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असर विशेष: आखिरकार क्यों नहीं सुन रही सरकार “वेले बॉबी” की….

पढ़ें असर न्यूज़ की खास रिपोर्ट..

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“सरबजीत सिंह बॉबी” इस नाम को कौन नहीं जानता।लोग उन्हें ‘वेला बॉबी’ के नाम से जानते हैं।सरबजीत सिंह बॉबी खुद को वेला पुकारे जाने पर बुरा नहीं मानते। बल्कि अब तो यह उनका नाम ही पड़ गया है। बाबी का कहना है कि वे शिमला के लोअर बाजार में जूते-चप्पलों की दुकान चलाने के अलावा साल 2002 से शव वाहन चलाने का काम भी करते थे। उनका कहना है कि उन्होंने काफी साल शव वाहन चलाने का काम करने के बाद कुछ हटकर काम करने का प्रयास किया।

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ब्लैसिंग्स बॉबी की संस्था ऑलमाइटी ब्लैसिंग्स शिमला के कैंसर अस्पताल IGMC में लंगर का संचालन करती है।यहां रोजाना कम से कम तीन हजार लोग चाय-नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का भोजन पाते हैं। यह सेवा बिल्कुल निशुल्क है। इसके अलावा सरबजीत की संस्था कैंसर और अन्य गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिए निशुल्क एंबुलेंस सेवा का संचालन करती है।सरबजीत सिंह की संस्था ऑलमाइटी ब्लैसिंग्स के लंगर में अब रोजाना तीन हजार से अधिक लोग निशुल्क भोजन पाते हैं।

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देश भर से बड़ी संख्या में ऐसे मरीज यहां पर भोजन करने के लिए पहुंचते हैं, जो बेहद गरीब और असहाय होते हैं। सरबजीत सिंह बॉबी का कहना है कि उन पर सरकार द्वारा कुछ दिनों ने आरोप भी लगाए गए थे कि वह इस लंगर को चलाने के लिए इतना पैसा कहां से लाते हैं। उन्होंने कहा कि जो भी लोग लंगर में खाना खाने के लिए आते हैं वह उन सभी को एक समान समझते हैं उनमें किसी भी तरह का जाति से संबंधित या उच्च नीच से संबंधित भेदभाव नहीं करते हैं। सरबजीत बॉबी का कहना था कि उन्होंने रोटी बैंक शुरू किया, जिसका उद्देश्य था सभी घरों से रोटी लंगर में पहुंचे और मरीजों को मिले। उनका कहना था कि उन्होंने 25 हजार स्कूली छात्रों को रोटी बैंक के साथ जोड़ा। जिसका उद्देश्य यह था कि बच्चों को बांटने की आदत पड़े और बांट कर खाने का आनंद उन्हें पता चले।

इसके बावजूद भी सरकार उनकी किसी भी तरह से कोई भी मदद नहीं कर रही ना ही उन्हें प्रोत्साहन दे रही है। सरकार अभी भी उनके इस काम के खिलाफ है जिसकी वजह से उन्हें लंगर करने में बहुत सी कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ रहा है। परंतु इसके बावजूद भी उन्होंने अभी तक लंगर को एक भी दिन बंद नहीं रहने दिया।

Deepika Sharma

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