

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी
हम इस तथ्य से भली- भांति
परिचित हैं कि विभीषण एक बहुत ही सूझबूझ वाला, हमेशा जीवन में संतुलन बनाए रखने वाला और बहुत बुद्धिमान असुर था।
राक्षस जाति में विभीषण सबसे सयाना, शांत स्वभाव का और अत्यंत उदारवादी था। प्रारंभ से ही वह रावण के क्र्त्यों से सहमत नहीं था और उसने भरपूर प्रयास किया कि रावण को समझाया जाए ताकि वो नेकी के मार्ग पर चले, सीता को श्रीराम को वापिस कर दे और श्रीराम से अपनी गलती की माफी मांगे।
लेकिन रावण ने उसकी सलाह कतई नहीं मानी। अंत में दुखी होकर विभीषण ने लंका को त्यागने का और श्रीराम के चरणों में शरण लेने का निर्णय लिया। लेकिन लंका छोड़ने से पहले विभीषण ने एक बार फिर प्रयास किया कि रावण को समझाया जा सके। इसे वाल्मीकि रामायण में इस प्रकार से दर्शाया गया है (सुन्दरकाण्ड सर्ग ४२, शलोक ५,६,७,८,९,१३,१४,१५,१६,१७ )। जब रावण हनुमान को मारने की बात करता है , उस समय भी रावण को विभीषण ने समझाया।
विभीषण का रावण को परामर्श
हे असुरों के शासक, मुझ पर दया करें और मुझे क्षमा करें। मुझ पर दयालुता करें और मेरी प्रार्थना को सुनें। इस धरा पर शासन करने वाले शासक जो कि सदैव ही नेकी के रास्ते पर चलने वाले होते हैं, कभी भी किसी दूत के प्राण हरण नहीं करते। हे राजन, इस वानर को मार देने का निर्णय धर्म व नीति के विरुद्ध होने के साथ-साथ सर्वथा विरोध वाला भी है और सांसारिक प्रथाओं के विपरीत भी है। इसलिए यह कृत्य आपके करने योग्य बिलकुल भी नहीं है। आपको उचित-अनुचित का भली-भांति ज्ञान है। आप के लिए किए गए किसी भी कार्य की आप प्रशंसा करते हैं और आप को एक राजा के कर्तव्यों के बारे में भी अच्छी तरह से पता है। जितने भी जीव हैं, उनमें से उच्च व निम्न के बारे में आप बखूबी भांप जाते हैं और आपको जीवन के लक्ष्य के बारे में भी मालूम है। आप जैसे लोग भी अगर क्रोध का शिकार बन जाएँ तो फिर इतने शास्त्रों व ग्रंथों का अध्यन करने का क्या लाभ? इसलिए, हे शत्रुओं के विनाशक, क्रोध को शांत करें।

हे असुरों के शासक, आपके निकट आना सभी के लिए संभव नहीं है। भली-भाँती व सोच समझ कर, जैसा भी उचित हो, दूत को पर्याप्त सजा ही देनी चाहिए। हे लंकाधीश, शांत हो जाएँ। हे असुरों के राजा, मेरी प्रार्थना को सुनें जिसमें धर्म के रास्ते और सांसारिक यश के सिवा और कुछ भी नहीं है। दूत कैसा भी हो, किसी भी समय व स्थान पर वध के लायक नहीं होता। ऐसा नेक लोगों ने कह रखा है। इसमें कोई शक नहीं है कि यह वानर अत्यंत बलशाली भी है और प्रतिद्वंदी भी। साथ ही उसने अत्यंत नुकसान भी पहुंचाया है। लेकिन फिर भी बुद्धिमान लोग कभी भी दूत का वध नहीं करते क्योंकि वध के अलावा भी बहुत सी सजाएं है जो कि एक दूत को दी जा सकती हैं जिनके बारे में शास्त्रों में बताया गया है। शरीर के किसी भी अंग को भंग कर देना, कोड़े मारने, सर मुंडवा देना-इत्यादि ऐसी बहुत सी सजाएं हैं जिनके बारे में सयाने लोगों ने बता रखा है। दूत का वध कर देना – ऐसी सजा के बारे में न तो सुना है और न ही किसी ने कभी बताया है और इससे भी बड़ी बात यह है कि आप जैसा व्यक्ति जिसने सच्चाई को जान रखा है और सांसारिक सुख सुविधाओं से परिचित है और जो अपने कर्तव्य से जुड़ा हुआ है और जिसने क्या सही है और क्या गलत भी पहचान रखा है, ऐसा व्यक्ति क्रोध का शिकार कैसे हो सकता है? शक्तिशाली लोग कभी भी क्रोध के चंगुल में नहीं फंसते। नेकी के मामले में और सांसारिक नियमों का पालन करने के बारे में आप जैसा कोई दूसरा नहीं है। शास्त्रों का अध्ययन कर लेने में आप का सानी ही नहीं है। आप देवताओं व असुरों में सर्वश्रेष्ठ हो।
विभीषण का रावण को समझाने का अंतिम प्रयास
विभीषण ने पूर्णतया प्रयास किया रावण को समझाने का ताकि वो किसी प्रकार सीता को श्रीराम को वापिस सौंपने के लिए मान जाए और उनके साथ शान्ति कर ले। लेकिन रावण तो श्रीराम के साथ युद्ध करने पर आमादा हो चुका था। विभीषण ने फिर भी अपनी ओर से पूरा यत्न किया और रावण को एक बार फिर समझाने का यत्न किया। इसे वाल्मीकि रामायण में इस तरह से बताया गया है (युद्धकाण्ड सर्ग ९, शलोक८,९,१०,११,१२,१३,१४,१५,१६,१७,१८,२२,)।
मेरे प्रिय भ्राता, जो सयाने लोग होते हैं, वे अपनी वीरता दिखाने हेतु अच्छे अवसर की तलाश में रहते हैं और उसे तभी प्रकट करते हैं जब तीन युक्तियाँ अर्थात समझौता भेंट दे देना और शक के बीज बो देने जैसी तरकीब असफल हो चुकी होती है और भली भांति प्रयोग कर चुकने के बाद, जब उचित अवसर अनुसार बहादुरी दिखाई जाती है, सफलता उनके विरुद्ध आवश्य प्राप्त होती है जो कि असावधान हो चुके हों, जिन के ऊपर किसी अन्य शत्रु ने पहले ही हमला कर दिया हो और जिनकी किस्मत ही उनके विपरीत चल रही हो। आप किस प्रकार से श्रीराम पर विजय हासिल करना चाहते हो जो कि इतने चौकन्ने है, विजय प्राप्त करने हेतु सदैव तत्पर हैं, जिनके साथ दैवीय शक्तियां भी हैं, जिन्होंने अपने गुस्से पर काबू किया हुआ है। उन को काबू करना बहुत ही मुश्किल कार्य है। इस संसार में ऐसा कौन है जो हनुमान को जान सके और उनकी गति का अनुमान लगा सके? वो हनुमान, जो कि स्वंय ही समुंदर को लांघ कर लंका तक आ गए। उस समुन्दर को जो सभी नदियों और झीलों से बड़ा है। श्रीराम के साथ अत्यंत शूरवीर योद्धा हैं और उनकी अपनी शक्ति भी असीम है। हे निशाचर, कभी भी शत्रु की ताकत को कम करके नहीं देखना चाहिए। सबसे बड़ी बात यह भी है कि श्रीराम ने ऐसा कौन सा अपराध राक्षसों के साथ कर दिया कि उनको अपने जन्मस्थान से इतनी दूर आकर ऐसा देखना पड़ रहा है? अगर इसके उत्तर में यह कहा जाए कि रावण ने श्रीराम की धर्मपत्नी का अपहरण इसलिए किया क्योंकि श्रीराम ने हमारे भ्राता खर का वध कर दिया था, तो इसके प्रत्युतर में मैं यह कहना चाहूंगा कि खर ने भी अपनी सीमा का उल्लंघन किया था। उसने श्रीराम पर उनकी कुटिया में जाकर हमला बोल दिया था। हर जीव को यह हक है कि वो अपने प्राणों की रक्षा के लिए उचित सुरक्षा कदम उठाए। अगर सीता का अपहरण इसी द्वेष कारण किया गया था तो हमारा कर्तव्य बनता है कि हम सीता को संभाल कर अपने पास रखें। हमें क्या लाभ होगा अगर हम किसी दूसरे की वस्तु की खातिर झगड़ा करेंगे?
बिना किसी कारण के ऐसे शक्तिशाली राजा के साथ शत्रुता करने का कोई औचित्य नहीं होता, जो कि नीतिवान हो और नैतिकता का पालन करता हो। इसलिए, सीता (मिथिला की राजकुमारी) को वापिस कर देना चाहिए। इससे पहले कि श्रीराम अपने बाणों से लंका को तहस-नहस कर दें, हमें सीता को उन्हें हीरे-जवाहरात व हाथियों सहित लौटा देना चाहिए। इससे पहले कि विशालकाय वानर-सेना, जो कि अत्यंत शक्तिशाली भी है और जिसे पार करना असंभव है, लंका में घुस आये, हमें सीता को श्रीराम को लौटा देना चाहिए। मैं आपसे इस बात की प्रार्थना करता हूँ क्योंकि आप स्वंय बहुत अच्छे हैं – आईए सीता (मिथिला की राजकुमारी) को श्रीराम को वापिस कर दें। कृपया, आप अपना क्रोध त्याग दें, वो क्रोध जो खुशी व नेकी को बर्बाद कर देता है। धर्म का मार्ग अपनाएँ, जिससे प्रसिद्धी व खुशी दोनों बढ़ती है। शांत हो जाएँ, ताकि हम सभी अपने बच्चों, रिश्ते-नातेदारों संग जीवन बिता सकें। सीता को दशरथ पुत्र श्रीराम को वापिस लौटा दें।




