विशेषसम्पादकीय

असर विषेश: ज्ञान गंगा”कुम्भकर्ण का नीति शास्त्र ” 

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी की कलम से

 

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी

 

वाल्मीकि रामायण की विशेषता यह है कि इसके हर चरित्र, चाहे वो श्रीराम की तरफ से हों या रावण की ओर, हर एक में कुछ न कुछ विद्वता है। सभी में ऐसा ज्ञान है जिस से बहुत कुछ जानने को मिलता है, लेकिन हमें उनके बारे में जानकारी अत्यंत कम है।

हमें उतना ही मालूम है जितना कि सिनेमा व टेलीविज़न में दिखाया गया है। ऐसा ही एक चरित्र है कुम्भकर्ण, जिसके बारे में हमें सिर्फ इतना ही मालूम है कि वो रावण का भाई था, बहुत वीर राक्षस था और वर्ष में छे माह सोया ही रहता था। उस के इतना अधिक सोने की आदत के कारण अक्सर हम आलसी लोगों को कुभ्कर्ण के नाम से भी बुला लेते हैं। वाल्मीकि रामायण को अगर हम ध्यानपूर्वक पड़ें तो हमें कुभ्कर्ण के चरित्र की अनेक विशेश्तायों के बारे में पता चल जाएगा। जब उसे रावण ने अपनी सहायता के लिए नींद से उठाया और उसे रावण द्वारा सीता का अपहरण कर लेने और हनुमान के हाथों लंका को जला देने के बारे में पता चला तो वह रावण पर अत्यंत क्रोधित हुया, उसने रावण को खूब फटकारा और उसे बहुत बुरा भला सुनाया। इसे वाल्मीकि रामायण में इस भांति दर्शाया गया है।

कुम्भकर्णकी रावण को प्रताड़ना (युध्कांड, सर्ग १२, शलोक २८,२९,३०,३१,३२,३३,३४)

 

कुम्भकर्ण रावण को सम्बोधित कर कहता है कि हे रावण, जिस प्रकार यमुना नदी इस धरती पर अवतरित होते ही अपने स्त्रोत में हुए रिक्त स्थान को भर देती है, उसी प्रकार तुम्हें चाहिये था कि आप अपने मन की बात पर (हमारे साथ) भली-भांति विचार-विमर्श तो कर लेते, विशेषतय उस समय जब तुमने क्षणिक आवेश में आकर सीता का श्रीराम की कुटिया से (जहाँ वे लक्ष्मण संग रह रहे थे) बलपूर्वक अपहरण कर लिया और उसे यहाँ ले आये। आपने यह जो सब कुछ किया है, आपके करने लायक बिलकुल भी नहीं था। ऐसा कृत्य करने से पहले आपको हम सभी के साथ मंत्रणा करनी चाहिए थी। एक शासक जो अपने राजा के कर्तव्य की पालना पूर्णतया न्याय संग करता है, जिसका दिमाग अपना लक्ष्य प्राप्ति हेतु साफ़ हो (अपने मंत्रीगणों की सलाह के साथ), उसे कभी भी पछताना नहीं पड़ता, हे रावण! ऐसे कृत्य जो उचित तरीके से न किये गए हों और जो न्याय-व्यवस्था के विरुद्ध हों, पाप की तरह और अपवित्र रस्मों की तरह होते हैं (जिनको करने के पीछे सिर्फ बुरी भावना हो)। ऐसा शासक जो अपने कर्तव्य की पालना उचित समय पर न कर के बाद में करे, और जो कार्य बाद में करने वाले थे, उन्हें पहले करे, ऐसे शासक को कतई मालूम नहीं होता कि उचित क्या है और अनुचित क्या।

अपने से बड़े व शक्तिशाली शत्रु की ताकत को देखते हुए, ऐसा शत्रु जो कि अत्यंत तत्पर हो, दूसरे लोग उसकी कमजोरियों की तलाश में रहते हैं, जैसे कि एक बत्तख क्सौंचा पर्वत को लांघने हेतु उसमें दरारों की तलाश में रहती है। ऐसी सूझबूझ जो कि पहले सोची नहीं गयी थी, उसको तुम ने भुला दिया है। यह तो तुम्हारी अच्छी किस्मत है कि श्रीराम ने अभी तक तुम्हारा वध नहीं किया है, वरना वे तुम्हें ऐसे मार देते जैसे कि विष युक्त भोजन खाने वाले को मार देता है। इसलिए, हे भ्राता, अपने शत्रुयों से जल्द ही छुटकारा पाओ। तुम्हें दुखों से निजात डलवाने हेतु मैं स्वंय तुम्हारे उस कृत्य को संभाल लूँगा जो तुम ने अपने शत्रुयों के खिलाफ छेड़ लिया है।

कुम्भकर्ण के इतना समझाने पर भी रावण ने श्रीराम के विरुद्ध युद्ध करने की अपनी हठ नहीं छोडी। श्रीराम के विरुद्ध युद्ध फलस्वरूप रावण ने अपने अनेकों पुत्र, राक्षस और मंत्रीगण खो दिए। आखिर में उसने कुम्भकर्ण को युद्ध में भाग लेने के लिए कहा। कुम्भकर्ण ने युद्ध करने से पहले अंतिम बार फिर रावण को समझाने का यत्न किया, जिसे वाल्मीकि रामायण में इस तरह से बताया गया है।

 

कुम्भकरण की रावण को अंतिम सलाह (युध्कांड सर्ग ५३, शलोक २,३,४,५,६,७,८,९,१०,११,१२,१३,१४,१५,१६,१७,१८,१९,२०,२१, 

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जिस आशंका का हमें डर था, वही होने जा रहा है। विभीक्षण व दूसरे अन्य सभासदों से विचार-विमर्श कर लेने के बाद ( तुम्हें अपने दोस्तों पर तो विश्वास ही नहीं था), जैसा भी तुम ने अंतिम निर्णय लिया है, उसके अब खतरनाक परिणाम ही सामने आयेंगे। सीता का अपहरण करने का अपराध तुमने किया है तो अब तुम्हारे इस पापी कृत्य का फल भी तुम्हें मिलेगा। हे राजन, निश्चित रूप से, तुम्हें पहले इस बात का आभास भी नहीं होगा और अपनी शक्तियों के मद में आकर तुमने इस के दुष्परिणाम के बारे भी कतई ध्यान नहीं दिया। अपनी शक्तियों के मद में चूर हो कर, जो अपना कर्तव्य पालना भूल जाता है, और उन कार्यों की और ध्यान लगाने लग पड़ता है जिन को बाद में भी किया जा सकता था, उसे इस बात के बारे में कुछ भी मालूम नहीं होता कि क्या उचित है और क्या अनुचित। ऐसे कर्म जिन्हें करते हुए समय व और स्थान की ओर ध्यान नहीं दिया जाता, उनके नतीजे उसी प्रकार घातक सिद्ध होते हैं, जैसे कि उनके करने का समय और स्थान गलत होता है। यह उसी तरह से है जिस तरह से किसी यज्ञ में ऐसी आहुति दे दी जाए जो उसे क्लुक्षित कर दे। अपने मंत्रियों से विचार-विमर्श करते समय जो राजा इन पांच बातों का ख्याल रखता है ( कोई भी कार्यवाही करने का तरीका, कार्य करने वाले लोग और उनका साज -सामान, कार्य करने का स्थान व समय, कार्य में चूक हो जाने का अंदाजा और सफलता मिल जाने की उम्मीद, और इन सभी के साथ-साथ शत्रु राजा के प्रति तीन तरह की बातों का ख्याल रखता है (बातचीत के माध्यम से शांति का हल निकालना, दवाब डालने हेतु इनाम, भेंट और हमला ), उसी राजा के बारे में ऐसा कहा जा सकता है कि वो धर्म व न्याय के मार्ग पर चल रहा है। एक राजा जो कि अपने कर्तव्य का पालन नीति अनुसार, अपने मित्रों व मंत्रियों की सलाह के साथ करता है, वो समझ-बूझ का परिचय देता है। निस्संदेह हर व्यक्ति को नेकी के मार्ग पर चलना चाहिए, सांसारिक सुख भी भोगने चाहिए, और इन्द्रियों का सुख भी महसूस करना चाहिए, अगर ऐसा न हो तो एक ही समय में इनमें से दो का सुख लेना उचित है। (शास्त्रों में ऐसा बताया बताया गया है कि प्रात: काल में नेक कार्य करने चाहिए, दुनियादारी के कार्य दिन में करने के लिए होते हैं और रात्रि का समय विलास के लिए। अगर ऐसा न हो सके तो नेक कार्य और दुनियादारी के काम सुबह किये जा सकते हैं, दुनियादारी के काम और नेकी के लिए दोपहर का समय भी उचित है और विलास व दुनियादारी रात्रि को भी की जा सकती है। लेकिन जो सारा दिन सिर्फ विलास ही में लगा रहता है वो सबसे बुरा होता है, हे राक्षस राज! ऐसा शासक जो कि नेकी के बारे में जानने के पश्चात उसे और सीखने के लिए तत्पर रहता है, ऐसी नेकी जो कि सबसे उत्तम हो, ऐसी सीख कभी भी व्यर्थ नहीं जाती। स्वंय पर नियंत्रित रखने वाला राजा, जो हमेशा अपने मंत्रियों के साथ विमर्श करने के पश्चात ही कोई निर्णय लेता है, इनाम बांटता है,दूसरों के साथ अच्छे सम्बन्ध बना कर रखता है, शत्रुयों में फूट डालने में कामयाब होता है, अपने शौर्य को साबित करता है,सबको एकत्रित कर अपने साथ लेकर चलता है, समय आने पर उचित निर्णय लेता है, और ठीक समय पर नेकी का पालन करता है और सांसारिक व इन्द्रिय सुख भोगता है, ऐसा शासक कभी भी तकलीफ का सामना नहीं करता। एक राजा को अपने मंत्रियों से विमर्श कर लेने के बाद ही सम्मान योग्य निर्णय लेने चाहिए, ऐसे मंत्रियों की सलाह से जो अपने ज्ञान व बुद्धिमता अनुसार चलते है और भीतरी जानकारी रखते हैं।

ऐसे लोग जिनका बौद्धिक स्तर जानवरों से ज्यादा नहीं होता लेकिन फिर भी उनको उच्च पद पर आसीन कर दिया जाता है, वे अपने विचार शर्मनाक तरीके से प्रगट करते हैं और वो भी बिना शास्त्रों की पूरी जानकारी के। ऐसे लोगों की सलाह, जिनको शास्त्रों का कतई ज्ञान नहीं होता उन्हें उच्च ज्ञान का अभाव होता है और वे ऐसा ज्ञान बांटते हैं जो नहीं होना चाहिए। ऐसे लोगों को विचार-विमर्श के मंच से ही दूर कर देना चाहिए जो कि सिर्फ वाहवाह लेने हेतु अधकचरी सलाह देते हैं, और वो भी अज्ञानवश। ऐसे लोग असली प्रायोजन से भटक जाते हैं. एक शासक को ऐसे मंत्रियों पर विशेष निगाह रखनी चाहिए जिन को शत्रु ने रिश्वत व भेंट वगैरह दे कर अपने साथ मिला लिया है. ऐसे मंत्री दरअसल एक तरह से आपके शत्रु ही होते हैं जबकि उनका व्यवहार मित्रों जैसा होता है जिसका समय आने पर उनके व्यवहार से पता चल जाता है। ऐसे दोस्त राजा की कमजोरी को अच्छी तरह भांप लेते हैं जो कि छलावों के झांसे में आ जाता है और जल्दबाजी में ऐसे कदम उठा लेता है जो कि उसके लिए उचित नहीं होते, ऐसे ही जैसे कि पक्षी स्कंद द्वारा किये पर्वत में किये गए छेद को ढूंढ लेते हैं। ऐसा राजा, जो अपने शत्रु की परवाह नहीं करता, दरअसल अपने आप को सुरक्षित तो रख नहीं पाता बल्कि,उसके साथ इसके विपरीत ही होता है और वो अपने स्तर से नीचे गिर जाता है.पहले भी ऐसे मौक़ों पर जो सलाह तुम्हें तुम्हारे पत्नी और मेरे भ्राता ( विभीक्षण) ने दी थी, उसको सलाम है। आप को जैसा भी उचित लगता है, वैसा ही करें।

Deepika Sharma

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