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कानून की किताब और ज़मीनी हक़ीक़त के बीच फँसी भारतीय महिला

महिला सुरक्षा बनाम जमानत कानून

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असर न्यूज़ | विश्लेषणात्मक कॉलम

भारत का संविधान हर नागरिक को समान अधिकार देता है, वहीं आपराधिक न्याय प्रणाली आरोपी को निर्दोष मानने के सिद्धांत पर आधारित है।
लेकिन जब मामला महिलाओं के विरुद्ध जघन्य अपराध, विशेषकर बलात्कार जैसा हो — तब एक बुनियादी टकराव सामने आता है:

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आरोपी के अधिकार बनाम पीड़िता की सुरक्षा

उन्नाव रेप केस में दोषी पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को मिली जमानत ने इसी टकराव को फिर उजागर कर दिया है।


🔴 जमानत कानून: आरोपी के अधिकारों की ढाल

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और न्यायिक परंपरा के अनुसार:

  • जमानत नियम है, जेल अपवाद

  • अपील लंबित रहने तक सजा निलंबन का अधिकार

  • लंबे समय तक जेल में रहने को मानवाधिकार उल्लंघन माना जाता है

👉 कानूनी तर्क

न्यायालय यह मानता है कि:

  • हर दोषसिद्धि अंतिम नहीं होती

  • ऊपरी अदालत में निर्णय बदल सकता है

  • न्याय में देरी आरोपी को अनावश्यक दंड न दे

⚖️ यह कानून का मानवीय पक्ष है — लेकिन सिर्फ आरोपी के लिए।


🧍‍♀️ महिला सुरक्षा: कानून का सबसे कमजोर पक्ष

अब सवाल उठता है —
जब दोषी जमानत पर बाहर आए, तब पीड़िता का क्या?

ज़मीनी सच्चाई

  • पीड़िता सामाजिक, आर्थिक और मानसिक रूप से कमजोर

  • आरोपी अक्सर प्रभावशाली, राजनीतिक या संपन्न

  • धमकी, दबाव और “समझौते” की आशंका

  • सुरक्षा व्यवस्था काग़ज़ों तक सीमित

👉 यही कारण है कि पीड़िताएं कहती हैं —
“जमानत हमारे लिए आज़ादी नहीं, डर है।”


🚨 उन्नाव केस: कानून और नैतिकता का टकराव

उन्नाव रेप केस में:

  • दोष सिद्ध हो चुका है

  • आजीवन कारावास की सजा मिल चुकी है

  • पीड़िता पहले ही जानलेवा हमले झेल चुकी है

फिर भी, जमानत का आदेश यह सवाल खड़ा करता है:

क्या सभी मामले समान होते हैं?
या सत्ता और प्रभाव कुछ मामलों को “विशेष” बना देते हैं?


🏛️ न्यायपालिका की मजबूरी या सीमाएँ?

न्यायालय:

  • कानून की भाषा में बोलता है

  • भावनाओं से नहीं, दस्तावेज़ों से निर्णय करता है

लेकिन जब:

  • पीड़िता खुलेआम असुरक्षा जताए

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  • अपराधी का आपराधिक इतिहास स्पष्ट हो

तो क्या न्यायपालिका को असाधारण सावधानी नहीं बरतनी चाहिए?

यही वह बिंदु है जहाँ
कानून और न्याय अलग-अलग रास्तों पर चलते दिखते हैं।


⚖️ गुण–दोष का संतुलित विश्लेषण

✔️ जमानत कानून के गुण

  • संविधानिक अधिकारों की रक्षा

  • न्यायिक निष्पक्षता

  • राज्य के दमन से सुरक्षा

  • अपील की सार्थकता

महिला सुरक्षा के संदर्भ में दोष

  • पीड़िता के डर की अनदेखी

  • सामाजिक संदेश: “दोषी भी सुरक्षित”

  • अन्य पीड़िताओं का मनोबल टूटना

  • रिपोर्टिंग में गिरावट का खतरा


🧠 समाज की भूमिका: सिर्फ आक्रोश नहीं, सुधार

हम अक्सर:

  • घटना पर गुस्सा होते हैं

  • फैसले पर ट्वीट करते हैं

  • फिर भूल जाते हैं

लेकिन असली सवाल है:

  • क्या हमने कभी जमानत कानून में पीड़िता-केंद्रित दृष्टि की माँग की?

  • क्या हम चाहते हैं कि अदालतें पीड़िता की सुरक्षा रिपोर्ट को अनिवार्य मानें?


✍️ असर न्यूज़ का स्पष्ट मत

असर न्यूज़ यह मानता है कि:

बलात्कार जैसे अपराधों में
जमानत पर निर्णय केवल कानूनी नहीं,
नैतिक और सामाजिक भी होना चाहिए।

हम यह नहीं कहते कि:

  • आरोपी के अधिकार छीने जाएँ

लेकिन यह ज़रूरी है कि:

  • पीड़िता की सुरक्षा पहली शर्त बने

  • प्रभावशाली दोषियों के लिए सख्त मानक हों

  • जमानत = सुरक्षा ऑडिट + निगरानी + जवाबदेही


निष्कर्ष: न्याय तभी पूरा है, जब डर न बचे

यदि जमानत के बाद:

  • पीड़िता भय में जीए

  • परिवार असुरक्षित हो

  • समाज गलत संदेश ले

तो यह न्याय नहीं,
कानूनी औपचारिकता मात्र है।

महिला सुरक्षा बनाम जमानत कानून की यह बहस
दरअसल भारत के न्याय विवेक की परीक्षा है।


🕊️ असर न्यूज़ — सामाजिक सरोकार के साथ
हम सवाल उठाते रहेंगे,
हम पीड़ित की आवाज़ बनेंगे,
और यह याद दिलाते रहेंगे कि
कानून का अंतिम उद्देश्य इंसान की सुरक्षा है, न कि केवल प्रक्रिया।

Deepika Sharma

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