
रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी
रामायण विश्व में सबसे अधिक प्रचलित, आदरणीय और पवित्र ग्रंथों में एक है।यद्यपि रामायण लिखने वाले अनेकों हैं, लेकिन महर्षि वाल्मीकि तथा गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस सबसे अधिक प्रचलित और प्रसिद्ध है। रामचरित मानस को पड़ने व जानने वालों की संख्या निस्संदेह अधिक है, क्योंकि इस की भाषा की सरलता जन मानस को अपने साथ जोड़ कर रखती है, तथा वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के मुकाबले रामचरित मानस संक्षिप्त भी है। लेकिन, विस्तृत विवरण, भाषा की उच्चता और ख़ूबसूरती, सभी घटनायों को पिरो कर दर्शाना और आध्यात्मिकता, ज्ञान और दर्शन का समावेश करना, ऐसा वाल्मीकि रामायण में ही संभव हो पाया है।

शायद ही कोई ऐसा हिन्दू घर होगा जहाँ रामायण नहीं रखी जाती। सिर्फ रामायण घर में होने से ज़िम्मेदारी समाप्त नहीं हो जाती जब तक उसे पड़ा न जाये, वह भी पूरी श्रध्दा और नियम के साथ लेकिन वाल्मीकि रामायण के बारे में बहुधा लोगों का ज्ञान बहुत सीमित है. दरअसल रामायण के बारे हमें उतना ही मालूम है जो फिल्मों, टेलीविज़न या रामलीला में दिखाया गया है, जो कि बहुत सीमित, ग्लैमर से भरा हुआ, भावनााओं से ओत प्रोत रहाा। वाल्मीकि रामायण एक ऐसा महा ग्रन्थ है, जिसे अनेकों बार अध्ययन के बाद ही उसकी महानता का पता चलता है। एक ऐसा महाकाव्य जो हजारों साल बाद भी आज की बदलती परिस्तिथियो में पूरी तरह से सार्थक है।

जब मैंने सर्वप्रथम वाल्मीकि रामायण का अध्ययन किया तो प्रतिदिन दो घंटे लगाता था और मुझे एक वर्ष से अघिक का समय लगा। उस अध्ययन के पश्चात मैंने इस महाग्रंथ पर आधारित एक पुस्तक निकाली जिसका शीर्षक था, सेवेन शेड्स ऑफ़ श्रीराम और जिसे बाद में प्रभात प्रकाशन ने श्रीराम के सात रूप नाम से हिन्दी में प्रकाशित किया । लेकिन मुझे तसल्ली नही हुयी और मैंने फिर से वाल्मीकि रामायण को पढ़ा। इस बार भी एक से अधिक वर्ष लगा और मैंने जाना कि कैसे इतनी महत्वपूर्ण व ज्ञानवर्धक बातें मेरी दृष्टि से ओझल थी। इसका परिणाम एक और पुस्तक थी, जिसका शीर्षक था इनविजिबल शेड्स ऑफ़ रामायण। अब फिर से इसे पढ़ रहा हूँ तो अब और नये आयाम पता चल रहे है। यह होती है एक महाग्रंथ की विशेषता जो कि सदियों तक स्वंय को प्रसंगिक बनाये रखता है।

दरअसल वाल्मीकि रचित रामायण सिर्फ एक कहानी नहीं ह। इसकी वृहत विषयों की महानता और उच्च दर्श्नावली को देखा जाये तो रामायण राजनीतिशास्त्र के विद्यार्थी के लिए प्रजातांत्रिक व्यवस्था, मंत्रिपरिषद का कार्य व महत्ता एंव कूटनीति पर एक शोधग्रन्थ है। समाज शास्त्रियों के लिए मानवीय संबंधों, परिवार तथा सामाजिक रिश्ते नातों की एक महान गाथा है। मनोवज्ञानिक तौर पर देखें तो रामायण प्यार, स्नेह, निस्वार्थ सेवा में गुंथे हुए फूलों की एक माला है। दार्शनिक कोण से अगर हम रामायण को जानने की कोशिश करें तो इसमेंअध्यात्मिकता का भरपूर रस मिलता है। वास्तव में, रामायण ऐसे इन्द्रधनुष की तरह है, जिसके रंग जितने दिखाई देते हैं, उससे ज्यादा इसमें निहित हैं, जिन्हें आँखों से देखा नहीं बल्कि आत्मा से महसूस किया जा सकता हैै। जितने भी सामाजिक, राजनीतिक, प्रशासनिक, मनोविगय्निक विषय हमें हमारे जीवन में विचलित करते हैं, उन को महसूस करने और सफल जीने के लिए है रामायण। रामायण में श्रीराम के साथ साथ दूसरे और पात्रों को भी जानने व समझने की आवश्यकता है जो रामयाण में न सिर्फ एक महत्वपूरण स्थान रखते हैं, साथ ही ज्ञान व बुद्धी का ऐसा भण्डार अपने में समेटे हुए हैं, जिस की जानकारी हमें बहुत कम है। इसीलिय मैंने इस लेखमाला में ऐसे पात्रों को उभारा। इन पात्रों में राजा दशरथ, कौशल्या, सुमित्रा, कैकेयी, सीता, भरत, लक्ष्मण के इलावा मुनि वशिष्ठ, जटायु और जाबली, रावण, कुम्भकरण, श्रुपनाखा, मरीचि, माल्यवान, विभीषण तथा वाली, हनुमान व सुग्रीव थे। रामायण के पात्रों को माध्यम बना कर रामायण में निहित रंगों को संजोने का और पाठकों को रामायण से अन्तरंग करवाने का यह एक प्रयास था।
ज्ञान गंगा को आगे बढ़ाते हुय एक नई श्रंखला पाठकों के सामने अगले सप्ताह से प्रस्तुत की जायगी।



