EXCLUSIVE ..तो क्या आश्रम से बाहर निकाले जाएँगे बच्चे
आख़िर किस काम की सुखाश्रय योजना?

भले ही प्रशासन के ये नियम – क़ानून जायज़ है की आश्रम में पल रहे बच्चे के माता या पिता या फिर कोई संबंधी जीवित है और उसका पालन पोषण करने में सक्षम हो सकता है लिहाजा उन संबंधियों को उन बच्चों को सुपुर्द किया जा सकता है…
लेकिन इस बीच हिमाचल में बाल/ बालिका आश्रम में रह रहे कुछ बच्चों की कुछ और ही तस्वीर सामने आ रही है
कुछ बच्चों को आश्रम से बाहर का रास्ता दिखाने पर मजबूर करने की सूचनाएँ आ रही है । मामला हिमाचल के एक आश्रम का है । जिसमे एक बिहार की महिला जिसकी चार बेटियां हैं उसने अपनी दो बेटियां आश्रम में डाल रखी हैं । जो अपनी चारों बेटियां पालने में सक्षम नहीं है
बार बार उसे संबंधित कर्मचारियों के फ़ोन आ रहे है कि यदि तुम बच्चा आश्रम में रखना चाहती हो तो तुम्हें इसका त्याग करना होगा । यानी की संबंधित महिला ये प्रशासन को जलद बताएँ कि क्या वह दो बेटियों का त्याग करेगी । यदि ऐसा नहीं तो वह बेटियां आश्रम में नहीं रहेगी । बच्चे त्याग करने का मतलब ये है कि उन बच्चों को कोई अन्य दंपत्ति गोद ले सकता है ।
सवाल?
सवाल ये उठता है कि अब वह माता जो अपने सभी बच्चों को नहीं पाल सकती है क्या उन बेटियों को संबंधित प्रशासन , आश्रम से बाहर निकाल देगा?
हिमाचल मुख्यमंत्री के नाम माँ का पत्र
मजबूर माँ ने हिमाचल मुख्यमंत्री, महिला एवं बाल विकास विभाग को पत्र लिखा है की जब वह बिहार में रहती थी उसकी बेटियों को उसके पति ने ज़हर दिया था संयोगवश बेटियां बच गई । बेटा नहीं होने के कारण उसका पति उसे बहुत मारता था । जान बचाकर वह शिमला आई। और अपनी दो बेटियों को आश्रम में डलवाकर सहारा मांगा । बेटियां पढ़ने में होशियार भी है ।उसे और उसकी बेटियों को उसके पति से ख़तरा है।
वह सभी बच्चों का पालन नहीं कर सकती है लिहाजा उसने सरकार से आग्रह किया है कि उसकी बेटियों पर आश्रम से बाहर निकालने का दबाव नहीं डाला जाय । उन्हें आश्रम में रहने दिया जाय । उसका उसके पति के साथ कोर्ट में केस चल रहा है । वह सभी बेटियां पालने में सक्षम नहीं है वहाँ घरों में झाड़ू पोचा बर्तन धोती है और अकेली रहती है
आख़िर फिर कौन जिम्मेवार
बार बार यदि बच्चे को आश्रम से बाहर निकलने पर दबाव डाला जाए और दबाव में आकर कोई मजबूर माता या पिता अपने बच्चे को आश्रम से बाहर निकाल भी दे तो क्या तस्वीर रह जाएगी हिमाचल सरकर की ।
ग़ौर हो कि ज़रूरतमंद बच्चों के लिए हिमाचल सरकार पूरे देश में सबसे बेहतर कार्य कर रही है ऐसी सूरत में उन बच्चों को आश्रम से बाहर निकालने को लेकर नियम क़ानून का हवाला देना कितना उचित है ,जबकि वह बच्चे काफ़ी वर्षों से आश्रम में रह रहे हैं ।
निसंदेह नियम क़ानून में ये सही कदम है कि आश्रम में रह रहे बच्चे के परिवार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को लेकर हर तरह से जाँच हो लेकिन ज़रूरतमंद के अभिभावकों पर इसका कोई मानसिक दबाव न पड़े इसकी ज़िम्मेवारी किसकी है? यदि बच्चों के भविष्य को लेकर यदि सकारात्मक रास्ता निकाला जाए तो वे हिमाचल के लिए भी बेहतर होगा और उन सभी ज़रूरतमंद बच्चों के लिए भी.. जिसमें ज़रूरत मंद बच्चों की सही तस्वीर सामने आए और उन्हें आश्रम में पढ़ने लिखने का भरपूर मौक़ा मिले

