सम्पादकीय

असर संपादकीय: काट काट के जंगल, प्रकृति में घोला है जहर

मामराज पुंडीर की कलम से..

 

कुदरत के कोहराम घनघोर बारिश, भूस्खलन से देश के उत्तरी राज्य हिमाचल प्रदेश में जान-माल को काफी नुकसान पहुंचा है। हिमाचल प्रदेश तो हिमाचल प्रदेश इस बार देश के पंजाब,असम, उत्तराखंड, दिल्ली समेत देश के उत्तरी राज्यों में इस वर्ष भारी बारिश ने काफी कहर मचाया है और बारिश के कारण जनजीवन अस्त-व्यस्त हुआ है। हिमाचल प्रदेश के हालात तो बहुत ही बुरे हैं। हाल ही में हिमाचल प्रदेश के शिमला में लैंडस्लाइड की चपेट में एक शिवमंदिर आ गया। राज्य मेें बारिश से पिछले कुछ समय में ही कम से कम 60 लोगों की मौत हुई है। कभी लैंडस्लाइड तो कभी बादल फट रहे हैं, नदियां उफान पर बह रही हैं। आज पहाड़ी क्षेत्रों में ढलान वाले क्षेत्र भारी वर्षा से पूरी तरह संतृप्त हैं और इसके कारण बहुत बार भूस्खलन होता है, जो परेशानी का कारण बनता है। वर्तमान में बारिश को लेकर रेड अलर्ट जारी किया गया है। जानकारी मिलती है कि हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश के रेड अलर्ट के बीच राज्य में जगह-जगह बादल फटने और भूस्खलन से 80 से ज्यादा लोगों की मौत गई। करीब 30 लोगों के मलबे में दबने और बहने से लापता होने की खबरें हैं। बारिश, भूस्खलन के कारण सैकड़ों सड़कें बंद हो गई, अनेक स्थानों पर पर्यटक व अनेक स्थानीय नागरिक तक बारिश में फंस गए। हर तरफ चीख है, पुकार है, सिसक है, मन में टीस है, डर है, खौफनाक मंज़र है। मीडिया के हवाले से खबरें आ रही हैं कि बहुत सी इमारतें जमींदोज हो गई हैं। स्कूल कालेज तक बंद करने पड़े हैं। बताया जा रहा है कि आपदा से राज्य में अब तक 10 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होने की आशंका है। वास्तव में इस नुकसान की भरपाई किया जाना संभव नहीं है। सच तो यह है कि विगत कुछ दिनों से हिमाचल प्रदेश में भारी वर्षा होने के कारण कमोबेश हर जगह नुकसान पहुंचा है। सच तो यह है कि भारी वर्षा के कारण शिमला, कुल्लू मनाली से लेकर हिमाचल प्रदेश के बहुत सारे हिस्सों में इसका असर हुआ है। ख़बरें बतातीं हैं कि शिमला, सोलन, किन्नौर और लाहौल स्पिति के बहुत से इलाके चपेट में आये हुए हैं।वहीं, दिल्ली में एक बार फिर यमुना के जलस्तर खतरे के निशान पर ऊपर पहुंच गया है। इससे दिल्ली के निचले इलाकों में पानी भरने लगा है। उत्तराखंड में भारी बारिश अब भी रह रहकर जारी है और इससे सड़कें जाम हो जाती हैं, जनजीवन प्रभावित होता है। सच तो यह है कि उत्तराखंड से लेकर हिमाचल प्रदेश तक पहाड़ों में बारिश कहर बरपा रही है। जानकारी देना चाहूंगा कि हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश के कारण शिमला के समर हिल, कृष्णा नगर और फागली इलाकों में भूस्खलन हुए थे। हमें यहां यह बात ध्यान में रखने की जरूरत है कि भूस्खलन से जहां जीवन की हानि, बुनियादी ढांचे का विनाश, भूमि की क्षति और प्राकृतिक संसाधनों की हानि होती है, वहीं दूसरी ओर भूस्खलन सामग्री नदियों को भी अवरुद्ध कर सकती है और बाढ़ का खतरा भी बढ़ा सकती है‌।यहां यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि हिमाचल प्रदेश में करीब 800 सड़कें अवरुद्ध हैं और 24 जून को मानसून शुरू होने के बाद से अब तक 7,200 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है। पहाड़ी क्षेत्रों में अनेक नदियां और नाले उफान पर हैं। भारी बारिश के चलते लैंडस्लाइड की घटनाएं अधिक सामने आ रही हैं, इससे पहाड़ी क्षेत्रों में सड़कें अवरूद्ध हो जातीं हैं और जीवन ठहर ठहर सा जाता है। मैदानी भागों में भी स्थिति अच्छी नहीं है। पंजाब में भी बारिश से बुरे हालात उत्पन्न हो गये हैं। दिल्ली की स्थिति भी किसी से छिपी नहीं है। यमुना ने पहले भी भय दिखाया और अब भी दिखा रही है। ऊपर बता चुका हूं कि यह खतरे के निशान से ऊपर बह रही है। पंजाब में सतलुज नदी पर भाखड़ा बांध और ब्यास नदी पर पोंग बांध अपने-अपने जलग्रहण क्षेत्रों में भारी बारिश के बाद भरे हुए हैं। मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि पंजाब में एक महीने से अधिक समय में दूसरी बार बाढ़ आई है। नौ से 11 जुलाई 2023 के बीच राज्य में हुई बारिश से पंजाब के कई हिस्से प्रभावित हुए, जिससे बड़े पैमाने पर कृषि क्षेत्रों और अन्य क्षेत्रों में पानी भर गया और जन-जीवन बुरी तरह से प्रभावित हुआ। इधर नार्थ ईस्ट में भी स्थिति कुछ अच्छी नहीं है। सच तो यह है कि असम में बाढ़ के बाद तबाही का मंजर रोंगटे खड़े करने वाला है। बताया जा रहा है कि राज्य के 6 जिलों में प्राकृतिक आपदा का सबसे ज्यादा असर हुआ है, जिससे हजारों की संख्या में लोग प्रभावित हुए हैं।धेमाजी और डिब्रूगढ़ मेंं बाढ़ का असर सबसे ज्यादा देखने को मिला है। जानकारी मिलती है कि धेमाजी, डिब्रूगढ़, डररंग, जोरहाट, गोलाघाट, और शिवसागर जिलों में 18 राजस्व सर्किलों के तहत 175 गांव बाढ़ के पानी में डूब गए हैं। बाढ़ के पानी ने जोनाई, धेमाजी, गोगामुख और सिस्सीबोरगांव राजस्व सर्किलों के तहत 44 गांवों को प्रभावित किया है। सबसे ज्यादा असर सिस्सीबोरगांव राजस्व सर्किल में हुआ है। यहां दस हजार से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने की अपील की गई है। सच तो यह है कि बारिश,बाढ़, भूस्खलन की घटनाओं ने कमोबेश संपूर्ण मानव जीवन को कहीं न कहीं प्रभावित किया है। पशु पक्षियों, जानवरों तक को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा है। अनेक जीव जंतु,अनेक पशुधन मारे गए हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में मानव निर्मित गोबिन्द सागर नामक झील में भी पानी लगातार बढ़ता जा रहा है। पानी लगभग लगभग खतरे के निशान पर पहुंच चुका है, इसलिए गेट खोले गए हैं। इधर से सतलुज और दूसरी तरफ ब्यास के पौंग डैम में भी पानी का स्तर खतरनाक सीमा पर पहुँच जाने पर इसके भी फ्लड गेट खोले गये हैं, जिसके कारण इन नदियों के साथ लगते बहुत से इलाकों में पानी घुस चुका है। बहरहाल,जानकारी देना चाहूंगा कि भारत में बंगाल, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, केरल, असम, बिहार, गुजरात, उत्तरप्रदेश, हरियाणा और पंजाब ऐसे राज्य हैं जिनमें बाढ़ का ज्यादा असर होता है। इस वर्ष तो सूखे के लिए जाना जाने वाला राजस्थान भी बाढ़ की चपेट में आ गया है। राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में घग्घर नदी में भी पानी की काफी आवक देखने को मिली। अंत में यही कहूंगा कि बाढ़, भूस्खलन, बारिश प्राकृतिक कारणों से आती है लेकिन इन सभी के मूल में कहीं न कहीं मानवीय गतिविधियों को ही शामिल किया जा सकता है। वैसे यह ठीक है कि भूस्खलन के मुख्य कारणों में क्रमशः अपक्षय या अपरदन(मिट्टी का कटाव), गुरूत्वाकर्षण, वनों का कटाव, ज्वालामुखी विस्फोट, निर्माण कार्य, जलवायु व अन्य मानवीय हस्तक्षेप आदि को शामिल किया जा सकता है लेकिन सच तो यह है कि आज मानव प्रकृति के साथ लगातार छेड़छाड़ कर रहा है और विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचा रहा है। मानव के स्वार्थ की कोई भी सीमा नहीं है और वह अपने लालच और स्वार्थ के चलते ऐसा कर रहा है लेकिन मानव को प्रकृति के संकेतों को अनदेखा नहीं करना चाहिए और प्रकृति के संकेतों यथा बाढ़, भूस्खलन, घनघोर बारिश से सबक लेना चाहिए। प्रकृति का संरक्षण करके ही मानव आगे बढ़ सकता है, बिना प्रकृति संरक्षण मनुष्य का आगे बढ़ना संभव नहीं है, क्यों कि प्रकृति का अपना एक चक्र है और मानव यदि इस चक्र को अपनी मानवीय गतिविधियों से लगातार डिस्टर्ब करता रहा तो प्रकृति कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में अपना रौद्र और भयानक रूप तो दिखाएगी ही। मानव को चाहिए कि वह विकास करे, अवश्य करे, क्यों कि यह समय की आवश्यकता भी है लेकिन प्रकृति का पूर्ण ख्याल रखें। विलियम वर्ड्सवर्थ ने अपनी एक कविता में यह बात कही है कि -‘नेचर डिड नेवर बीट्रे द हर्ट दैट लव्ड हर ‘ यानी कि प्रकृति उनके साथ कभी भी विश्वासघात नहीं करती है जो कि उसे प्यार करते हैं। अतः हमें प्रकृति के संरक्षण के महत्व को समझना चाहिए तथा पारिस्थितिक संतुलन सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। यही कहूंगा कि-‘काट काट के जंगल, प्रकृति में घोला है जहर।संसार भुगतने को तैयार रहे,मचने वाला है कहर।।’

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Deepika Sharma

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