

एक किसान मूल रूप से आवारा जानवरों से अपने खेत की सुरक्षा हेतु अपने खेत के चारों ओर एक बाड़ लगाता है। आवारा जानवर हमेशा खेत में चुपके से घुस कर फसल खाने के लिए एक अवसर की तलाश में रहते हैं और तदनुसार प्रयास करते रहते हैं। किसान को सदैव सतर्क रहना पड़ता है और यह सुनिश्चित करना होता है कि जहां भी बाड़ कमजोर हो गई है, उसे मजबूत किया जाये। इसके लिए उसे विशेष रूप से रात के दौरान जागना पड़ता है क्योंकि वह जानता है कि आवारा जानवर अंधेरे का लाभ उठाने का प्रयास करेंगे और झुण्ड बना कर आ सकते हैं। इसलिए, सतर्कता, चौकन्नापन और हथियार एक किसान के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं। लेकिन अगर किसान लापरवाह है, परेशान नहीं है, उसके पास कोई बचाव नहीं है, क्या होगा? नियंत्रित करने के बजाय वह जानवरों को अपनी फसल खाने के लिए सुविधा प्रदान करेगा। जो बाड़ मूल रूप से सुरक्षा के लिए है, उसका कोई फायदा नहीं होगा। बाड़ आवारा जानवरों के लिए एक रुकने, विश्राम करने की जगह बन सकती है और एक रक्षक के बजाय बाड़ किसान के लिए मुसीबत बन सकती है और अगर बाड़ स्वयं ही ज़हरीली बन जाये तो फसल की रक्षा करने के बजाय यह इसे खत्म कर देगी।
अब ज़रा अपने जीवन, समाज और देश में विभिन्न प्रकार की बाड़ों की कल्पना करने की कोशिश करें। प्रत्येक मानव की ऐसी इच्छा भी होती है और वो सदैव इस बात का प्रयास भी करता रहता है कि सभी प्रतिकूल परिदृश्यों में उसकी स्वयं की और उसके परिवार की सुरक्षा बनी रहे। यह सुरक्षा मात्र प्राणों तक ही सीमित नहीं होती बल्कि एक सम्मानपूर्वक जीवन, अच्छा चरित्र और एक शांतिपूर्ण और विवादरहित जीवन जीने के लिए होती है और ऐसा संभव हो सके इसकी खातिर जीवन के विभिन्न चरणों में विभिन्न प्रकार के बाड़ लगाये जाते हैं, जो परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए और स्वयं की सुरक्षा के लिए होते हैं। इन बाड़ों की सूची अंतहीन है जो माता -पिता, शिक्षकों, नेताओं, अभिनेताओं, गुरुओं, करीबी रिश्तेदारों ,फिल्मों, नेताओं, कलाकारों, पुलिस, न्यायाधीश , प्रशासन समेत अनगिनत है। सभी बाड़ों का वर्णन और विश्लेषण करना संभव नहीं होगा, लेकिन निश्चित रूप से कुछ जो बहुत महत्वपूर्ण हैं, उन पर चर्चा की जाएगी।
एक बच्चे पर पहली और सबसे महत्वपूर्ण बाड़ उसके माता -पिता की है। कोई भी माता -पिता अपने बच्चों को भटकते हुए न देखना चाहता है और न ही ऐसा इरादा रखते हैं। वे नहीं चाहते कि जब उनके बच्चे बड़े हों तो चोर-उचक्के बनें, अपराध की दुनिया में जाए। लेकिन अपने दिन -प्रतिदिन के जीवन में वही माता -पिता भटक जाते हैं, वे स्वयं नियमों का उल्लंघन करते हैं और जब बच्चे करते हैं, तो उन्हें अनदेखा कर देते हैं, वे उनके बीच ईमानदारी और कर्तव्य पालना की आदत तो क्या ही डालना बल्कि उन्हें मानदंडों का उल्लंघन करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, उन्हें व्यावहारिक होने के लिए कहते हैं और यहां तक कि उन्हें टैक्स चोरी, रिश्वत देना लेना, क़ानून व् नियमों की अवहेलना करना जैसे अपराधों में अपने साथी भी बना लेते हैं। प्रारंभिक चरण में बाड़ खुद ही भ्रष्ट, कमजोर और सड़ी गली हो जाती है और फसल भी वैसी ही हो जाती है। जैसे ही एक बच्चा स्कूल में प्रवेश करता है, एक मजबूत बाड़ के आकार में अगला व्यक्तित्व शिक्षक है। उसे एक स्वर्ण भविष्य की ओर आगे ले जाने के लिए, शिक्षक एक ऐसा मार्गदर्शक, चरित्र निर्माता और रोशनी है जो अपने शिष्य का हाथ थाम कर आगे ले जाने के लिए है। लेकिन अगर शिक्षक स्वयं अपने कर्तव्यों से पीछे हटा हुआ हो, अपने ज्ञान के स्तर में सुधार नहीं कर रहा है, बच्चों को परीक्षा के दौरान रिश्वत ले कर उनको नकल करने में सहायता प्रदान कर रहा है, ड्यूटी पर नशे में आता है, छात्रों का शोषण करता है, गुटबाजी में अनुशासन को तोड़ता है, तो ऐसा शिक्षक किस प्रकार की बाड़ है? इस तरह की बाड़ फसल को बचाएगी या उसे नष्ट कर देगी?
पुलिस और प्रशासन की भूमिका क्या है? अपराध को रोकें, कानून और व्यवस्था बनाए रखें और यह सुनिश्चित करें कि लोग बिना किसी तनाव के शांतिपूर्ण रहें। लेकिन अगर पुलिस और प्रशासन अपराध में भागीदार बन जाए , अगर अपराधों को नियंत्रित करने के बजाय, वे अपराधियों के साथ हाथ मिला लें, तो क्या होगा? यदि प्रशासन कमजोर, धीमा, सुस्त, गैर -उत्तरदायी हो तो क्या होगा? यदि प्रशासनिक मशीनरी नियमों के बजाय बल्कि राजनीतिक नेताओं की सनक पर काम करती है तो क्या होगा? आम आदमी एक उद्धारकर्ता के रूप में उनकी ओर देखता है, उनकी शिकायतों को सुलझाने और उनके कल्याण के लिए काम करने के लिए, यदि प्रशासक उनकी अपेक्षाओं के खिलाफ काम करता है तो क्या होता है? ऐसे हालातों में निराश व् हताश समाज कोई प्रगति नहीं करता है बल्कि मात्र किसी तरह से अपना जीवन निर्वाह करता है। इसका कारण यह है कि बाड़ जो इसे बचाने के लिए है, वास्तव में इसे खा रही है।
समाज और देश के लिए नेताओं की भूमिका क्या है? नागरिकों को नैतिक रूप से मार्गदर्शन करने के लिए, उन्हें वैज्ञानिक स्वभाव के साथ प्रबुद्ध करने के लिए, यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनके द्वारा बनाई गई नीतियां पूरे राष्ट्र की बेहतरी के लिए हैं, कार्य करना और एक मार्गदर्शक की तरह उनके आगे स्वयं को पेश करना। अब मैं इस पर क्या कह सकता हूं? पाठकों के सामने जमीनी वास्तविकता स्पष्ट है। जब राजनीतिक दलों द्वारा राजनीतिक दलों में प्रवेश करने वाले अपराधियों को उचित ठहराया जाता है, तो एक राष्ट्र का भविष्य क्या हो सकता है? जब अशिक्षित व् अनपढ़ लोग नेता बन जाते हैं, जो जाति, धर्म और सामुदायिक कारणों से जीतते हैं, तो वे कौन सी और कैसी दीर्घकालिक नीतियों को बनाएंगे? जब धार्मिक नेता स्वयं एक शानदार जीवन जीते हैं, भोग विलासिता में लीन रहते हैं, स्त्रियों का शोषण करते हैं, तो ऐसे लोग अपने अनुयायियों को क्या नैतिक शिक्षा देंगे?
प्रिय पाठकों, सूची लंबी है लेकिन संदेश स्पष्ट है। स्थिति गंभीर है और सुरंग के अंत में प्रकाश बहुत दूर है। हम एक कदम आगे बढ़ रहे हैं और दो कदम पीछे की ओर। हम गुणवत्ता में जीवन नहीं जी रहे हैं, लेकिन संख्या में समय बिता रहे हैं। किसी को भी किसी भी चीज़ के लिए दोषी नहीं ठहराया जाना है, सिवाय अपने खुद के। समय की मांग है कि हम अपने आप का आत्म निरीक्षण करें, आत्म चिंतन करें, स्वयं को समझाएं, अपने जीवन को निर्धारित करें और सकारात्मक सोच व शुद्ध विचारों के साथ आगे चलें। जीवन अत्यंत मूल्यवान है जो पूरी तरह से जीने के लिए है।




