

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी
बाली की मृत्यु उपरान्त सुग्रीव ने राज-पाट संभाल लिया और फिर वो आनंद व मौज-मस्ती में अपना समय बिताने लग गया। कुछ समय के पश्चात वो इस बात को भी भूल गया कि उसने श्रीराम के साथ यह वायदा किया था कि वो सीता को खोजने में उनकी मदद करेगा। उधर श्रीराम का मन भी विचलित होने लग पड़ा और वो स्वंय को हताश व दुखी महसूस करने लगे। लक्ष्मण से उनकी ऐसी अवस्था देखी नहीं गयी। उसने पहले तो श्रीराम को एक भाई व मित्र की भांति सांत्वना दी और फिर उनके सामने यह प्रस्ताव रखा कि वे तुरंत सुग्रीव के साथ बात करेंगे।
मन ही मन में लक्ष्मण को सुग्रीव पर बहुत गुस्सा भी आ रहा था और वो क्रोधित हो कर, सुग्रीव को सबक सिखाने के इरादे से लैस-बैस हो कर उसके महल की और चल पड़े। वहां पहुँच कर लक्ष्मण ने सुग्रीव को ललकारा और महल में जाकर जो भी उनके मन में था, उन्होंने सुग्रीव को कहा, इस वार्तालाप को वाल्मीकि रामायण में इस तरह से बताया गया है (किष्किन्धा काण्ड सर्ग ३३, शलोक ४७,४८)
लक्ष्मण सुग्रीव को सम्बोधित कर कहते है कि अगर भी कोई ऐसा कार्य करने में विफल हो जाए जो कि उसको करना उसका धर्म व कर्तव्य था, तो ऐसे में उसका अत्यंत नुक्सान होता है। साथ ही अगर किसी नेक दोस्त की दोस्ती भी समाप्त हो जाए तो फिर स्वंय के कार्यों के सिद्ध होने का भी अंदेशा हो जाता है और नुक्सान भी अधिक होने का डर होता है।
निस्संदेह,एक मित्र के कार्यों को संपन्न होने देने में एक मित्र का योगदान अत्यंत महत्वपूरण होता है जब वो नेक भी हो और सच्चा भी। अगर सच कहना हो तो इन दोनों विशेषताओं को तुम्हारे द्वारा दरकिनार कर दिया गया है और अब कोई नेकी की रौशनी दिखाई नहीं पड़ रही।
(सर्ग ३४, शलोक ७,८,९,१०,१३,१४)
एक राजा जिसमें नेकी भी हो और वो खानदान भी अच्छे से सम्बन्ध रखता हो, वो दयालु भी होता है और उसने अपनी इन्द्रियों पर काबू भी पा कर रखा होता है। उसे मालूम होता है उन लोगों के बारे में जिन्होनें उसकी सहायता की हो और वो हमेशा सच भी बोलता है तथा उसे समस्त विश्व में आदर से देखा जाता है। दूसरी और, उससे निर्दयी व निष्टुर राजा कौन हो सकता है जो अधर्म में लीन हो चुका हो और मित्रों के साथ झूठे वायदे करता हो, ऐसे मित्र जिन्होनें उसकी कभी मदद की हो। झूठे वायदे करने वाला तो ऐसा होता है जोकि एक अश्व को दान देने का वायदा तोड़े तो सौ अश्वों की हत्या कर दी हो ऐसा फल उसे मिले, एक गाय दान का वायदा तोड़ा जाए तो तो सहस्त्र गाय को मारने के पाप का भागी होता है।

ऐसा ही नहीं बल्कि अपने दोस्त को वायदा कर के उसे न पूरा करने वाला तो अपनी ही हत्या अर्थात आत्महत्या जैसे पाप का भागी होता है। वो, जो अपने मित्रों की मदद से पहले अपना लक्ष्य सिद्ध कर ले और फिर अपने उन्हीं मित्रों का ऋण न चुकाये, निशचय ही अत्यंत क्र्त्घन होता है और ऐसे की तो हत्या ही कर देनी चाहिए, हे वानर, आप झूठे भी हो और स्वार्थी भी क्योंकि आप ने अपना काम तो श्रीराम की सहायता से पहले ही निकाल लिया है और अब आपको उनकी किसी प्रकार की आवश्यकता नहीं है। निस्संदेह आपको किसी भी कीमत पर सीता को वापिस लाने की चेष्टा तो करनी ही नहीं है हे वानर, क्योंकि आप ने श्रीराम की सहायता से अपना काम निकाल लिया है।
जब लक्ष्मण का गुस्सा थोड़ा शांत हो जाता है तो वे प्यार से भी सुग्रीव को समझाते है, जैसा कि किष्किन्धा काण्ड सर्ग ३०, शलोक १६,१७,१८ में बताया गया है। लक्ष्मण कहते है कि सुग्रीव, आप अगर प्यार में ही इतने लुप्त हो गये तो आप स्वंय की शक्ति ही कम कर बैठोगे. आपके मन का चैन आपके संताप की वज़ह से ही विचलित हो रहा है।
ऐसे समय में क्या आप के मन का दुःख व दर्द एक स्थल पर केन्द्रित नहीं हो सकता? हे वानर, आपकी आत्मा जाग्रत है, मेरे प्रिय भ्राता, इसलिए अपने नित दिन के कर्म मन और एकाग्रता से करें, अपना सारा समय अपने मन को केन्द्रित करने में लगायें, अपने बड़ों की सहायता भी लें और अपने बल को भी अधिक करें। यही एक रास्ता है जिससे आप स्वंय को और शक्तिशाली बना सकते हैं।

