सम्पादकीय

असर संपादकीय: देश में स्वास्थ्य लिटरेसी पर चर्चा हो

डॉ. निधि शर्मा की कलम से.

देश में स्वास्थ्य लिटरेसी पर चर्चा हो

 

डॉ. निधि शर्मा

सहायक प्रोफेसर

गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी कॉलेज, जालन्धर

(स्वास्थ्य संचार में पीएचडी)

 

हमारे देश में सूचनाओं का सबसे ज्यादा भ्रम जाल स्वास्थ्य से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर फैलाया जाता है । क्योंकि ये वो मुद्दा है जिसके बारे में जानना हर व्यक्ति की उत्सुकता है । हम अक्सर देखते हैं कि कोई घर पर बमार हो जाता है तो सबसे पहले घरेलू नुस्खे, सोशल मीडिया द्वारा बताए गए उपचारों का प्रयोग करना पसंद करते हैं । अगर हद हो जाए तभी डाक्टर के पास जाते हैं । हालांकि हल्कि बीमारी में दादी माँ के नुस्खे कारगर होते हैं लेकिन उस बीमारी का हल्का होना या गंभीर, कौन और कैसे निर्धारित करेगा ? इससंदर्भ में स्वास्थ्य लिटरेसी की बहुत आवश्यकता है

आज स्वास्थ्य संबंधित विभिन्न बीमारियों और उनके समाधान के लिए संचार के विभिन्न माध्यमों का बहुत बड़ा महत्व है । इन माध्यमों में समाचार पत्र, टीवी, रेडियो और सोशल मीडिया में सबसे ज्यादा लोग विशेषकर युवा पीढ़ी सोशल मीडिया को सूचना के माध्यम के तौर पर अधिक प्रयोग कर रही है । एक जनरल ऑफ मैडिकल इंटरनेट रिसर्च के एक अनुसंधान के मुताबिक भारत में 60 प्रतिशत से ज्यादा लोग स्वास्थ्य संबंधित विभिन्न सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए और विकसित देश विशेषकर अमेरिका में भी 10 में से 1 व्यक्ति स्वास्थ्य संबंधित विभिन्न  पहलूओं तक पहुँचने के लिए सोशल मीडिया का प्रयोग कर रहे हैं । इस कारण मनुष्य नकारात्मक मनोविज्ञान का शिकार हो रहे हैं । हालांकि वर्ष 1988 में अमेरिका की मनोवैज्ञानिक सभा के अध्यक्ष मार्टिन सेलिग्मेन ने सकारात्मक मनोविज्ञान पर बल देते हुए कहा कि मनुष्य मीडिया के किसी भी माध्यम का प्रयोग सही तरीके से करे तो सकारात्मक मीडिया के द्वारा स्वास्थ्य संचार, स्वास्थ्य शिक्षा और उसके प्रभाव का समाज पर सकारात्मक असर पड़ सकता है । इसलिए सोशल मीडिया का सही दिशा में प्रयोग लाभदायक प्रभाव डाल सकता है ।

क्रिको स्ट्रेटजीज़ नेशनल सीबीएस की रिपोर्ट (2015) के अनुसार अप्रभावी संचार के कारण पाँच वर्ष की अवधि में 1744 लोगों की मौत हुई थी और 1.71 अरब से अधिक प्रभावित हुए थे । यह आँकड़े बताते हैं कि मनुष्य को बेहतर स्वास्थ्य संचार सेवाओं के साथ जीना चाहिए । दुनिया भर में कोविड-2019 का दौर सबने देखे उस समय सोशल मीडिया पर स्वास्थ्य संबंधित सूचनाओं के लिए निर्भरता बहुत घातक सिद्ध भी हुई । स्वास्थ्य संबंधित फेक न्यूज़ का बाज़ार शहरों से गाँव-गाँव तक तेज से फैला जिसके कारण घर पर सब अपने उपचार के लिए स्वयं डॉक्टर बन गए । ईरान जैसे देश में उन दिनों शराब की अत्याधिक मात्रा के कारण हज़ारों की मौत हो गई । क्योंकि ऐसी अफवाह उड़ी कि शराब से कोविड को ठीक किया जा सकता है । हमारे देश में मुम्बई के प्रतिशित अस्पताल नानावटी के डॉक्टर की वो पर्ची वायरल हुई जिसके लेने से कोविड को ठीक किया जा सकता है । ये सब वो उदाहरण है जो स्वास्थ्य संबंधित असत्यापित सूचनाओं के माध्यम से बाज़ार में फेक न्यूज़ फैला रहे थे । ऐसे न जाने हज़ारों मैसेज आपके फोन पर आए होंगे और आपने बिना सोचे समझे अपने परिचितों को भेजे होंगें और आज भी भेज रहे होंगें । हालाँकि गुप्ता एवं शर्मा (2015) के एक लेख के मुताबिक सोशल मीडिया हमें सिर्फ नकारात्मक सूचना ही नहीं देता बल्कि सकारात्मक सूचनाएँ देकर समाज को स्वस्थ रखने में मदद भी करता है । यही कारण है कि कई नामचीन डॉक्टर और अस्पताल अपने अधिकारी पेज के माध्यम से सही जानकारी के साथ जनता से जुड़ते हैं । लेकिन ज़रूरी है कि आम जनता को सही समय पर सही जानकारी के साथ जोड़ने के लिए स्वास्थ्य लिटरेसी पर भी स्वास्थ्य विभाग काम करे ।

WhatsApp Image 2025-01-28 at 11.47.31 AM
WhatsApp Image 2025-01-28 at 11.47.29 AM
WhatsApp Image 2025-01-28 at 11.47.30 AM

स्वास्थ्य लिटरेसी को समझने के लिए समाज में स्वास्थ्य संबंधित सूचनाओं को प्राप्त करने के विभिन्न माध्यमों के तरीके, उनसे प्राप्त होने वाले ज्ञान, उस सूचना से बनने वाली लोगों की स्वास्थ्य संबंधित आस्था और उसका पड़ने वाले प्रभाव आदि चार महत्वपूर्ण नियंत्रित तरीकों पर चर्चा करनी होगी । जनता को प्राप्त होने वालीस्वास्थ्य संबंधित सूचना के विभिन्न माध्यमों की तो उपरोक्त चर्चा कर चुके हैं लेकिन प्रयोग करने की प्रतिशतता की बात करें तो अमेरिकन नेशनल हेल्थ कांउसिल की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1998 में स्वास्थ्य संबंधित सूचना के लिए 40 प्रतिशत टीवी पर, 35 प्रतिशत मैगजीन, 16 प्रतिशत समाचार पत्रों पर और 2 प्रतिशत इंटरनेट पर निर्भर थे लेकिन इसी संस्ता की रिपोर्ट के मुताबिक प्रिंट मीडिया द्वारा स्वास्थ्य संबंधित न्यूज़ को कम स्थान देने के कारण लोगों का माध्यम इंटरनेट बन चुका है । इस मिया में सत्यता की प्रतिशतता कम होने के करण लोगों की स्वास्थ्य संबंधित विभिन्न बीमारियों और सकी रोकथाम के प्रति विश्वास कुछ नकारात्मक हो चुका है । वर्ष 1950 के दशक में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रमों में भागीदारी की कमी, अनुभव किए गए लक्षणों की प्रतिक्रियाओं और चिकित्सा अनुपालन को समझाने के लिए स्वास्थ्य विश्वास मॉडल सामाजिक मनोवैज्ञानिक को होचबाम रोसेनस्टॉक और अन्य द्वारा दिया गया । उनका मानना था कि यदि संदेश कथित बाधाओं, लाभों, आत्म-प्रभावकारिता और खरते को सफलतापूर्वक लक्षित करते हैं तो वे समाज के लोगों का सही तरीके से व्यवहार को परिवर्तित करेंगें । इसलिए ज़रूरी है कि सरकार व गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा स्वास्थ्य संबंधित सूचनाओं को सही तरीके, सही समय और सही व्यक्ति तक पहुँचाया जाया । बेशक आज के समय में सरकार भी सोशल मीडिया के माध्यम से जनता तक पहुँचने की कोशिश कर रही है लेकिन इन सूचनाओं को सत्यता को परखने और उनमें सेंध ना लगे, इसकी जिम्मेदारी भी उन्हें लेनी पड़ेगी।

स्वास्थ्य ढांचे द्वारा सही तरीके से ली गई जिम्मेदारी ही सकारात्मक प्रभाव ला सकती है क्योंकि स्वास्थ्य में सही जानकारी ही स्वस्थ समाज की रूपरेखा को तैयार कर सकती है । इस संदर्भ में अल्बर्ट बंडुरा द्वारा विकसित सामाजिक संज्ञानात्मक सिद्धांत इस धारणा पर आधारित एक सिद्धांत है कि जिस वातावरम में कोई सही तरीके से प्रभाव डालता है उसका दूसरे के कार्यों, दूसरों के अनुभव और व्यवहार पर प्रभाव पड़ता है । टफ्ट्स विश्वविद्यालय में विकसित, स्ट्रॉन्गपीपल-हेल्दी वेट एक समुदाय-आधारित हस्तक्षेप है, जिसे 40 वर्ष से अधिक उम्र की अधिक वजन वाली और मोटी महिलाओं में हृदय रोग के जोखिम को कम करने के लिए डिजाइन किया गया । इस कार्यक्रम में शरीर के वजन, बॉडी मास इंडेक्स और कमर की परिधि में कमी के साथ-साथ शारीरिक गतिविधि में वृद्धि दिखाई है । इस प्रकार की केस स्टडीज ये सिद्ध करती है कि सही दिशा में किया गया प्रयास उस समस्या के कारण व निवारण पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।लोकप्रिय चैनल एवं सोशल मीडिया का भी कई महत्वपूर्ण मामलों में अच्छा प्रभाव होता है और मानसिक स्वास्थ्य सबंधी समस्याओं के बारे में सोशल मीडिया जागरूकता का वातावरण पैदा कर रहा है । इससे लोगों को ऐसी समस्याओं के विचार करने के अवसर पैदा हो रहे है । इससे लोगों में उन लोगों के प्रति प्रयोग और समझ की भावना पैदा होती जा रही है जो ऐसी ही अनेक पीढ़ा-दायकस्थितियों से गुजर रहे है । उदाहरण के लिए बॉलीवुड की प्रसिद्ध अभिनेत्रा दीपिका पादुकोण की जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया जब वो अवसाध में चली गई । लेकिन उन्होंने किस तरह अवसाध के विरूद्ध लड़ाई लड़ी उसे सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों के साथ सांझा किया ।

इसलिए सरकारी तंत्र को चाहिए कि समाज में उपरोक्त वर्णित चार बिंदुओं का गौर कर स्वास्थ्य संबंधित कार्यक्रम बनाए और ये कार्यक्रम धरातल पर तभी सफल होंगें अगर स्वास्थ्य लिटरेसी पर सही माध्यमों के द्वारा कार्य किया जाए ।

Deepika Sharma

Related Articles

Back to top button
Close