

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी
मैं अब राजा भृतहरि के सूत्रों को विस्तार से पाठकों के सामने प्रस्तुत करने जा रहा हूं। वह सूत्र की शुरुआत उस सर्वशक्तिमान सर्वोच्च शक्ति को नमस्कार करके करते हैं जो इस
ब्रह्मांड को नियंत्रित और चलाती है। ब्रह्माण्ड जो असीमित है, उसे मापा नहीं जा सकता और इसी प्रकार परम शक्ति को भी देखा व मापा नहीं जा सकता। वह शक्ति जो अदृश्य होते हुए भी सर्वव्यापी है। उन्होंने अपने नीति शास्त्र के प्रथम अध्याय में सर्वप्रथम उस शक्ति को नमस्कार किया है। उनका कहना है कि दसों दिशाओं में, भूत, वर्तमान और भविष्य में (मतलब सभी कालों में) उस सर्वोच्च शक्ति को जानना और महसूस करना ही प्रत्येक मानव के जीवन का अंतिम लक्ष्य है। जो बुद्धिमान लोग हैं वे वास्तव में एक-दूसरे से ईर्ष्या से भरे हुए हैं, जो लोग सत्ता में हैं (अधिकारी) वे सत्ता के कारण खुद पर गर्व महसूस करते हैं और बाकी लोग अज्ञानता से भरे हुए हैं। इन परिस्थितियों में होता यह है कि बुद्धिजीवियों और गुणवत्तापूर्ण विचारों की बातें हमेशा हमारे दिमाग में ही रह जाती हैं और वहीं दफन हो जाती हैं और लोग बेकार की बातें करते हैं, साधारण गतिविधियों में लगे रहते हैं, बस समय गुजारते हैं और परिणाम यह होता है कि वे खुद को अज्ञानता के अंधेरे में डुबाना शुरू कर देते हैं।
मैंने अपनी किताब ‘ अक्ल बड़ी या गूगल बाबा’ के एक लेख में इस बात को इस तरह उजागर करने की कोशिश की है कि तीन चीजें हैं, सूचना, ज्ञान और अक्लमंदी। तकनीकी क्रांति और स्मार्ट फोन की उपलब्धता के कारण, बहुत सी जानकारी तक कोई भी पहुंच सकता है और उस असीमित जानकारी से निश्चित रूप से किसी को अच्छा ज्ञान रखने वाला कहा जा सकता है। लेकिन एक व्यक्ति को बुद्धिमान व्यक्ति तभी कहा जा सकता है यदि वह उस जानकारी और ज्ञान का उपयोग तर्कसंगत तरीके से करता है और उसका स्वभाव वैज्ञानिक है। अज्ञानता की गहराई में डूबे व्यक्ति को ढालना बहुत कठिन है। भृतहरि कहते हैं कि जिस प्रकार गंगा पृथ्वी पर स्वर्ग की उंचाईयों से आने के बाद, ऊँचे-ऊँचे पर्वतों से निकलकर मैदानी क्षेत्रों की ओर आती है, उसी प्रकार नैतिकता हीन मनुष्य नीचे और नीचे गिरते रहते हैं। वह आगे कहते हैं कि आग को पानी से नियंत्रित किया जा सकता है, सूर्य की किरणों को छाते से नियंत्रित किया जा सकता है, एक दुष्ट हाथी को महावत द्वारा तेज अंकुश का उपयोग करके नियंत्रित किया जा सकता है, एक बैल और गधे को एक छड़ी से नियंत्रित किया जा सकता है, किसी भी बीमारी को औषधि से भी वश में किया जा सकता है और जहर को भी विभिन्न तरीकों से वश में किया जा सकता है, परन्तु ऐसा कोई उपाय नहीं है जिससे किसी मूर्ख को वश में करके सन्मार्ग पर लाया जा सके।
भृतहरि कहते हैं कि मनुष्य सहित किसी भी वस्तु के पतन का मुख्य कारण अज्ञानता है। अज्ञान वास्तव में पूर्ण अंधकार का पर्याय है जिसकी कोई सीमा नहीं है। और एक बार जब कोई व्यक्ति इसमें गिरना शुरू कर देता है, तो इसकी कोई सीमा भी नहीं होती है। वह नीचे और नीचे चला जाता है. इसलिए हमेशा कहा जाता है कि जैसे ही किसी को अपनी गलतियों का एहसास हो, उसे तत्पर भूल सुधार करना चाहिए। अपने बारे में भी वह स्वीकार करते हैं कि जब वह थोड़ा ज्ञानी हो गये तो झूठे घमंड में आकर जंगली हाथी की तरह व्यवहार करने लगे। उनको खुद पर विश्वास होने लगा कि वे इस दुनिया की हर चीज़ को जानते हैं। लेकिन भृतहरि कहते हैं कि मैं जब वास्तविक बुद्धिमान व्यक्तियों की संगति में आया, तब मुझे अपनी मूर्खता का एहसास हुआ कि वास्तव में मैं कुछ भी नहीं जानता। यही बात न्यूटन ने भी स्वीकार की जब किसी ने उनके ज्ञान के स्तर के बारे में टिप्पणी की तो उन्होंने कहा कि ज्ञान एक महासागर की तरह है और वह इसके किनारे से सीप और मोती चुन रहे हैं।


