

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी …
मृत्यु…..
मृत्यु एक ऐसा विषय है जिसके बारे में बात करने से डर तो लगता ही है साथ ही इसके साथ स्वर्ग, नर्क, मोक्ष, पूर्वजन्म जैसे अनेकों और बातों को भी जोड़ कर बताया जाता है।

जिनको समझना तनिक कठिन हो जाता है। विशवास व आस्था की दृष्टि से देखा जाए तो इन बातों से मन को एक तरह से दिलासा तो मिल जाता है लेकिन फिर भी, अपनों से बिछुड़ने का दर्द सदैव ही दिल को उदासी की गहराईओं में इतना दूर ले जाता है कि उस से निकलना आसान नहीं होता लेकिन अगर मृत्यु को एक दार्शनिक की द्रष्टि से समझा जाए तो यह अच्छा भी होगा व एक सुलझे मानव जैसा कृत्य भी श्रीराम ने इस विषय पर जो अपने विचार भरत के साथ सांझा किऐ उन को जानना हम सभी के लिय अत्यंत आवश्यक है इससे हमें एक दिशा भी मिलेगी व ज्ञान भी उनके विचार अयोध्या कांड के १०५वे सर्ग के १५-३०वे और ३८-३९ श्लोकों में इस तरह से दर्शाए गये है।

श्रीराम कहते हैं कि कर्म करने की स्वतन्त्रता इस संसार व उस संसार में किसी भी आत्म जन के आधीन नहीं होती है क्यों कि आत्मा तो ईश्वर के सम्मुख शक्तिहीन होती है। मानव ने जो कुछ भी व जितना भी संचय किया होता है एक दिन वह समाप्ति की ओर अग्रसर होने लगता है जो वस्तु जितनी ही ऊंचाई की ओर जाती है समय के साथ नीचे आनी प्रारंभ हो जाती है मिलन के क्षण जुदाई में बदल जाते हैं और जीवन का अंत मृत्यु में हो जाता है। जिस प्रकार एक पके हुए फल को वृक्ष से नीचे गिरने से अधिक और कोई डर नहीं होता उसी प्रकार मनुष्य को इस संसार में आने के पश्चात मृत्यु से अधिक और किसी प्रकार का डर नहीं होता। एक घर जिसे मज़बूत चार स्तंभों ने संभाल रखा हो समय बीत जाने पर वे स्तम्भ भी कमज़ोर हो जाते हैं। और वो घर गिर जाता है। उसी प्रकार मानव भी बुढापे का शिकार हो कर म्रत्यु को ग्रहण कर लेता है।

जो रात बीत जाती है वो फिर कभी दोबारा वापिस नहीं आती यमुना नदी समुंद्र में समा कर उसी में लीन हो जाती हैं दिन व रात जल्दी जल्दी बीतते रहते हैं और उसी के साथ सभी के जीवन का समय भी समाप्त होता रहता है जैसे कि गर्मी के मौसम में सूर्य की किरणें पानी को सोख लेती हैं उसी प्रकार अपने लिय ही शोक मनायो दूसरों के लिय क्यों शोक मनाते हो? सच्चाई तो यह है कि इस धरा पर सभी जीव- जन्तुओं का जीवन हर पल, हर क्षण कम होता जाता है चाहे वे अपने घर में बैठे हों अथवा कहीं किसी भी स्थान पर जा रहे हों जब हम चल रहे होते हैं तब भी म्रत्यु हमारे साथ चल रही होती है और जब हम कहीं बैठ जाते हैं तो उस समय मृत्यु भी हमारे साथ ही बैठ जाती है। हम किसी भी व कैसी भी यात्रा पर जा रहे हों तो म्रत्यु भी हमारी यात्रा समाप्त होते ही हमारे साथ वापिस आ जाती है। जब झुर्रियां पड़ने लग जाएँ व बालों का रंग सफेद हो जाए तो उनको कैसे वापिस लाया जा सकता है?

मनुष्य प्रसन्न हो जाते है जब सूर्य उदय हो जाता व दिन की शुरुआत होती है मनुष्य तब भी प्रसन्न हो जाते हैं जब दिन समाप्त हो जाता है लेकिन अपने जीवन के उतार- चड़ाव को नहीं महसूस कर पाता। नये मौसम के आने के आभास से ही लोग प्रसन्न हो जाते हैं जैसे कि ऐसा पहली बार हो रहा हो लेकिन वे भूल जाते हैं कि मौसम के बदलने के साथ साथ उनके जीवन का प्रकाश भी कम होने लगता है। जिस प्रकार बहते जल में दो लकड़ी के टुकड़े बहते-बहते एक समय पर एक दूसरे के समीप आ जाते हैं और कुछ दूरी तक इकठ्ठे बहने के उपरान्त अलग हो कर बहने लग जाते है।उसी प्रकार पत्नी, बच्चे, रिश्तेदार आपके पास आने के उपरान्त, समय आने पर अलग अलग हो जाते हैं क्यों कि जुदाई का होना निश्चित है जिसे रोका नहीं जा सकता।जब समय आता है तो प्र्तेय्क जीव जन्तु जन्म – मृत्यु के खेल से बच नहीं सकता। इसलिय जो मन दूसरे की म्रत्यु पर शोक मना रहा होता है उसमें अपनी मृत्यु को टाल देने का सामर्थ्य नहीं होता।
अपने जीवन का अंत जो कि सुनुश्चित है वह ऐसा ही है जैसे कि नदी में बहने वाला जल पीछे की और नहीं बहता इसलिय मानव जीवन एक आनन्दमय समय में बिताना चाहिए जिससे कि हर मानव अपने किय कार्यों में परम आनंद प्राप्त कर सके जो कि परोपकार व धर्मअनुसार हों। क्यों कि ऐसा करना हर जीव का परम धर्म है इसलिए किसी भी सयाने व बुद्धिमान, चतुर व ज्ञानी को प्रियजनों के मृत्यु होने पर शोक नहीं करना चाहिए। जो महाज्ञानी हो, उसे रोना, शोक मनाना इत्यादि कदापि भी शोभा नहीं देता और उसे इनको स्वंय के ऊपर हावी नहीं होने देना है।




