
बच्चों की मुफ़्त पाठ्यपुस्तकों का खर्चा भी नहीं दे पा रहा शिक्षा विभाग
…तो क्या मुफ्त पाठयपुस्तकों की भरपाई भी परीक्षा सम्बन्धी शुल्क से करेगा शिक्षा बोर्ड ..
हिमाचल में स्कूली बच्चों को निशुल्क पाठ्यपुस्तकें देने की योजना पर सवाल खड़े होने लगे है ।हैरानी है कि शिक्षा विभाग ,स्कूल शिक्षा बोर्ड को पुस्तकें की छपाई की राशि की अदायगी भी नहीं कर पाया है । ये अदायगी भी हजारों में नहीं करनी है, बल्कि लगभग अस्सी करोड़ की अदायगी शिक्षा विभाग को बोर्ड को करनी है ।
कई बार बोर्ड ने शिक्षा विभाग को रिमाइंडर दे दिया है हालाकि बीते कुछ समय पहले लगभग पंद्रह करोड़ की अदायगी शिक्षा विभाग ने बोर्ड को की है लेकिन राशि इतनी ज़्यादा है कि इसकी भरपाई बोर्ड को भी करनी मुश्किल हो रही है।
अब हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा माध्यमिक कक्षाओं के सभी तथा नवी एवं दसवीं कक्षाओं के आरक्षित वर्ग को निःशुल्क पाठयपुस्तकों को दिया तो जा रहा हैं परंतु यदि इसकी करोड़ो की अदायगी शिक्षा विभाग के ऊपर है तो इसका दबाव बोर्ड पर सीधा पड़ रहा है ।
अब शिक्षा बोर्ड की कमाई ये है कि वह शुल्क को बढ़ाय अब इस शुल्क का भार बच्चों पर पड़ना स्वाभाविक है
बीते तीन वित्तीय वर्ष में हिमाचल शिक्षा बोर्ड द्वारा छापी गई मुफ्त पाठयपुस्तकों के लगभग अस्सी करोड़ों रुपए शिक्षा विभाग द्वारा बोर्ड को नहीं दिए गए हैं अतः जिस गति से बोर्ड द्वारा परीक्षाओं संबंधी शुल्क को एक साथ दो गुना बढ़ाया जा रहा हैं उस से लगता हैं कि बोर्ड शायद इन मुफ्त पाठयपुस्तकों की भरपाई परीक्षा के संचालन से करना चाहता हैं। गौर हो कि लगभग तीन वित्तीय वर्ष से ये पैसा लंबित है ।
गौरतलब हैं कि बोर्ड द्वारा 21 मार्च 2025 को जारी अधिसूचना में जहां पुनर्मूल्यांकन तथा पुनर्निरीक्षण के शुल्क को शतप्रतिशत बढ़ा कर दोगुना कर दिया गया वही अब मात्र दस दिन बाद दो अप्रैल को जारी अधिसूचना में परीक्षा केंद्रों की शॉर्ट कैंडिडेट फीस अर्थात कम विद्यार्थी शुल्क को भी दोगुना बढ़ा कर 150 रुपए से 300 रुपए कर दिया गया है हालाकि बोर्ड का मानना है कि ये देरी करनवालों पर सख्ती बरती गई है
अर्थार्थ संबंधित विद्यालयों पर देरी से शुल्क जमा करने पर अभूतपूर्व विलंब शुल्क लगाया गया हैं जिसका सीधा प्रभाव छोटे छोटे विद्यालयों पर पड़ेगा, ओर आश्चर्य की बात यह हैं कि बढ़े हुए इस विद्यार्थी शुल्क को पूर्व तिथि से लागू किया जा रहा हैं जिसकी भरपाई कर पाना सम्बन्धित विद्यालयों के लिए असंभव हैं क्योंकि विद्यालयों में ऐसा कोई शुल्क नहीं होता तथा अधिकतर विद्यालयों द्वारा यह शुल्क परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों से ही वसूला जाता हैं और अब क्योंकि परीक्षाएं समाप्त होने के बाद अधिसूचना जारी की गई हैं तो यह बकाया शुल्क संबंधित विद्यालयों के प्रमुखों को ही वहन करना होगा। शिक्षक संगठनों द्वारा आरोप लगाए जाते हैं कि जबकि शिक्षा बोर्ड द्वारा परीक्षा संचालन एवं मूल्यांकन संबंधी कार्यों हेतु शिक्षकों के मानदेय में मात्र 10% से 15% तक की वृद्धि भी वषों बाद की जाती हैं वहीं विभिन्न शुल्कों में अचानक हुई 100% तक को वृद्धि और वह भी पूर्व तिथि से गलत हैं जिसे बोर्ड द्वारा वापिस लिया जाना चाहिए। साथ ही आरोप यह भी हैं कि जहां विगत वर्षों में परीक्षा संचालन का मानदेय परीक्षाओं के दौरान ही दिया जाता रहा हैं वहीं इस वर्ष परीक्षा के उपरांत भी इस मानदेय को बोर्ड द्वारा जारी नहीं किया गया हैं क्योंकि बोर्ड को लंबे समय से कोई स्थाई अध्यक्ष नहीं मिल पाया हैं अतः अभूतपूर्व शुल्क वृद्धि की इन अधिसूचनाओं को नौकरशाही की निरंकुश कार्यप्रणाली का परिणाम भी माना जा रहा हैं।
विगत वर्ष शिक्षा बोर्ड द्वारा परीक्षा केंद्रों से शॉर्ट कैंडिडेट शुल्क मात्र 150 रुपए की दर से भी करोड़ रुपए लिया जाना था जो अब बढ़ कर दोगुना हो जाएगा साथ ही विलंब शुल्क तथा मार्च 2025 हेतु बनाए गए नए परीक्षा केंद्रों से वसूला जाने वाला शुल्क अतिरिक्त हैं। विद्यालय प्रवक्ता संघ जिला सिरमौर के अध्यक्ष सुरेंद्र पुंडीर ने कहा हैं कि सचिव शिक्षा बोर्ड से इस शुल्क को कम करने तथा इस अधिसूचना से पूर्व आयोजित हुई मार्च 2025 की परीक्षाओं से न वसूले जाने का निवेदन किया गया हैं जिस संबंध में अभी तक शिक्षा सचिव महोदय से जांच करने का आश्वासन मिला हैं पुंडीर ने यह भी कहा कि यदि यह शुल्क पूर्व में आयोजित परीक्षा संचालन हेतु भी लिया जाता हैं तथा इसे कम नहीं किया गया तो इसका विपरीत प्रभाव संबंधित विद्यालय पर पड़ेगा तथा उचित परीक्षा संचालन करने वाले अधिकतर विद्यालयों द्वारा परीक्षा केंद्रों को बंद करना पड़ेगा।



