

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी की कलम से…
हनुमान जी का स्थान किष्किन्धा में कैसा था और उनके सुग्रीव के साथ सम्बन्ध किस प्रकार के थे,आईय जानने का प्रयत्न करते है।

सुग्रीव हालांकि उनके राजा थे, लेकिन सुग्रीव हनुमान जी के व्यक्तित्व से भली भांति परिचित भी थे और उनकी हर बात को ध्यानपूर्वक सुनते भी थे। जब सुग्रीव ने श्रीराम व लक्ष्मण को वन में विचरते देखा तो उनके व्यक्तित्व से वो प्रभावित भी हुए और भयभीत भी। उसको लगा कि इन दोनों को उसके भाई व शत्रु वाली ने उसको मारने के लिए भेजा है। उस समय हनुमान जी ने उनको समझाया कि वे किसी प्रकार का डर मन में न रखे क्योंकि एक राजा जो बिना सोचे विचारे मन में एक बात बिठा लेता है, वो कुशलतापूर्वक शासनप्रबंघ नहीं चला सकता।

किष्किन्धा का राजा बन जाने के पश्चात सुग्रीव भोग-विलास में इतना खो गया कि वो यह भी भूल गया कि उसने श्रीराम को उनकी सहायता करने के लिए वचन दिया था। जब थोड़ा और समय निकल गया तो श्रीराम व लक्ष्मण चिन्तन करने लगे कि ऐसा क्या कारण हो सकता है कि सुग्रीव उको भूल सा ही गया है। लक्ष्मण सुग्रीव के आचरण पर अत्यंत क्रोधित हो गये। श्रीराम ने उनको निर्देश दिया कि वे जा कर सुग्रीव को मिलें और उसकी और से कुछ भी यत्न न होने के कारण का पता लगायें। श्री राम ने यह तक भी कह दिया कि समस्त संसार में सबसे नीच वो व्यक्ति होता है जो कि ऐसे लोगों की इच्छा पूर्ती का वचन दे जिन्होंने उसके लिए अच्छा किया हुआ हो और अपने उस वचन को भूल जाय। इसके विपरीत ऐसा व्यक्ति जो कि अपने दिए वचन को पूर्णतया से निभा दे, उसका स्थान सबसे ऊंचा होता है। सुग्रीव, जिसके साथ हमने एक मित्रता का सम्बन्ध बनाया था, वो उस सम्बन्ध की नींव को ही भूल गया है। ऐसा विचार कर श्रीराम ने लक्ष्मण को यह भी कहा कि जब सुग्रीव को मिलें तो अपने गुस्से पर काबू कर के ही बात करे,

लक्ष्मण सुग्रीव के महल की ओर जाते है। वहां पहुँच कर लक्ष्मण ने जब यह पाया कि सुग्रीव मय के नशे में चूर हो कर रंगरलियाँ मनाने में मस्त है तो लक्ष्मण को बहुत गुस्सा आ गया। लक्ष्मण ने सुग्रीव को खूब बुरा भला सुनाया और सुग्रीव मन ही मन में बहुत भयभीत भी हो गया। ऐसे में हनुमान उसकी मदद के लिए आगे आये और उन्होंने सुग्रीव को बहुत ही मित्रता भरी और परिपक्व सलाह दी। इसे वाल्मीकि रामायण में (किष्किन्धा काण्ड, सर्ग ३२, शलोक १०, १२,१३,१४,१५,१६,१७,१८,२०) में इस प्रकार से दर्शाया गया है।

हनुमान जी सुग्रीव को कहते हैं कि आपको आपके प्रति स्नेह व प्रेम से की गयी मदद भूलनी नहीं चाहिए। श्रीराम ने बाली का वध आप के हित हेतु ही तो किया था। आपके प्रति स्नेह की भावना रख कर ही श्रीराम ने ( जो कि रघु के वंश से हैं) अपने छोटे भ्राता को आपके पास भेजा है, वो भाई जो कि अत्यंत ही किस्मत वाला है, इस बात में तो किसी प्रकार का शक ही नहीं है। आप विचारहीन हो चुके हो। आपको ज्ञात ही नहीं हो पा रहा कि समय निकलता जा रहा है और शरद ऋतू अपनी हरियाली लेकर चारों ओर फैल चुकी है। नभ से बादल पूर्णतया छंट चुके है और चारों ओर चमकीले तारों और ग्रहों ने अपना जाल बना लिया है।
चारों दिशाएँ, नदियाँ और झीलें भर चुकी है और प्रसंन्न मुद्रा में दिख रही हैं। आप भूल चुके हैं कि सैनिक कार्यावाही का समय कब का आ चुका है, हे वानर श्रेष्ठ आप भुलक्कड़ हो गये हैं। इसीलिये लक्ष्मण आपको आपका कर्तव्य याद दिलाने आया है।
महान आत्मा श्रीराम के तीखे वचन, (जो कि स्वंय अत्यंत कष्ट में हैं) जो कि लक्ष्मण के मुख द्वारा निकल रहे हैं,आपको सहन कर लेने चाहिय क्योंकि ऐसे वचन ऐसे व्यक्ति के हैं जो कि अपनी पत्नी को खो चुका है। निस्संदेह, मेरा लक्ष्मण को शांत करने के सिवा और कुछ भी विचार नहीं था, जिससे कि आप उनसे मिलें क्योंकि आपने श्रीराम के साथ एक किस्म का अपराध कर दिया है। हे सुग्रीव, ज्ञात रहे कि एक राजा को परामर्श उसके शानदार मंत्रियों से लेना अति आवश्यक भी होता है और उनका भी यह फ़र्ज़ होता है कि वे अपने राजा को उत्तम परामर्श दें। इन्ही कारणों की वजह से ऐसा संभव हो पाया है कि आपको नाराज़ कर देने के डर को किनारे रख कर मैं आपको कुछ ऐसा बता सकूं जिस पर आप भली भान्ति विचार कर सको। जिसको बार-बार शांत ही करते रहना पड़े, उसे उकसाने की कोई आवश्यकता नहीं होती विशेषतय उस महान आत्मा के द्वारा जिसने भूतकाल में उसके साथ ऐसा कार्य किया हो जिसका वो ऋणी हो। इसलिय,आप श्री राम के चरणों में अपना सर झुका कर व साथ ही अपने पुत्रों व औरों को साथ ले कर उनके साथ अपने किय गये वायदे को पूर्ण करें।

इस प्रकार से हमने जाना है कि हनुमान जी सिर्फ ताकत व शौर्य के स्वामी ही नहीं बल्कि एक महाज्ञानी, कुशल तार्किक, विद्वान, कवि, दूत आदि अनेकों विशेश्तायों को स्वंय मे समाये हुए थे। हमें उनके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व से स्वंय को परिचित करवाना अत्यंत आवश्यक है।


