संस्कृति

असर संपादकीय: गर्मियों की छुट्टियां

निधि की कलम से....

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निधि…

गर्मियों की छुट्टियां

मुझे याद है छुट्टियां शुरू होने का वो पहला दिन…

हफ्तों की तैयारियों से बड़े से बैग में पैक किया गया समान…

पहले दो और चार दिन में स्कूल का काम करने में पूरा ध्यान…

बस नानी के घर पहुंचने पर पहले से तैयार साजो समान…

महीनों बाद मिले नाना – नानी का दुलार…

क्या खिला दूं? और क्या दे दूं?

हमारी अनगिनत इच्छाओं का उपहार…

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कोई विदेशी ब्रांड और धरती की चाह नहीं…

नानी के घर का आंगन और मित्रों के इकट्ठे होने का उल्लास..

बर्गर या नूडल नहीं..

गर्म-गर्म समोसे और पकोड़ों में हम ढूंढे खुशी..

जब दिन मे रात और रात में दिन की खुशी..

कोई लौटा दे, उन गर्मियों की छुट्टियों की खुशी।।

मेरे नए कपड़ों का छुट्टियों में ट्रंक से बाहर आना..

मेरी हर इच्छा का नानी तक स्वयं पहुंच जाना..

छुट्टियों की पगडंडियों पर संभल-संभल कर चलते जाना..

कोई ये ना कह दे, चलो अब घर जाना..

कोई लौटा दे, उन गर्मियों की छुट्टियों की खुशी।।

Deepika Sharma

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