हिमाचल में निरंकारी संतसग भवन में भक्ति पर्व समागम आयोजित

‘‘भगवान और भक्त के बीच संबंध भगवान प्रभु ज्ञान के माध्यम से स्थापित होता है। जब भगवान ज्ञान हमारे मन में निवास करता है, तो हमारे जीवन में सच्चे अर्थों में भक्ति शुरू होती है। भक्ति भक्त और भगवान के बीच एक अनोखा और अकल्पनीय रिश्ता है।’’ यह दोतरफा प्रक्रिया है, जहां भगवान अपने भक्त से असीम प्रेम करते हैं और भक्त में भी भगवान के लिए प्रेम का उच्चतम रूप होता है,यह विचार उद्गार जोनल इचार्ज एन पी एस भूल्लर जी शिमला निरंकारी सतंसग भवन में भक्ति पर्व समागम के अवसर पर शिमला, जुग्गा और सुन्नी के आसपास से उपस्थित संत महात्माओं को दिए।
उन्होंने कहा कि सतगुरू माता सुदीक्षा जी महाराज ने निराकार ईश्वर- शाश्वत सत्य- में अटूट विश्वास रखने के लिए मार्गदर्शन किया। जब कोई इस सत्य को जान लेता है और इसके आधार पर अपना जीवन जीता है, तो जानबूझकर लड़खड़ाने की संभावना काफी कम हो जाती है। भले ही हम सांस्कृतिक रूप से किसी भी दिशा में झुके हों; जब हम सत्य पर आधारित मार्ग पर चलते हैं तो यात्रा आसान हो जाती है। हम संतों की नकल करने के बजाय उनके जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन का विकास कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि भक्ति का अर्थ है भगवान को याद करना, अपनी रोजमर्रा की गतिविधियों को करते समय हर पल उनकी उपस्थिति को महसूस करना, और इस प्रकार इसे अपना स्वभाव बनाना। भक्ति अपने स्वार्थ या किसी सांसारिक इच्छा की प्राप्ति के लिए प्रेरित नहीं होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि एक भक्त की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए निष्कर्ष निकाला, जो अपनी सभी जिम्मेदारियों को पूरा करने और अपने जीवन को विकसित करने के लिए काम करते हुए, सभी की मदद करने में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देता है और दूसरों की खुशी का कारण बनता है।
इसके इलावा संत निंरकारी संतसग भवन ठियोग में भी भक्ति पर्व समागम का आयोजन किया गया जिसमें ठियोग,चम्बी, चौपाल, गुम्मा, सैंज और अणू के आसपास के सत महात्माओं ने हिस्सा लिया और निरंकार प्रभु का गुगान किया।



