भाषा एवं संस्कृति विभाग के तत्वावधान में लेखिका डा. देव कन्या ठाकुर ने टूटीकंडी बालश्रम में बच्चों के लिए किया कहानी पाठ और सिखाई लेखन की बारीकियां

भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा आज एक विशेष कहानी वाचन सत्र का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य युवा पीढ़ी को सृजनात्मकता की ओर मोड़ने और उन्हें अपनी लोक संस्कृति से जोड़ने का था। यह आयोजन शिमला के टूटीकंडी स्थित बालश्रम केंद्र में किया गया, जहां करीब 42 बच्चों ने भाग लिया और प्रदेश की प्रसिद्ध साहित्यकार डा. देव कन्या ठाकुर ने कहानी पाठ किया और बच्चों को कई प्रेरक प्रसंग भी सुनाये।
डा. देव कन्या ठाकुर ने इस कहानी वाचन सत्र में बच्चों को लोककथा राणा झीणा सुनाई, जो न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें समाहित नैतिक मूल्य आज भी प्रासंगिक हैं। इस कथा के माध्यम से डा. ठाकुर ने बच्चों को यह सिखाया कि जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना कैसे किया जाए और सही मार्गदर्शन के साथ किस तरह जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी बताया कि लोककथाएं जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने का प्रभावी माध्यम हैं और किस तरह से इन कथाओं में छिपे संस्कार समाज के हर वर्ग तक पहुंच सकते हैं।
कहानी वाचन के दौरान डा. ठाकुर ने बच्चों को यह बताया कि एक अच्छी कहानी वही होती है जो केवल मनोरंजन ही नहीं करती, बल्कि समाज में किसी सकारात्मक संदेश को भी पहुँचाती है। लेखिका ने बच्चों को यह भी बताया कि एक अच्छे लेखक को अपनी लेखनी के माध्यम से समाज के हर वर्ग के लिए कुछ सकारात्मक छोड़ने की कोशिश करनी चाहिए। डा. ठाकुर ने लेखन की बारीकियों पर भी प्रकाश डाला, जैसे कि विचारों को सही ढंग से प्रस्तुत करना, भाषा का चयन, और पाठकों के दिलों को छूने वाली भावनाओं को व्यक्त करना। यह बच्चों को न केवल मानसिक रूप से बल्कि भावनात्मक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी मजबूत बनाती हैं। उन्होंने कहा कि अच्छे विचार और नैतिक शिक्षा बच्चों के जीवन को सकारात्मक दिशा में मोड़ सकते हैं।
भाषा एवं संस्कृति विभाग के निदेशक रीमा कश्यप ने बताया कि विभाग द्वारा हर सप्ताहांत इस तरह के आयोजन किए जाते हैं , ताकि बच्चों को लोक संस्कृति, साहित्य और नैतिक शिमूल्यों से जोड़ा जा सके। उनके अनुसार, इस तरह के आयोजनों से बच्चों में न केवल साहित्यिक रुचि विकसित होती है, बल्कि वे समाज और अपनी संस्कृति के प्रति भी अधिक जागरूक होते हैं। इस कार्यक्रम का उद्देश्य बच्चों को सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यक्तिगत विकास के लिए प्रोत्साहित करना है।
इस आयोजन के दौरान सहायक निदेशक अनिल हारटा, और जिला भाषा अधिकारी शिमला श्रीमती सरोजना नरवाल और बालश्रम के वार्डन श्री के आर मेहता भी उपस्थित रहीं। उन्होंने इस कार्यक्रम की सराहना करते हुए बच्चों को इस तरह के आयोजनों का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि इस तरह के कार्यक्रम बच्चों के मानसिक और सामाजिक विकास में सहायक होते हैं और उन्हें अपनी संस्कृति से जुड़ने का एक अनूठा अवसर प्रदान करते हैं।



