हरिपुरधार में आयोजित हुई अभूतपूर्व साहित्यक संगोष्ठी

जिला सिरमौर उच्च शिक्षा उपनिदेशक डॉक्टर हिमेंद्र बाली की पुस्तक ” हिमाचल प्रदेश का सांस्कृतिक इतिहास” पर चर्चा हेतु मां भंगानी मंदिर हरीपुरधार में जिला सिरमौर के साहित्यकारों एवं टिप्पणीकारों द्वारा एक साहित्यक संगोष्ठी आयोजित की गई। इस संगोष्ठी में उपनिदेशक उच्च शिक्षा डॉक्टर हिमेंद्र बाली तथा मंदिर के मुख्य पुरोहित हरिंदर शर्मा के अतिरिक्त दो साहित्य टीकाकारों डॉ दलीप वशिष्ठ,डॉ आई डी राही एवं पहाड़ी साहित्य एवं इतिहास की परख रखने वाले साहित्यकार सुनील शर्मा,नरेंद्र छींटा, आलोक कुमार, सीता राम शर्मा, आत्मा राम, गुमान सिंह चौहान, बाल राज भलूनी, प्रधानाचार्य भवाई सुरेंद्र पाल, लाल सिंह ठाकुर प्रवक्ता, धर्म पाल भंडारी, देव राज कन्याल, अनिल चौहान,अश्वनी कुमार, चेतन शर्मा, अशोक ठाकुर तथा नरेश कुमार सहित दर्जनों शिक्षकों ने भाग लिया । प्रवक्ता संघ राज्य चेयरमैन सुरेंद्र पुंडीर ने इस संगोष्ठी में समन्वयक की भूमिका अदा की। साहितकारों ने जहां डॉक्टर बाली द्वारा रचित इस छठी पुस्तक की भूरी -भूरी प्रशंसा कि वहीं टीकाकारों ने विषय संरचना, सार्थकता, भाषा शैली एवं प्रतियोगी परीक्षा तथा शोध कार्य हेतु उपयोगिता जैसे विभिन्न मापदंडों के आधार पर पुस्तक का विश्लेषण किया । संभवतः इस क्षेत्र में इस प्रकार का यह पहला प्रयास है जिसकी पूरे क्षेत्र में चर्चा हो रही है । मंदिर के मुख्य पुजारी महंत हरिंदर शर्मा ने बताया कि मातारानी के दरबार में आयोजित इस अभूतपूर्व संगोष्ठी का निश्चित रूप से शिक्षा जगत एवं समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। प्रवक्ता संघ चेयरमैन श्री सुरेंद्र पुंडीर ने सुझाव दिया कि जिला के सभी क्षेत्रों में इस प्रकार की संगोष्ठियों का आयोजन किया जाना चाहिए तथा शिक्षा जगत के इस नवाचार का विस्तार हो एवं हिमाचल की सांस्कृतिक विरासत को संजोने एवं संवारने वाले पहाड़ी साहितकारों को एक मंच पर लाया जा सके। लगभग सात घंटे तक चली इस संगोष्ठी में साहित्य एवं संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर मंथन हुआ तथा कुछ प्रसिद्ध कवियों अनंत आलोक नरेंद्र छींटा आत्मा राम तथा सीता राम आदि ने जहां कविता पाठ किया वहीं गुमान सिंह चौहान ने धार्मिक साहित्य के सकारात्मक विश्लेषण पर जोर दिया। डॉक्टर बाली ने अपने संबोधन में शिक्षकों को साहित्य लिखने तथा विद्यार्थियों को शोध कार्य हेतु प्रेरित करने का आह्वान किया। साहित्य टीकाकार दलीप वशिष्ठ ने जहां पुस्तक की उपयोगिता पर प्रकाश डाला वही डॉक्टर आई डी राही ने ऐतिहासिक साहित्य को अधिक लोकप्रिय बनाने हेतु संबंधित तालिकाओं, चित्रों एवं मानचित्रों को पुस्तक में जोड़ने का सुझाव दिया।


