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EXCLUSIVE: खुलासा: प्रवासी श्रमिक आपदा की स्थिति में अनेक चुनौतियों का सामना कर रहे

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के सामाजिक कार्य की छात्रा ईशिता द्वारा श्रमिकों के ऊपर किया गए एक अध्ययन में सामने आया सच

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के सामाजिक कार्य की छात्रा द्वारा श्रमिकों के ऊपर किया गया एक अध्ययन।
“आपदाओं के समय प्रवासी श्रमिकों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए” एक अध्ययन ने बताया जमीनी हालात हिमाचल प्रदेश में प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं और संभावनाओं पर आधारित अध्ययन में सामने आए कई चिंताजनक पहलू
प्राकृतिक आपदाएँ जब भी आती हैं, तो समाज का सबसे असुरक्षित वर्ग सबसे पहले और सबसे ज्यादा प्रभावित होता है — और उनमें से एक हैं प्रवासी श्रमिक। हाल ही में हुए एक सामाजिक अध्ययन में यह सामने आया है कि हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्य में कार्यरत प्रवासी श्रमिक आपदा की स्थिति में अनेक सामाजिक, आर्थिक और मानसिक चुनौतियों का सामना करते हैं, जिन पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता।
इस अध्ययन का उद्देश्य यह समझना था कि आपदा के समय ये श्रमिक कितनी मजबूती दिखा पाते हैं, किन कमजोरियों से जूझते हैं, और कौन-कौन से संरचनात्मक व सामाजिक कारक उनकी मदद या हानि करते हैं।
इस अध्ययन की प्रेरणा सामाजिक कार्य संस्था “Doers NGO” में काम करते समय मिली, जहाँ आपदा प्रबंधन, मानसिक स्वास्थ्य सहायता (MHPSS), और राहत कार्यों से जुड़ने का अवसर मिला। संस्था द्वारा आपदा प्रभावित क्षेत्रों में राहत किट वितरण, समुदाय आधारित जागरूकता कार्यक्रम, तथा प्रवासी श्रमिकों के लिए पुनर्वास और मनो-सामाजिक सहायता जैसी सेवाएं दी जाती हैं। वहाँ कार्य करते हुए यह महसूस हुआ कि आपदाओं के दौरान प्रवासी श्रमिकों की ज़रूरतें अक्सर अनसुनी रह जाती हैं। उसी अनुभव ने इस विषय पर गंभीरता से शोध करने की दिशा दी।
शोध के दौरान हिमाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से प्रवासी श्रमिकों से बात की गई, जिनमें अधिकतर निर्माण कार्य, घरेलू सेवाएँ, कृषि और होटल उद्योग जैसे असंगठित क्षेत्रों से संबंधित थे। शोध में सामने आया कि:
आपदा के समय इन मज़दूरों की आजीविका सबसे पहले प्रभावित होती है।
उनके पास स्थायी आवास, स्वास्थ्य बीमा, और किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा नहीं होती।
मानसिक तनाव और सामाजिक बहिष्कार जैसी समस्याएं आम हैं, खासकर जब वे अपने परिवारों से दूर होते हैं।
सरकारी योजनाओं की जानकारी और पहुँच दोनों ही सीमित होती हैं।
फिर भी, कई श्रमिकों ने अपने साहस, सामूहिक समर्थन और स्थानीय संस्थाओं की मदद से कठिन समय का सामना किया। यही उनकी resilience को दर्शाता है।
अध्ययन में सामाजिक कार्य के दृष्टिकोण से Strength-Based Approach, Ecological Perspective और Crisis Intervention Model जैसे मॉडल्स को आधार बनाया गया, ताकि यह समझा जा सके कि समाज और संस्थाएं इन मज़दूरों की मदद किस तरह से और बेहतर कर सकती हैं।
यह अध्ययन हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हमारे राहत कार्य, नीतियाँ और आपदा योजनाएं वाकई उन लोगों को ध्यान में रखकर बनाई जा रही हैं जो सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं?

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भविष्य की दिशा: क्या होना चाहिए अगला कदम?
इस अध्ययन के निष्कर्षों से यह स्पष्ट होता है कि अब समय आ गया है जब प्रवासी श्रमिकों के लिए विशेष आपदा नीति तैयार की जाए। इस दिशा में सरकार, स्थानीय निकायों और नागरिक समाज को मिलकर काम करने की आवश्यकता है। भविष्य के लिए निम्नलिखित सुझावों पर ध्यान दिया जाना चाहिए:
आपदा प्रबंधन योजनाओं में प्रवासी श्रमिकों को केंद्र में लाना चाहिए, ताकि राहत, पुनर्वास और आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
स्थायी और पोर्टेबल सामाजिक सुरक्षा योजनाएं लागू की जाएँ, जो श्रमिकों की पहचान और अधिकारों की रक्षा करें, चाहे वे किसी भी राज्य में कार्यरत हों।
स्थानीय प्रशासन, NGO और समुदायों के बीच समन्वय को मज़बूत किया जाए, ताकि ज़मीनी स्तर पर राहत कार्य समय पर और प्रभावी रूप से पहुँच सके।
मानसिक स्वास्थ्य और मनोसामाजिक सहायता को आपदा प्रबंधन का हिस्सा बनाया जाए, विशेष रूप से प्रवासी वर्ग के लिए।
प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएँ, जिससे श्रमिक अपनी सुरक्षा, अधिकारों और उपलब्ध संसाधनों के बारे में जान सकें।
इसके साथ ही, सामाजिक कार्य के विद्यार्थियों को भी ऐसे विषयों से जुड़ने, जमीनी सच्चाइयों को समझने, और नीति निर्माण की प्रक्रिया में अपनी भूमिका निभाने का अवसर मिलना चाहिए। सामाजिक कार्य के छात्र केवल कक्षा तक सीमित न रहकर जब फील्ड में उतरते हैं, तो वे नीतियों और जमीनी ज़रूरतों के बीच की खाई को भरने का काम करते हैं। ऐसे शोध, फील्डवर्क और अनुभव उन्हें एक संवेदनशील और प्रभावी सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में तैयार करते हैं जो समाज के सबसे उपेक्षित वर्गों के साथ खड़ा रह सके।

प्रवासी श्रमिक सिर्फ श्रमिक नहीं — वे परिवारों के सपनों के वाहक, समाज की रचना में भागीदार और हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। उनके अधिकारों, गरिमा और सुरक्षा की ज़िम्मेदारी हम सबकी है।

 

Deepika Sharma

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