
ऑपरेशन सिंदूर- ये दिल मांगे मोर
भारतीय वायु सेना द्वारा हाल ही में किया गया ऑपरेशन सिन्दूर केवल एक ऑपरेशन है, बल्कि यह देश पहले, फ़र्ज़, कुर्बानी और कर्तव्य पालना की एक ऐसी उदाहरण है जिससे आम जनता को भारतीय सेना पर गर्व भी होना चाहिय और साथ ही इससे लोगों को कुछ सीखना भी चाहिए।
पहलगाम हत्याकांड के बाद, नागरिकों के बीच एक भावना थी कि भारत को जवाबी कार्रवाई करनी चाहिए, बदला लेना चाहिए और पाकिस्तान को सबक सिखाना चाहिए। भारत सरकार द्वारा सिंधु जल संधि, व्यापार व् राजनयिक संबंधों के निलंबित करने के लिए उठाए गए कदमों को पर्याप्त नहीं माना जा रहा था और सोशल मीडिया पर कई चैनल दोहरा रहे थे कि भारत को पाकिस्तान पर हमला करना चाहिए। 1971 में जब इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान पर हमला करने के लिए सेना के प्रमुख पर जोर दिया, तो फील्ड मार्शल मानेकशॉ ने उन्हें बताया कि हमला करने के लिए पूर्ण तैयारी, सैनिकों की आवाजाही, मौसम की स्थिति आदि को देखना पड़ता है और हमला तब किया जाएगा वो भी उचित समय पर ताकि अंतिम परिणाम केवल जीत हो। तदनुसार, ऑपरेशन सिदूर की भी विस्तार से योजना बनाई गई थी, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को विश्वास में ले लिया गया था, पेशेवरों के साथ पूर्ण रूप से योजना बनाई गई और समय तय किया गया था ताकि दुश्मन को अचंभित कर दिया जाए, उद्देश्य हासिल किया जाय और स्वयं के लिए कोई नुक्सान न हो और यह ठीक इस तरह हुआ क्योंकि भारतीय सेनानियों ने आतंकवादी शिविरों को नष्ट कर दिया जो पाकिस्तान के अंदर स्थित थे और शायद ही कोई नागरिक हताहत हुआ।
यदि हम भविष्य की कल्पना करते हैं, तो पाकिस्तान भारत के खिलाफ अपनी नापाक गतिविधियों को बंद कर देगा ऐसा शायद न हो और वो आतंकवादी कृत्यों को फिर दोहरा सकता है क्योंकि पाकिस्तान को पता है कि पारंपरिक युद्ध न तो जीत सकता है और न ही इसे एक सप्ताह से अधिक खींच सकता है क्योंकि यह पाकिस्तान को आर्थिक, सैनिक व् राजनीतिक रूप से भी नुकसान पहुंचाएगा। पाकिस्तान इस तरह के प्रॉक्सी युद्ध जैसी हरकतों से भारत को परेशान करता रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत ने पहले भी आतंकवादी हमलों का बदला लिया था, लेकिन इस बार भारत ने पाकिस्तान के अंदर आतंकवादी शिविरों पर हमला किया और यह पाकिस्तान के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि भविष्य में भी इसे दोहराया जा सकता है। इसलिए यह सवाल उठता है कि भारत को क्या करना चाहिए? क्या इसी तरह के हमलों का इंतजार करना चाहिए और फिर अटैक करे?और अगर भारत को ठोस जानकारी मिलती है, तो ऐसे शिविरों को पता लगते ही नष्ट नहीं करना चाहिए ताकि ऐसी समस्या ही पैदा न हो?
मुझे लगता है कि भविष्य में पूर्व -कदम उठाने का समय आ गया है. यह आतंक कब तक हमारे लिए परेशानी और समस्या पैदा करता रहेगा? इस पर पहले से लगाम कसने की जरूरत है। यह एक तथ्य है कि आर्थिक, सैन्य रूप से, कूटनीतिक रूप से और साथ ही कई अन्य क्षेत्रों में, भारतीय पाकिस्तान की तुलना में बहुत मजबूत राष्ट्र है। दरअसल, परमाणु हथियारों को छोड़कर, कोई मुकाबला नहीं है। इसलिए, अगर कभी भी दोनों के बीच युद्ध होता है, तो पाकिस्तान को अत्यंत ही नुक्सान का सामना करना पड़ेगा और वो आगे भी विघटित हो सकता है। भारत ऐसा करने की कोशिश कभी नहीं करेगा क्योंकि उसके अपने पुनर्वितरण होंगे; हालाँकि भारत आतंकवादी हमलों को भी अब सहन नहीं कर सकता। इसलिए, आतंकवादी शिविरों पर लगातार हमले के रूप में एक विकल्प है और भारत द्वारा हाल ही में आतंकी शिविरों पर हमला जो पाकिस्तान के भीतर थे, एक प्रमुख संकेत है कि इसे दोहराया जाएगा। पाकिस्तान अधिग्रस्त कश्मीर विवाद का निपटारा करना भी महत्वपूर्ण है और यदि अवसर आता है, युद्ध आगे बढ़ता है और भारतीय नियंत्रण के साथ -साथ कुछ हिस्सा या पूरी तरह से पाकिस्तान अधिग्रस्त कश्मीर पर भारत को कब्जा करने का अवसर मिले तो यह लंबे समय के लिए फायदेमंद होगा। दोनों के बीच का व्यापार का परिमाण ऐसा नहीं है कि अगर व्यापार न हो तो यह भारत को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाएगा, लेकिन पाकिस्तान के लिए यह एक महंगा मामला होगा; इसलिए लंबी अवधि के लिए व्यापार के निलंबन से पाकिस्तान की गर्दन को और अधिक कसा जा सकता है। सिंधु जल संधि की समीक्षा की जानी चाहिए ताकि इसके नियम और शर्तों का समय -समय पर और ठीक से उपयोग किया जाए।
सारांश यह है कि चूंकि पिछले पचास से अधिक वर्षों से पाकिस्तान हमारे लिए एक दर्द है बना हुआ है इसलिए अब इसे निचोड़ने के लिए रुकने के बजाय समय समय पर शिकंजा कसे रखे जाने की आवशयकता है। हमारे देश में रहने वाले मुसलमान भी न तो पाकिस्तान को चाहते हैं और न ही वहां जाना चाहते हैं। भारत में रहने वाले कश्मीरियों के लिए आतंकी गतिविधियाँ भी एक परेशानी ही है क्योंकि वे भी आर्थिक रूप से पीड़ित हैं। धर्म के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाना आसान है लेकिन लोगों को खुद भी आतंकवादियों और पाकिस्तान के वास्तविक इरादों को समझना होगा। जब अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भारत के साथ है और शायद ही कोई देश पाकिस्तान द्वारा प्रचलित आतंकवाद का समर्थन करता है, (एक आध को छोड़ कर) इसलिए यह एक अवसर है जिसे हाथ से जाने न दिया जाय ।
अगर इस प्रक्रिया में बलूचिस्तान को अलग हो जाने का मौक़ा मिले और ऐसा हो जाय तो बाकी पाकिस्तान एक मिनी राज्य की तरह होगा, इसलिए इस दृष्टिकोण से भी एक अवसर है, 1971 में बांग्लादेश बनाया गया, 2025 में बलूचिस्तान हो सकता है। इसलिए ऑपरेशन सिन्दूर का जारी रहना इस भावना की परिणति है कि यह दिल मांगे मोर।



