3 से 8 वर्ष की आयु बच्चों के संज्ञानात्मक विकास की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण चरण

*समग्र शिक्षा के तहत स्कूल रेडीनेस पर वेबिनार का आयोजन*
*समग्र शिक्षा निदेशक राजेश शर्मा ने शिक्षकों को वर्चुअली संबोधित*
*शिमला*
पहली कक्षा तक प्रवेश लेने वाले बच्चों की पढ़ाई शुरू करने से पहले उन्हें मानसिक रूप से तैयार करने के उद्देश्य से विद्या प्रवेश यानी स्कूल रेडीनेस कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसी संदर्भ में समग्र शिक्षा की ओर से प्रदेश भर के प्राथमिक शिक्षकों के लिए एक वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार में समग्र शिक्षा निदेशक राजेश शर्मा ने शिक्षकों को वर्चुअली संबोधित किया और स्कूल रेडीनेस कार्यक्रम पर उनका मार्गदर्शन किया। इस वेबिनार में प्रदेश भर से शिक्षक जुड़े।
राजेश शर्मा ने कहा कि 3 से 8 वर्ष की आयु बच्चों के संज्ञानात्मक विकास की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण चरण है। इस समय बच्चों का मस्तिष्क तेजी से विकसित होता है और सोचने, समझने, सीखने तथा समस्याओं को हल करने की क्षमताएं आकार लेती हैं। इस अवस्था में शिक्षक की भूमिका सिर्फ पढ़ाने की नहीं, बल्कि बच्चे के मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास को पोषित करने की होती है। खेल आधारित, गतिविधि आधारित और आनंददायक शिक्षा द्वारा बच्चों को सहज रूप से सीखने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
*नीड-बेस्ड शिक्षा और डायग्नोस्टिक टीचिंग की आवश्यकता*
राजेश शर्मा ने शिक्षकों से आग्रह किया कि हर बच्चे को उसकी जरूरत के अनुसार पढ़ाएं क्योंकि हर बच्चा अलग होता है और उसकी सीखने की गति और रुचि भी भिन्न होती है। उन्होंने डायग्नोस्टिक टीचिंग (Diagnostic Teaching) का उल्लेख करते हुए कहा कि शिक्षक पहले बच्चों की ज़रूरतों को पहचानें और उसके अनुसार पाठ्य सामग्री व शिक्षण पद्धति अपनाएं।
शिक्षक अपने अनुभव और अवलोकन के आधार पर यह तय कर सकते हैं कि किस तरह का टीचिंग-लर्निंग मैटीरियल (TLM) और कैसा कक्षा का वातावरण बच्चों के लिए अधिक प्रभावी रहेगा।
राजेश शर्मा ने शिक्षकों से कहा कि वे इनोवेटिव तरीके अपनाएं ताकि पढ़ाई बच्चों को बोझ नहीं, बल्कि एक खेल लगे। बच्चों के लिए ऐसे क्लासरूम और शिक्षण सामग्री का निर्माण करें, जहां वे उत्साह के साथ स्कूल आएं। उन्होंने कहा कि स्थानीय स्तर पर टीएलएम तैयार करना अधिक प्रभावी और व्यावहारिक हो सकता है। उन्होंने शिक्षकों को ‘बॉटम अप’ अप्रोच अपनाने और नीति-निर्धारण में सुझाव देने के लिए प्रोत्साहित किया।
*अभिभावकों की भागीदारी और ‘पहली शिक्षक’ कार्यक्रम*
समग्र शिक्षा निदेशक ने शिक्षकों को यह भी सुझाव दिया गया कि वे अभिभावकों, विशेष रूप से माताओं की भागीदारी को बढ़ावा दें। हिमाचल सरकार द्वारा शुरू किए गए ‘पहली शिक्षक’ कार्यक्रम के तहत बालवाटिका स्तर के बच्चों की माताओं को विभिन्न गतिविधियों में शामिल किया जा रहा है ताकि बच्चों के घर और स्कूल दोनों स्थानों पर उनका संज्ञानात्मक विकास हो सके।
राजेश शर्मा ने कहा कि निपुण भारत मिशन के तहत हिमाचल प्रदेश में ‘निपुण हिमाचल’ नाम से कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य बच्चों को प्रारंभिक वर्षों में ही आधारभूत साक्षरता एवं संख्या ज्ञान (FLN) प्रदान करना है। स्कूल रेडिनेस कार्यक्रम इसी दिशा में एक मजबूत कदम है।
*असर रिपोर्ट में हिमाचल का प्रदर्शन सराहनीय*
राजेश शर्मा ने हिमाचल की ASER रिपोर्ट में बेहतर प्रदर्शन पर शिक्षकों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह शिक्षकों की मेहनत और समर्पण का परिणाम है, जिससे राज्य के बच्चों के सीखने के स्तर में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। उन्होंने कहा कि शिक्षक न केवल कक्षा के मार्गदर्शक हैं, बल्कि नीति-निर्माण के महत्वपूर्ण सुझावदाता भी हैं। वे अपने अनुभव से सरकार को सुझाव दे सकते हैं।
*रेडीनेस पैकेज तैयार करने के साथ ही शिक्षकों को प्रशिक्षित भी कियाः मंजुला शर्मा*
वेबिनार के दौरान निपुण मिशन की राज्य संयोजक मंजुला शर्मा ने कहा कि तीन माह का रेडीनेस पैकेज तैयार किया गया है। इसके तहत पाठ्यक्रम शुरू करने से पहले बच्चों को बैठने, सुनने, बोलने, पढ़ने और लिखने के लिए तैयार किया जाता है। इस तरह बच्चों को धीरे-धीरे पुस्तकों से जोड़ने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। उन्होंने कहा कि इसके लिए शिक्षकों की ऑनलाइन व ऑफलाइन ट्रेनिंग भी की गई है। उन्होंने शिक्षकों से कहा कि वे स्कूल रेडीनेस कार्यक्रम को उत्साह के साथ चलाएं ताकि बच्चों को सीखने के लिए तैयार किया जा सके।



