असर विशेष: निजी बसों का टाइम ‘गुप्त’, जनता को फिर भरोसा सरकारी बसों पर
शहर में लंबी दूरी की बसों का प्रवेश बंद, पर निजी बसों की समयसारिणी का अता-पता नहीं

शिमला।
प्रशासन ने भले ही शहर के भीतर लंबी दूरी की बसों का प्रवेश रोकने के आदेश जारी कर दिए हों, पर सवाल यह है कि क्या नई व्यवस्था जनता के लिए राहत बनेगी या नई मुश्किल?
दरअसल, निजी बसों का टाइम टेबल आज भी जनता की नज़रों से ओझल है। टूटू, ढली, शोघी और संजौली जैसे इलाकों से शाम सात बजे के बाद निजी बसों का कोई अता-पता नहीं रहता। ऐसे में रोज़ाना यात्रा करने वाले लोगों को मजबूरी में सरकारी बसों के भरोसे रहना पड़ता है।
जनता पूछ रही है — जब प्रशासन ने व्यवस्था बदलने का एलान कर दिया, तो निजी बस संचालकों को तय समयसारिणी सार्वजनिक करने का आदेश क्यों नहीं दिया गया? बड़े बस स्टेशनों पर कोई स्पष्ट सूचना नहीं है कि आख़िरी बस कब तक मिलेगी।
यात्रियों का कहना है कि अगर प्रशासन सच में सुविधा देना चाहता है, तो सिर्फ़ नई व्यवस्था का एलान नहीं, बल्कि निजी बसों की समयसारिणी को भी पारदर्शी बनाना होगा। वरना “नई व्यवस्था” जनता के लिए बस नई परेशानी साबित होगी
जनता की राय:
यात्री दीपिका ने कहा, “सरकार तो व्यवस्था बदल देती है, पर जनता को टाइम टेबल के भरोसे छोड़ देती है।”
रोज़ सफर करने वाली शालू वर्मा का कहना है, “शाम को बस नहीं मिलती, फिर टैक्सी वाले राजा बन जाते हैं।”
एक बुज़ुर्ग यात्री ने हंसते हुए कहा, “निजी बसों का टाइम तो भगवान जाने, कई बार तो टाइम के चक्कर में आपस में लड़ाई करने लग जाते हैं और जब देरी हो जाए तो बहुत ही तेज़ी से बस दौड़ाते हैं और सवारियों को ठूँस कार्य चढ़ाते है
हम तो अब सरकारी बसों के इंतज़ार में लग जाते हैं।”
लोगों का कहना है कि नए आदेश से तभी राहत मिलेगी जब निजी बसों का टाइम भी जनता के सामने लाया जाए। वरना यह नई व्यवस्था सिर्फ कागज़ पर “सुविधा” और ज़मीन पर “समस्या” बनकर रह जाएगी।



