असर संपादकीय: देव परंपरा की अनोखी मिसाल मैलन,कोटगढ़ की बूढ़ी दिवाली

ग्राम पंचायत मैलन,कोटगढ़ की प्रधान आदरणीय कमला ठाकुर ने बताया कि देवता चतुर्मुख मैलन के प्रांगण में दो दिवसीय पारंम्परिक बूढ़ी दिवाली का यह त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया गया जिसमे 12 दिसंबर को स्टार नाइट मे बैन्ड आफ सुकेत की पहाडी नाटियो की धूम रही जिसमे हिमाचल प्रदेश के सुप्रसिद्ध लोक गायक संजय ठाकुर, श्याम ठाकुर, शाईना ठाकुर और काकू कंवर ने अपनी प्रस्तुति दी ।

वरिष्ठ साहित्यकार धर्मपाल भारद्वाज ने पारंम्परिक बूढ़ी दिवाली का वर्णन पोराणिक कथाओ के अनुसार किया । उन्होने बताया कि कार्तिक अमावस के दिन भगवान राम वनवास काट कर अयोध्या पहुंचे थे। अयोध्या वासियों नें राम, सीता और लक्ष्मण का भव्य स्वागत किया। रात को पूरी नगरी में दीये जलाये गये। लेकिन संचार के साधन न होने के कारण तब भारतवर्ष के इन उत्तर पश्चिमी पहाड़ों तक इस समाचार को पहुंचने में एक चान्द्र मास लग गया। जिस दिन यह सुखद समाचार यहाँ तक पहुंचा उस दिन मार्गशीष अमावस थी। इन पहाड़ों में लोगों नें मशालें जलाकर उस रात रोशनी की और उसी दिन को दीवाली मान लिया। अयोध्या में जिस दिन रामचंद्र आये उस दिन दीवाली हुई और इन पहाड़ों में जिस दिन उन के आने की खबर मिली उस दिन दीवाली हुई। जिस समाचार की त्वरित पहुंचने की अपेक्षा रही होगी वह जैसे यहां तक का रास्ता तय करते-करते बुढ़ा गया। कदाचित् इसीलिए इसे पहाड़ी में ‘बुड्डी दैवड़ि’ अर्थात बूढ़ी दीवाली कहा जाने लगा। परम्परा अनुसार इन पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी, मार्गशीष अमावस को बूढ़ी दिवाली मनाये जाने का प्रचलन है। पहाड़ों में त्योहार देवी देवताओं की छत्र छाया में मनाये जाते हैं। कालांतर में स्थानीय देवताओं को भी इस प्रकाश महोत्सव में शरीक कर लिया गया।
मैलन कोटगढ़ में, देवता चतुर्मुख के प्रांगण में, इस रात बड़ी धूम धाम से प्रकाश का यह त्यौहार मनाया जाता है। कई अन्य स्थानों की तरह निरमंड और खड़ाहण में भी, देवता जिशर के मन्दिर में इस प्रकाश उत्सव का आयोजन होता है।
लेखिका उमा नधैक ने बताया कि परंपरा के अनुसार मैलन मे बूढ़ी दिवाली दीपावली के एक महीने बाद और हर दो वर्ष के बाद मनाई जाती है। इस वर्ष भी 12 दिसंबर की रात 12 बजे देवता चतुर्मुख के प्रागंण मे विधिवत् ‘भडराणा’ (भभकता अलाव) जलाया गया और उसके चारो ओर देवालु और ईलाके के लोगो ने ठामरु लगाकर पारंपरिक वाध्य यंत्रो की धुनो के साथ पारंपरिक देव गीत गाए
“दैवडिये, बोलौ दैवडे दैवड़ईऐ,बौल दैवडी दैवडियै ।
आरौ बिकौ ,पारौ बीकौ देवा कायी सूनियौ टीकौ बोल दैवडे दैवड़ईऐ ।
सुबह 4 बजे पारंपरिक ‘भडरेच रस्म’ मे देवता चतुर्मुख मैलन की भव्य रथ यात्रा मे मशालें (कैल के पेड़ की पिंगुरी लकड़ी, ज़ोख्टियां) हाथ में लेकर अपने इष्ट देवता चतुर्मुख के संग नाचते हैं। खूब ठामरू लगता है। दूसरे दिन मे पारंपरिक बाअंड रस्म व पारंपरिक पहाडी नाटी का आयोजन किया गया।
उमा नधैक हिमाचली भाषा व लोक संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन हेतु कार्य में सक्रीय भागीदारी निभा रही है और अपनी लेखनी व फ़ेसबुक पेज, यूटयूब के माध्यम से हिमाचली भाषा व लोक संस्कृति व साहित्य को आम जनमानस़,बुधि्जीवियों व साहित्यकारों के सहयोग से गाँव की मुँडेर से विश्व पटल तक पहुंचाने का दृढ़ संकल्प लिया है । जिसके तहत उनका अगला कदम बूढ़ी दिवाली मैलन पर डाक्यूमेट्री निर्माण है ताकि आने वाली पीढी के लिए यह पारंपरिक धरोहर सदियो तक कायम रहे ।



