
प्रदेश के प्राथमिक स्वस्थ्य केंद्र और सामुदायिक स्वस्थ्य केंद्र, यदि इनकी वर्तमान स्थिति पर गौर किया जाए तो अधिकतर स्थानों पर उन पुरानी दो मंजिला भवन जिसमें ओ पी डी, लैब, फार्मेसी और चिकित्सक का घर सब कुछ हुआ करता था आज वही एक आलीशान ईमारत बड़े बड़े कमरे बड़ा प्रांगन और चारों तरफ फेंसिंग से कवर पार्किंग देखने को मिलेगी ! विकास की इस रफ़्तार में यदि कुछ नहीं बदला है तो वो है चिकित्सक वो भी सिर्फ एक ! पुरानी बिल्डिंग में भी वही थे और आज भी सिर्फ एक फिर मरीजों की संख्या चाहे किसी भी दर से बढ़ी रहे हो !


राजधानी से सट्टे कुछ कस्बों को देखें तो पता चलता है के कैसे कुछ मंत्रियों सरकारों स्थानीय विधायकों द्वारा ठेकेदारों के साथ मिल कर इमारतें तो खड़ी कर दी जाती हैं बिना किसी विज़न के और स्वस्थ्य सेवाओं के नाम पर तिनका भर प्रगति नहीं होती ! और जिस नयी ईमारत में लगभग हर बुनियादी स्पेशलिटी की ओ पी डी जैसे के मेडिसिन सर्जरी ओर्थो शिशु और वार्ड सुचारू रूप से चलाये जा सकते हैं वहां पर आज भी एक ही चिकित्सक दिन रात मरीजों को देखने में लगा है तो आखिर ऐसे बड़े भवनों का निर्माण किसलिए ?
यदि इन संस्थानों में कुछ बुनियादी स्पेशलिटी ओ पी डी और इनडोर सुविधाएँ सुनिश्चित की जाएँ तो इससे प्रदेश के बड़े अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों का बोझ भी काफी कम किया जा सकता है और लंबी कतारों से मरीजों और उनके तीमारदारों को राहत मिल सकती है और इलाज की गुणवत्ता में भी इजाफा किया जा सकता है !
हैरानी की बात है के जनता की आँखों में धुल झोंकने के लिए बड़ी बड़ी इमारतें और बड़े बड़े रिसर्च सेंटर की इकाइयों के नाम पर संसथान तो खोल दिए जाते हैं उद्घाटन पट्टिकाओं के साथ और सुविधाओं के नाम पर प्रसव जैसी बुनियादी प्रक्रिया के लिए भी राजधानी के अस्पतालों को रेफेर कर दिया जाता है !

पी एच सी, सी एच सी, को अपग्रेड करने के नाम पर करोड़ों फूंक दिए जाते हैं और अप ग्रेडेशन के नाम पर एक विशाल भवन का निर्माण कर दिया जाता है और सुविधाएँ वही परम्परागत ! और इन भवनों से आधे आकार के भवनों में शहरों में मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल चलते हैं ! यही हाल प्रदेश के तक़रीबन हर क्षेत्र का है ! नेता विधायक अपने अपने हलके में बड़े भवन निर्माणों को विकास की कसौटी दिखा कर अपनी राजनीती चमकाते हैं ! परन्तु इन निर्माण कार्यों के बावजूद बुनियादी सुविधाओं का टोटा होने से प्रतीत होता है मानो इनमें से कुछ का तो असल उदेश्य केवल राजकोष का दुरूपयोग और ठेकेदारों के साथ मिल कर घूसखोरी तक ही सिमित होता है ! और ऐसा नहीं के ऐसा केवल स्वास्थ्य के क्षेत्र में ही देखने को मिलता है !
मुख्यमंत्रियों द्वार अपने स्वयं के संबोधनों में अक्सर आर्थिक संकट की बात कही जाती है और ऐसा किसी एक पार्टी के साथ नहीं ! पिछले दस पंद्रह वर्षों में ही जो कर्ज़ चार हज़ार करोड़ से छः हज़ार करोड़ तक बढ़ता था तो सरकारें अपनी उपलब्धी गिनवाती थी के हमारे शासनक्वाल में कर्ज़ केवल पचास प्रतिशत बढ़ा और आज वही 75 हज़ार करोड़ तक पहुँच गया !
हैरानी की बात है के मुख्यमंत्री स्वयं इस बात को मानते हैं के उन्हें तनख्वाह और पेंशन भुगतान के लिए तीन करोड़ मासिक ब्याज पर कुछ दिनों के लिए हर महीने ऋण लेना पड़ता है और यह रीत न जाने कब से चली आ रही है पर दुर्भाग्यवश प्रदेश को कोई भी ऐसा मुख्यमंत्री नहीं मिल पाया जिसने इस स्थिति को सुधरने का प्रयास किया हो या इस स्थिति के उत्पन्न होने की ज़िम्मेदारी ली हो ! सैलरी और पेंशन में देरी करना कोई ठोस उपाय नहीं ! इस स्थिति पर एक पुरानी कहावत बिलकुल सही बैठती है, लल्लू पूत करे व्यापार ल्याए ब्याजू दे उधार !
बिगड़ती अर्थव्यवस्था के बावजूद मंत्रियों संतरियों के लाइफस्टाइल या सुविधाओं में कोई कमी नज़र नहीं आती !
वे प्रदेश की स्वास्थय सेवाओं की श्रेष्ठता का कितना भी हवाला दें पर स्वयं इलाज निजी अस्पतालों में ही करवाएंगे और शायद ही कभी प्रदेश के स्वस्थ्य संस्थानों में उपलब्ध किन्हीं दवाओं का सेवन करते दिखेंगे ! इलाज और दवाएं दोनों निजी अस्पतालों और बड़ी कंपनी की !
आखिर क्यूँ ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी स्वस्थ्य सुविधाओं के नाम पर केवल वही परम्परागत बुनियादी सुविधाएँ ही होती हैं और पर्याप्त तथा उपयुक्त उपचार के लिए उन्हें शहरों का रुख करना पड़ता है जबकि भवनों की भव्यता तो कहीं से कहीं पहुँच चुकी है ! यह एक सोच का विषय है !



