तता देने के लिए निजी स्कुल फीस नियामक जैसे ठोस कानून अतिशीघ्र हमारे प्रदेश के प्रजातंत्र के मंदिर में अतिशीघ्र पास करके न केवल लागु करें बल्कि हमारे प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था, हमारे प्रदेश की साक्षरता दर की तर्ज पर नई शिक्षा नीति 2020 का पूर्ण लाभ प्राप्त करते हुए सभी केंद्रीय नियुक्तियों में भागीदारी बढ़ा सके और शीर्ष राज्यों में स्थान हासिल कर सकें।



