संस्कृति

किन्नौर के शुआ कामरू में तीन दिवसीय टांकरी कार्यशाला का शुभारंभ – संस्कृति पुनरुत्थान की पहल

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किन्नौर के शुआ कामरू में तीन दिवसीय टांकरी कार्यशाला का शुभारंभ – संस्कृति पुनरुत्थान की पहल

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किन्नौर, 28 मई 2025

 

हिमाचल प्रदेश की विलुप्तप्राय हो रही लोकलिपि टांकरी के संरक्षण और पुनरुत्थान की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल के अंतर्गत किन्नौर जनपद के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध गांव शुआ कामरू में तीन दिवसीय टांकरी प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन 28 से 30 मई 2025 तक किया जा रहा है। यह आयोजन श्री बद्रीनाथ जी के आशीर्वाद एवं स्थानीय कोठकामदारों और कारदारों के सहयोग से संपन्न हो रहा है।

 

इस कार्यशाला का विधिवत शुभारंभ डॉ. यज्ञदत्त शर्मा (सहायक आचार्य, वेदव्यास परिसर, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय कांगड़ा), सुप्रसिद्ध साहित्यकार हितेन्द्र शर्मा एवं रामबाग सिंह चोखेस द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। इस सुअवसर पर क्षेत्रीय धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन से जुड़े प्रमुख जनों की उपस्थिति ने आयोजन को एक भावपूर्ण गरिमा प्रदान की। उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों में राम रतन जी माली भगवती एवं गूर बद्रीविशाल जी, गंभीर चंद जी माली बद्रीनाथ जी, पुजारी निर्भय सिंह जी, राजेन्द्र प्रसाद कायथ और रघुवर सिंह मोतमीम विशेष रूप से उपस्थित रहे।

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कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य टांकरी लिपि का व्यवहारिक प्रशिक्षण देना है, ताकि युवा पीढ़ी अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़ सके। प्रशिक्षक डॉ. यज्ञदत्त शर्मा ने बताया कि, “हम टांकरी लिपि पर आधारित ऐसी कार्यशालाएं हिमाचल के विभिन्न क्षेत्रों में आयोजित करते हैं। शुआ कामरू, जो कि किन्नौर की प्राचीनतम सांस्कृतिक स्थानों में से एक है, यहां भी अनेक दुर्लभ ऐतिहासिक दस्तावेज और शिलालेख टांकरी लिपि में उपलब्ध हैं, जिनका अब तक ठीक से अध्ययन नहीं हो पाया है। यदि स्थानीय युवा टांकरी सीख लें, तो वे स्वयं अपने अतीत को पढ़ सकेंगे, समझ सकेंगे और भावी पीढ़ियों को भी इसका बोध करा सकेंगे।”

 

इस अवसर पर उपस्थित साहित्यकार हितेन्द्र शर्मा ने हिमाचल की पुरातन संस्कृति की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा, “हमारी सांस्कृतिक जड़ें हमारी टांकरी मातृका में संजोई गई हैं। यह मात्र एक लिपि नहीं, अपितु हमारी सांस्कृतिक अस्मिता की आधारशिला है। यदि हम टांकरी को सीखने का संकल्प लें, तो हम अपने लोकवृत्त, परंपराएं और इतिहास को पुनः जीवंत कर सकते हैं।”

 

कार्यशाला में भाग लेने वाले स्थानीय युवाओं में रोहित सिंह, अनूप सिंह, पवन कुमार, प्रतीक सिंह, समरजीत, विश्वजीत, अनीश, दिव्यांशु और आकाश सहित लगभग 30 प्रतिभागी सक्रिय रूप से प्रशिक्षण ले रहे हैं।

 

कार्यशाला के आयोजन ने स्थानीय समाज में सांस्कृतिक चेतना को नई ऊर्जा दी है। युवाओं में इस विलुप्तप्राय लिपि को सीखने की रुचि एक नई आशा और जागरूकता का संकेत है। आयोजकों की यह पहल निश्चित रूप से क्षेत्रीय सांस्कृतिक संरक्षण की दिशा में एक अनुकरणीय कदम सिद्ध होगी।

Deepika Sharma

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