प्रेम
अंधेरी अमावस की रात का सूक्ष्म दिए की लो से प्रेम ही तो है,
चांदनी रात में चांद का धीरे धीरे निकलना फिर खो जाना प्रियतम और प्रेयसी की प्रीत ही तो है
किसी तारे का टूटना और फिर उस टूटते हुए तारे के दिख जाने पर किसी की खैर की दुआ करना प्यार ही तो है
नदियों का उत्पन होना दरिया का रूप ले जीवन का आधार बनना मानव जाति के लिए दुलार ही तो है
चाय की प्याली में
आंखों गहराई में
किताबों के पन्नों में
नींद के आगोश में
बिस्तर की सिलवटों में
प्रजातियों के सानिध्य में
ईश्वर की उपासना में
असहाय की सहायता में
परोपकार की भावना में
आत्मसत्ता के सत्य की साधना में
प्रेम ही तो है
जो नित्य है
निरंतर है
परस्पर है
युग युगांतर से
न मेरे न तुम्हारे
न किसी स्मृति या सहारे
का मोहताज है ये प्रेम
कोरे पाखंड और आडंबरों से परे
बस सादगी से जीवन में आगे बढ़ने का प्रेरणा स्त्रोत है ये प्रेम



