सम्पादकीय

असर संपादकीय : सरकार चाहे तो न्यूटन के तीसरे नियम पर प्रयोग करवा कर भारत के लिए ले जाय नोबेल प्राइज़

अजय शर्मा की कलम से...

सरकार चाहे तो न्यूटन के तीसरे नियम पर प्रयोग करवा कर भारत के लिए नोबेल प्राइज़ ( Nobel Prize) ले सकती है …खर्च लगभग 10 लाख रुपये आएगा . शिक्षा विभाग के डिप्टी डायरेक्टर का कहना है कि वह

 

 

 

 

 

 

…….

 

**सरकार के आदेशों पर रिटायरमेंट के वाबजूद भी अजय शर्मा 24×7 , इस प्रॉजेक्ट पर काम करने को तैयार है।

कौन है अजय शर्मा अजय शर्मा की कलम से.……….

अजय शर्मा ने असंभव को संभव कर दिखा दिया है. आज दुनिया के बड़े बड़े वैज्ञानिक मान रहें हैं की कि न्यूटन के 335 वर्ष पुराने तीसरे नियम में खामी है . यह नियम वस्तु के आकार की अनदेखी करता है, जो प्रयोगों में महत्वपूर्ण फॅक्टर है. इस लिए नियम में संशोधन संभव है.

 

**यह खोज किसी अमेरिकन या इंग्लेंड या यूरोप के वैज्ञानिक ने नही की है. बल्कि हिमाचल के अजय शर्मा ने की है.***

 

कुछ प्रयोग बाकी है . अजय शर्मा के लिए दुख की बात यह है कि वे 31 मार्च 2021 को बिना प्रयोग किए ही रिटायर हो रहें हैं . इस टोपिक पर अजय शर्मा ने वर्षो तक पागलपन की हद तक मेहनत की है. तब वैज्ञानिक मानने लगे हैं

 

पहले तो वैज्ञानिको को विज्ञान के भगवान न्यूटन के नियम की खामी को समझाया …. वैज्ञानिक समझ भी गये . पर फिर प्रयोग आड़े आ गये . कहीं से प्रयोगो की सुविधाएँ नहीं मिली है अजय प्रयोग अकेले नहीं कर सकते है.

 

वे 31 मार्च 2021 को रिटायर जाएँगे …फिर इस शोध का क्या होगा …जिस से 137 करोड़ भारतीयों का सिर गर्व से उँचा हो सकता है. ….. भारत का नाम दुनिया के हर स्कूल तक जा सकता है.

 

Part II

किन -2 संस्थानों ने अजय को सही कह कर आगे बढ़ने के लिए उत्साहित किया .

 

“अमेरिकन ऐसोसिएन आफ फिजिक्स, टीचरज, (American Association of Physics Teachers) वॉशिंगटन के प्रैजीडैट ने 22 अगस्त 2018 की रिपोर्ट में लिखा है कि अजय के प्रयोगों से न्यूटन का तीसरा नियम संशोधित हो सकता है.”

 

“कांऊसिल आॅफ सांइटिफिक एंड इडस्ट्रियल रिसर्च,( Council of Scientific and Industrial Research ) नई दिल्ली के डाइरेक्टर जनरल ने भी अजय की रिसर्च की जाँच करवाई. रिपोर्ट में डायरैक्टर नैशनल फिजिकल लैबोरेटरी ( National Physical Laboratory) , और सीनियर प्रिसिपल साइटिस्ट, Dr. V P S Awana ने लिखा कि ये प्रयोग मौलिक हैं. अगर ये प्रयोग सफल होते है तो यह एक बहुत बड़ा मौका है.

 

 

अजय को फंड्स लेकर ये प्रयोग करने चाहिए .

 

“और भी कई संस्थानो ने अजय को प्रयोग करने की सलाह दी है. सभी के पत्र लिखित रूप में मौजूद है. सभी रिपोर्टे सरकार को भेजी जा चुकी है और विनती की है की प्रयोगो की सुविधाएँ दी जाएँ. ( All the reports have been sent for Government with prayer to give experimental facilities of funds Rs. 10,00,00 (ten lakhs) “

 

**अगर सरकार से सहायता मिलती है तो अजय दिन रात प्रॉजेक्ट पर काम करने को तैयार है.**

 

335 वर्षो में न्यूटन के लिए ऑर आधारभूत नियमों के लिए यह बहुत बड़ी चुनोती है…..वह भी एक हिमाचली , भारतीय द्वारा.

इस समय पिछले 335 वर्षों से इंग्लेंड के वैज्ञानिक न्यूटन को दुनिया में भगवान का दर्जा हासिल है.

 

 

 

क्या मुश्किल है प्रयोगो में ?

 

पहली मुश्किल : ये प्रयोग अत्यंत आधुनिक उपकरणों से होंगे.

जिन उपकरणों से हम क्रिकेट की गेंद की स्पीड मापतें है कि यह 130 या 90 किलो मीटर प्रति घंटा है .

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उसी तरह के उपकरणों की ज़रूरत है. ये उपकरण ISRO (Indian Space Research Organization), DRDO ( Defence Research Development organization) , HAL ( Hindustan Aeronautical limited)आदि संस्थानो में उपलब्ध हो सकते है. इन की मदद मिलना ज़रूरी है.

 

Then experiments can be done in Rs. 10,00,000/ ( Ten Lakhs). The instruments are needed for few months only for use.

 

पहले तो तो रबर की एक समान संहति/matter (पहले तो मान लो 200ग्राम) और अलग अलग आकारों ( गोल, अर्धगोलाकार, छतरीनुमा, शंकु, त्रिभुज, चतुर्भुज, लम्बी पाईप, फ्लैट या अनियमित आकार आदि।) वस्तुए बनानी है. ये काम आसानी से हो सकता है …..

 

 

 

कैसे होंगे प्रयोग ?

 

(i ) मान लो पहले हम 200 ग्राम की उचित रबर / प्लास्टिक गोल गेंद को 1 मीटर की उँचाई से उचित फर्श ( special floor) पर गिराते है. इस की क्रिया पर Action या force ; भार ( weight 0.2×9.8 = 1.96 न्यूटन ) के बराबर होगी.

 

(ii) जब गोल गेंद फर्श से टकराएगी , तो प्रतिक्रिया उत्पन्न होगी .

इस से गोल गेद उपर की तरफ़ उछलेगी . कुछ हालातों में यह 1 मीटर तक उछलेगी . इस तरह प्रतिक्रिया भी 1.96 न्यूटन होगी

क्रिया = प्रतिक्रिया

और न्यूटन का तीसरा नियम सही पाया जाता है.

 

(iii) फिर हम अलग-2 आकारों ( जैसे गोल, अर्धगोलाकार, छतरीनुमा, शंकु, त्रिभुज, चतुर्भुज, लम्बी पाईप, फ्लैट या अनियमित आकार आदि ) की 200 ग्राम की वस्तूयों को 1 मीटर की उँचाई से गिरातें हैं . इनकी क्रिया भी 1.96 न्यूटन होगी , क्योंकि क्रिया या action आकार पर निर्भर नहीं करती है. सभी वस्तुएँ 200 ग्राम की और एक समान रबर की है, सिर्फ़ आकार ही अलग अलग है. …

प्रतिक्रिया के कारण वस्तुएँ उपर उछलेगी. और यहीं से प्रतिक्रिया मापी जा सकती है.

 

कैसे गल्त होगा न्यूटन का नियम ?

 

(iv) गोल गेंद तो 1मीटर की उँचाई तक उपर ( opposite direction) उछलती है. पर फलेट (स्पाट) वस्तु , 1मीटर नहीं बल्कि 10 या 5 से मी तक ही उपर उठती है. तो अब प्रतिक्रिया कम हुई . पर न्यूटन के नियम के अनुसार प्रतिक्रिया भी 1.96 न्यूटन पर होनी चाहिए. और फलेट (स्पाट) ( like cardboard) वस्तु को भी गोल गेंद क़ी तरह 1 मीटर उँचा उछलना चाहिए क्योंकि दोनो पर क्रिया 1,96 न्यूटन है. न्यूटन की बात यहाँ सही नही बैठती है.

 

(v) फिर हम अलग-2 आकारों (जैसे गोल, अर्धगोलाकार, छतरीनुमा, शंकु, त्रिभुज, चतुर्भुज, लम्बी पाईप, फ्लैट या अनियमित आकार आदि ) की 200 ग्राम की वस्तूयों को 1 मीटर की उँचाई से गिरातें हैं . इनकी क्रिया भी 1.96 न्यूटन होगी , यह आकार पर निर्भर नहीं करती है. प्रतिक्रिया के कारण वस्तूयों को 1 मीटर की उँचाई तक उछलना चाहये.

 

अब हम शंकु को नुकीले सिरे से नीचे गिराते है. फिर शकू को गोल सिरे से नीचे गिराते हैं. अब शंकु भी 1 मीटर की उँचाई तक उपर नहीं उछलता है. इस तरह प्रतिक्रिया कम है . और न्यूटन का नियम सही नहीं है. Newton’s law is not justified in such macroscopic observations. These must be quantitatively and scientifically justified.

 

ये प्रयोग दुनिया के किसी वैज्ञानिक ने किए ही नहीं है।अजय यही कह रहे है कि इन को करो . वैज्ञानिक अजय के तर्क से सहमत है. प्रतिक्रिया वस्तु के आकार पर भी निर्भर करती है. यह न्यूटन की खामी है. वैज्ञानिक इन्ही प्रयोगों को करने की बात कह रहें हैै, 335 वर्षों में पहली बार यह अजय ने ही यह बात उठाई है…. और न्यूटन को चुनोती दी है.

 

क्या होगा प्रयोगो का रिज़ल्ट ?

 

डेली लाइफ के प्रयोगों में भी ‘वस्तु के आकार’ का रोल है . उसी को वैज्ञानिक ढंग से सिध करना है . न्यूटन की खामी सामने आएगी और अजय का संशोधित नियम ( modified law ) सही साबित होगा. अगर किसी को शक है तो प्रयोग कर के देख ले. 1999 से अजय यह बात कह रहे है.

 

 

Deepika Sharma

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