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असर विशेष : ज्ञान गंगा “राम राज्य – सुशासन” के सिद्धांत ( भाग-3) “शासन प्रबन्धन ” 

लेखक रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी की कलम से....

 

लेखक रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी

श्रीराम ने मंत्रिपरिषद के गठन व मंत्रियों के चुनाव के बाद, भरत से अनेकों प्रश्न किए व उनको शासन प्रबन्धन का जो ज्ञान दिया, उसका वर्णन वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण के अयोध्याकाण्ड के १००वे सर्ग के श्लोकों में मिलता है। श्रीराम ने भरत से पूछा कि क्या तुम यह सुनिश्चित करते हो कि तम्हारे सेवकों को समय पर वेतन मिलता है और उसमे किसी प्रकार की देरी तो नहीं हो जाती?

क्योंकि समय पर वेतन न मिलने से सेवक अपने स्वामी के प्रति क्रोध से भर जाते हैं। क्या तुमने अपना राजदूत ऐसे सुलझे व सयाने व्यक्ति को नियुक्त किया है जो कि चतुर, ज्ञानी, हाज़िर-जवाब होने के साथ संदेशों को उचित रूप से पहुंचा सकता हो और जिसको सही व गलत का अंतर भली भांति आता हो? क्या तुम्हारे वन जो कि हाथियों के घर होते है, सदैव हरे भरे रहते हैं? तुम्हारे राज्य में दूध देने वाली गायों की कमी तो नहीं है? घोड़ों , हाथियों व ह्थ्नियों की संख्या पर विशेष ध्यान रखना क्या तुम्हारी आय तुम्हारे व्यय के अनुपात से कम तो नहीं है?

देखना कहीं तुम्हारा धन फिजूलखर्च लोगों के हाथ न चला जाए। इस बात का भी विशेष ध्यान रखना कि तुम्हारा धन धर्म सम्बन्धी कार्यों, विद्वानों, अचानक पधारे मेहमानों, मित्रों व योद्धाओं के लिए सदा पर्याप्त है। मुझे आशा है कि किसी भी नेक आत्मा के साथ किसी प्रकार का अन्याय नहीं होता होगा और उसे किसी लोभ में आकर दोषी तो नहीं ठहरा दिया जाता चाहे किसी क़ानून की किताब में उसका किसी प्रकार का दोष न हो। जो भी व्यक्ति चोरी करता पकड़ा गया हो, जिस पर जुर्म भी साबित हो रहा है, किसी भी लालच व प्रलोभन का सहारा लेकर बच तो नहीं जाता। अगर किसी रसूखदार व आम आदमी में अनबनी हो जाए तो क्या तुम्हारे मंत्री बिना किसी पक्षपात के ऐसे झगड़े को सुलझाते हैं? 

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भरत, क्या तुम सयानों, बच्चों, व चिकित्सकों को भेंट, स्नेह व प्रेमपूर्वक सरल वचनों से जीत लेते हो? क्या तुम अपने शिक्षकों, गुरुओं, बुजुर्गों, देवों, अकस्मात आ गये मेहमानों, रास्ते पर लगे पेड़ों (जो कि देवताओं के प्रतीक होते है) और विद्वानों (जिन्होंने अपनी विदुत्ता, सादगी व उच्च चरित्र के साथ अपने जीवन का उदेश्य प्राप्त कर लिया है) इन सभी को उचित आदर व सम्मान देते हो? मुझे आशा है कि अधिक धन दौलत व ऐश्वर्य की लालसा में तुम कहीं धर्म तो नहीं भूल जाते और कहीं इतना अपने धार्मिक कर्तव्यों में तो नहीं खो जाते कि अपने सांसारिक उत्तरदायित्व ही भूल जाओ। कहीं तुम अपनी इन्द्रियों के वश में आकर अपने सांसारिक व धार्मिक कर्तव्य से विमुख तो नहीं हो जाते। भरत, क्या तुम गुस्से या लालच में आकर झूठ व छलावे वाली बातें तो नहीं करते? कहीं तुम निर्णय लेने में विलम्ब तो नहीं कर देते? कहीं तुम शासन सम्बन्धी निर्णय लेते समय अपने ज्ञानी सलाहकारों को अनदेखा तो नहीं कर देते और विपरीत सोच वालों की सलाह तो नहीं लेने लग जाते? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम राज्य के भेद सीने में छुपा कर नहीं रख पाते? अब जो बातें मैं तुम्हें बताने जा रहा हूँ, उन्हें ध्यान से सुनना। तीन प्रकार की सांसारिक इच्छाएं होती है जो कि हर मनुष्य प्राप्त करना चाहता है। धार्मिक प्रतिष्ठा, धन दौलत तथा इन्द्रियों की इच्छा पूर्ति। तीन प्रकार की सत्ता होती है। ऊर्जा, दूसरों को वश में रखना व अन्य के विचारों को प्रभावित करना। विद्या ग्रहण हेतु तीन प्रकार की शिक्षा होती है। वेद, कृषि – व्यापार व राजनीति शास्त्र का ज्ञान। 

भरत , ऐसे बीस प्रकार के राजा के साथ किसी प्रकार की संधि अथवा बातचीत न करना जो कि १) स्वंय अभी बच्चा हो। २) वृद्ध हो। ३) जो बहुत समय से रोग ग्रस्त हो। ४) जिसको उसके अपने परिजनों ने ही त्याग दिया हो। ५) जो जल्द ही डर जाए। ६) जो कायरों से घिरा हुआ हो। ७) जो लालची हो। ८) जिस के संगी साथी लालची हो।९) जिसने अपने मंत्रियों व अन्य सभासदों को नाराज़ कर रखा हो। १०) जो अत्यधिक विलासी हो। ११) जो चंचल वृति वाले लोगों से परामर्श करता हो। १२) जो देवों व विद्वानों के विरुद्ध बोलता हो। १३ ) जो अभागा हो। १४) जो भाग्यवादी हो। १५ – १६ ) जो अकालग्रस्त व असैनिक हो। १७) जो अधिकतर घर से बाहर ही रहता हो। १८) जिसके अनगिनत शत्रु हो। १९) जो विपत्ती व किस्मत की गिरफ्त में हो और २०) जो सच्चाई व नेकी पर नहीं चलता हो। 

भरत, क्या तुम शास्त्रों के अनुसार कुछ विशेष विद्वानों के साथ ही एक जुट होकर सलाह परामर्श करते हो अथवा अलग अलग ताकि उनमें किसी प्रकार का मतभेद न हो और तुम्हारे राज्य के भेद बाहर न चले जाएँ? क्या तुम उस सदमार्ग पर चलते हो जिस पर हमारे पिता व हमारे पूर्वज चलते थे? वो मार्ग जो कि नेकी व धर्म का है। 

एक राजा का राजधर्म जैसा कि बताया गया है, क्या हमारे नेता इस के बारे में जानते हैं? सुशासन के इन सिद्धांतों को यह कह कर दरकिनार कर दिया जाता है कि ये सब सम्भव नहीं है, तो फिर क्या सम्भव है?

Deepika Sharma

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