
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के सोशल वर्क विभाग के छात्र गौरव ने “शिमला के कॉलेज छात्रों में नशा‑उपयोग” विषय पर एक गहन शोध किया है। यह अध्ययन शिमला के दो प्रमुख सरकारी कॉलेज — गवर्नमेंट कॉलेज संजौली और गवर्नमेंट कॉलेज कोटशेरा — में किया गया। इस शोध का उद्देश्य युवाओं में नशे के कारणों, उनके जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों और समस्या के समाधान के लिए आवश्यक कदमों को पहचानना था। गौरव का मानना है कि युवाओं को नशे से दूर रखना केवल एक व्यक्तिगत जिम्मेदारी नहीं, बल्कि समाज, शैक्षणिक संस्थानों और सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी है।
शोध में यह सामने आया कि युवाओं में नशे के प्रमुख कारण जिज्ञासा, मित्र‑दबाव, मानसिक तनाव और पारिवारिक समस्याएं हैं। इनमें सबसे गंभीर पहलू मानसिक तनाव का है, जो छात्रों को नशे की ओर धकेल रहा है। पढ़ाई का अत्यधिक दबाव, परीक्षा का डर, करियर को लेकर अनिश्चितता और परिवार की अपेक्षाएँ मिलकर छात्रों पर मानसिक बोझ डालती हैं। कई छात्र इस तनाव से बाहर निकलने के लिए अस्थायी राहत पाने हेतु नशे का सहारा लेने लगते हैं। परिणामस्वरूप उनका शैक्षणिक प्रदर्शन प्रभावित होता है, स्वास्थ्य बिगड़ता है और वे सामाजिक रूप से अलग‑थलग पड़ जाते हैं।
अध्ययन में यह भी पाया गया कि कॉलेज परिसरों और उनके आसपास नशा माफियाओं की सक्रियता युवाओं को आसानी से नशे के जाल में फंसा देती है। पुलिस और कॉलेज प्रशासन के बीच पर्याप्त समन्वय की कमी के कारण यह समस्या और गंभीर हो जाती है। इसके अलावा, नशे से जुड़ी सरकारी योजनाओं और हेल्पलाइन की जानकारी छात्रों तक पर्याप्त रूप से नहीं पहुँच पाती, जबकि मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और काउंसलिंग की अनुपलब्धता समस्या को और बढ़ा देती है।
इस शोध से कई महत्वपूर्ण नई खोजें सामने आईं। पहला, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर छात्रों के लिए विशेष काउंसलिंग सेंटर की ज़रूरत है। दूसरा, कॉलेज प्रशासन और पुलिस को मिलकर कॉलेज परिसरों और आसपास के क्षेत्रों में नशा माफियाओं पर सख़्त निगरानी रखनी चाहिए। तीसरा, सरकार को युवाओं के लिए स्कूल और कॉलेज स्तर पर नशा‑निवारण पाठ्यक्रम शुरू करने चाहिए, ताकि उन्हें समय रहते जागरूक किया जा सके।
गौरव के अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि कॉलेजों में नशा‑निवारण समितियों का गठन किया जाए, मानसिक स्वास्थ्य काउंसलिंग केंद्र स्थापित किए जाएँ और विशेष ड्रग‑अवेयरनेस कैंपेन चलाए जाएँ। पुलिस प्रशासन को नियमित निरीक्षण कर नशा माफियाओं पर कार्रवाई करनी चाहिए। सरकार को चाहिए कि नशे से संबंधित कानूनों को और सख्त बनाए तथा युवाओं को हेल्पलाइन और रिहैबिलिटेशन सेवाओं के बारे में जागरूक करे।
यदि इन सभी कदमों को समन्वित तरीके से लागू किया जाए तो न केवल शिमला बल्कि पूरे हिमाचल प्रदेश को नशे की समस्या से प्रभावी रूप से बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि “युवाओं को नशे से मुक्त करने के लिए केवल कानून पर्याप्त नहीं है, बल्कि शिक्षा, काउंसलिंग, जागरूकता और सामुदायिक भागीदारी को मिलाकर एक समग्र रणनीति तैयार करनी होगी।”



