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बड़ी खबर: प्लेग पर अलर्ट हिमाचल, निगरानी टीम पहुँची रोहडू

हिमाचल में प्लेग पर एनसीडीसी बैंगलोर रखेगी कड़ी नज़र

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हिमाचल प्लेग पर अलर्ट हो गया है। उल्लेखनीय है कि भारत में 7 पूर्ववर्ती प्लेग स्थानिक राज्य हैं जिनमें से हिमाचल प्रदेश एक है। राज्य में वर्ष 2002 में हाटकोटी गांव, रोहडू में प्लेग का प्रकोप हुआ था, जिसे एनसीडीसी और हिमाचल प्रदेश सरकार ने बहुत अच्छी तरह से नियंत्रित किया था। तब से रोहडू, शिमला एनसीडीसी, डीजीएचएस, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार, बैंगलोर के मार्गदर्शन में राज्य द्वारा लगातार प्लेग निगरानी में है।

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वर्तमान में एनसीडीसी बैंगलोर की एक टीम जिसमें अनुसंधान सहायक श्री अनोक मेल्विन मार्शल और चिकित्सा अधिकारी डॉ. सयाना भास्करन के साथ इन्होने 16 से 19 अप्रैल 2024 तक प्लेग निगरानी की गतिविधियों के लिए रोहडू का दौरा किया।

मुख्य अवलोकन थे : –

रोहडू सिविल अस्पताल में 4 प्रशिक्षित स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारी हैं जो एनसीडीसी द्वारा प्रशिक्षित हैं।

1. गतिविधि को नियमित आधार पर संचालित करने की आवश्यकता है सभी तकनीकी सहायता एनसीडीसी बैंगलोर द्वारा दी जाएगी।

2. प्लेग सूचकांक गांवों का दौरा किया 1. तांगनु 2. खोरसु

राज्य टीम रोहडू में 20 अप्रैल 2024 तक प्लेग निगरानी जारी रखेगी और रोहडू के अधिकतर गांवों को कवर करेगी।

प्लेग के लक्षणः- प्लेग के लक्षणों में आमतौर पर बुखार, ठंड लगना, कमजोरी और सूजन लिम्फ नोड्स शामिल हैं। प्लेग विभिन्न प्रकार के होते हैं, जिनमें ब्यूबोनिक, सेप्टिसेमिक और न्यूमोनिक शामिल हैं। ब्यूबोनिक प्लेग में सूजन औरदर्दनाक लिम्फ नोड्स की विशेषता होती है, जबकि सेप्टिसेमिक प्लेग में बुखार, ठंड लगना, अत्यधिक कमजोरी, पेट में दर्द, सदमा और संभवतः त्वचा और अन्य अंगों में रक्तस्राव शामिल होता है। न्यूमोनिक प्लेग फेफड़ों को प्रभावित करता है और खांसी, सांस लेने में कठिनाई, सीने में दर्द और खूनी थूक जैसे गंभीर श्वसन लक्षण पैदा कर सकता है।

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मुख्य चिकित्सा अधिकारी जिला शिमला, डॉ राकेश प्रताप ने आगे यह जानकारी देते हुए बताया की प्लेग से बचने के लिए निमंलिखित उपाय शामिल हैं।

प्लेग की रोकथाम में कई उपायः –

1. संपर्क से बचनाः- जंगली कृंतकों, उनके पिस्सू और बीमार या मृत जानवरों के साथ संपर्क कम से कम करें, खासकर उन क्षेत्रों में जहां प्लेग होने की संभावना है।

2. कृतक नियंत्रणः कृतक आबादी को उनके आवासों को नष्ट करके, खाद्य स्रोतों को सुरक्षित करके, और घरों और अन्य संरचनाओं में कृतक-प्रूफिंग तकनीकों का उपयोग करके नियंत्रित करें।

3. कीट विकर्षकः पिस्सू के काटने को रोकने के लिए उन क्षेत्रों में जहां प्लेग मौजूद है, बाहर जाने पर DEET युक्त कीट विकर्षक का उपयोग करें।

4. सुरक्षात्मक कपड़े: पिस्सू के संपर्क को कम करने के लिए उन क्षेत्रों में लंबी पैंट और आस्तीन वाली पैंट और आस्तीन पहनें जहां पर प्लेग की बीमारी फैली हुई है।

5. पालतू जानवरों की सुरक्षाः पशु चिकित्सकों द्वारा अनुशंसित पिस्सू-नियंत्रण उत्पादों का उपयोग करके पालतू जानवरों को पिस्सू से बचाएं।

6. मृत जानवरों से बचनाः बीमार या मृत जानवरों, विशेषकर कृंतकों, खरगोशों और अन्य छोटे स्तनधारियों को संभालने या छूने से बचें।

Deepika Sharma

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