असर संपादकीय: कुछ जुगाड़ू शिक्षक परस्पर तबादले के आधार पर दशकों से शहर के आस पास ही डटे
सुरेंद्र पुंडीर जिलाध्यक्ष हिमाचल प्रदेश प्रवक्ता संघ सिरमौर की कलम से

हिमाचल प्रदेश संभवत भारत का जनसंख्या के अनुपात में कर्मचारियों की संख्या के आधार पर सर्वाधिक कर्मचारी प्रतिशतता वाला राज्य है और कर्मचारियों में भी सबसे अधिक संख्या शिक्षकों की है जो कुल कर्मचारियों का 60 से 70% भाग है । विभिन्न शिक्षा संस्थानों में, विभिन्न शैक्षणिक योग्यता के आधार पर , विभिन्न आयु वर्ग एवं कक्षाओं तथा विभिन्न विषयों को पढ़ाने वाले, विभिन्न पदों पर नियुक्त शिक्षक विभिन्न संगठनों में विभाजित है फलस्वरूप उनकी मांगों में व्यापक विविधता है जिनको तर्कसंगत तथा न्यायोचित प्राथमिकता का क्रम देना न तो विभाग के लिए संभव है न ही नेताओं के लिए। परंतु एक मांग जो शिक्षा, शिक्षक तथा विद्यालय सभी के हितार्थ सशक्त तबादला नीति अथवा तबादला नियम जो संवेधानिक रूप से संरक्षित हो अनिवार्य है, क्योंकि वर्तमान परिदृश्य में जहा कुछ जुगाड़ू शिक्षक परस्पर तबादले के आधार पर प्रत्यक 2 से 3 वर्ष में स्थान परिवर्तन पर भी दशकों से शहर के आस पास ही है वहीं दूसरी ओर गांव में एसे भी शिक्षक है जो दशकों से एक ही विद्यालय में नियुक्त है तथा अभिवावको के बाद अब उनके बच्चो को भी पढ़ा रहे है। ऐसी परिस्थिति में जहां शिक्षको को ही एक्सपोजर नही मिला रहा वहां विद्यार्थियों के एक्सपोजर की कल्पना करना शायद ही उचित हो।
वर्तमान परिदृश्य में उचित , व्यवहारिक तथा सशक्त तबादला नीति के अभाव तथा बढ़ते राजनेतिक हतक्षेप से केवल और केवल शिक्षको के तबादले से संबंधित हजारों मामले माननीय उच्च न्यायालय में विचाराधीन है वही दूसरी ओर सैकड़ों शिक्षक तबादले के संबंध में प्रतिदिन निदेशालय तथा सचिवालय परिसर में हाजरी भरते है जिसके कारण जहां विद्यालयों में वास्तविक कार्यदिवस कम हो रहे हे वहीं मानसिक तथा आर्थिक दबाव में कार्य कर रहे शिक्षकों से पूरी कर्मठता के साथ शिक्षा जैसे सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य के निष्पादन की अपेक्षा करना अतिश्योक्ति होगा।




