सम्पादकीय

खुला पत्र: शिमला में राष्ट्रीय पुस्तक मेला अब प्रतिवर्ष

नगर निगम चुनाव के मैनिफेस्टो में घोषणा।

 

 

एस आर हरनोट की कलम से…

किसी राजनीतिक घोषणा/संकल्प पत्र में पहली बार पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने का संकल्प। आभार हिमाचल प्रदेश कांग्रेस : रानी प्रतिभा सिंह, अध्यक्ष हिमाचल कांग्रेस, मुख्य मंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू और उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री जी।

 

शिमला नगर निगम चुनाव के लिए प्रदेश कांग्रेस ने जो संकल्प पत्र जारी किया है उसमें शिक्षा के सुदृढ़ीकरण व पुस्तकालय के अंतर्गत पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने की दृष्टि से शिमला में प्रतिवर्ष “राष्ट्रीय पुस्तक मेले के आयोजन” की बात कही गई है और साथ ही वार्डों में रीडिंग रूम, पुस्तकालय तथा बुक कैफे खोलने हेतु प्राथमिकता देने का भी संकल्प किया गया है जिसका हिमालय साहित्य संस्कृति एवं पर्यावरण मंच स्वागत करता है और प्रदेश अध्यक्ष श्रीमती प्रतिभा सिंह, मुख्यमंत्री श्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू और उप मुख्यमंत्री श्री मुकेश अग्निहोत्री के साथ मैनिफेस्टो समिति के सदस्यों का भी आभार प्रकट करता है। यह पहली बार है जब साहित्य और संस्कृति तथा पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने का संकल्प किसी पार्टी के मैनिफेस्टो में दर्ज हुआ है।

 

यहां यह लिखने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि पूर्व सरकार के कार्यकाल में हिमाचल प्रदेश में साहित्य संस्कृति हाशिए में धकेल दी गई थी जिसका सबसे बड़ा उदाहरण देश भर में ख्याति प्राप्त कर चुका शिमला बुक कैफे को लेखकों और जेल के उम्र कारावासियों से छिन कर देकेदार के हवाले किया जाना था। विडंबना देखिए आज तक वह बुक कैफे बंद पड़ा है। हमारे सुझाओं पर जो चार बुक कैफे खोले गए वे भी पूरी तरह ऑपरेशन में नहीं आए। तकरीबन पांच सौ पुस्तकें हमने शिमला बुक कैफे के लिए प्रदेश और देश भर के लेखकों से एकत्रित करके बुक कैफे में रखवाया था जिनका कोई अतापता नहीं है। शिमला बुक कैफे के खिलाफ ऐसा माहौल बनाया गया कि जेल विभाग के उम्र कैदी, जो एक अनूठा प्रयोग था, ठीक नहीं चला रहे, जब कि वही कारावासी जेल विभाग के माध्यम से हिमाचल प्रदेश सचिवालय और हिमाचल उच्च न्यायालय में बेहतरीन ढंग से फास्ट फूड कैफे चला रहे हैं। यह माहौल एक भाजपा के बड़े नेता के चहते ठेकेदार को देने के लिए बनाया गया था और उस ठेकेदार ने, हेरिटेज जोन में भी, नियमों को तक पर रख कर इस हेरिटेज कैफे को ढाबे में बदल दिया और कुछ दिनों बाद छोड़ कर चल दिया। दो साल बन रहने के बाद फिर एक चहते को इसे सौंपा गया जिसने भी यही किया और कुछ दिनों बाद भाग लिया। अब तीसरा टेंडर हुआ है। काश इसे जेल विभाग को दिया जाता तो इसकी प्रतिष्ठा पूर्व की तरह बहाल हो जाती।

WhatsApp Image 2025-08-08 at 2.49.37 PM

 

इसके अतिरिक्त उस दौरान ओकार्ड इंडिया द्वारा हिमालय मंच के साथ जो पुस्तक मेले आयोजित किए गए उसमें बार बार आमंत्रण देने पर न मुख्यमंत्री आए न कोई मंत्री। आठ और बारह करोड़ रुपए के पुस्तक घोटालों की “धूम” पूरे देश में मची रही और दिल्ली के प्रकाशकों ने इसके विरोध में विधान सभा का घेराव तक किया। उसकी जांच का क्या हुआ अब तक पता नहीं। हिमाचल अकादमी के कार्यक्रम बंद हो गए और पांच सालों में कभी कार्यकारी परिषद की बैठक तक नहीं हुई। अकादमी और शिखर सम्मानों के नामकरण राजनेताओं के नाम पर “एलॉट” कर दिए गए। लिखने पढ़ने वाले लोगों को हिमाचल में भी अर्बन नेक्सेलाइट तक के खिताब दिए गए। साहित्य और संस्कृति के प्रति यह उदासीनता चकित करती रही।

 

किसी भी सरकार के लिए शायद अब साहित्य, कला, संस्कृति, पुस्तकें आदि का कोई महत्व नहीं रह गया है जबकि ये प्रदेश और सरकार की छवि और सोच को कई मायनों में व्याख्यायित करने के साथ उसकी प्रतिबद्धता को भी दर्शाती और बनाती भी है। कांग्रेस के छः बार मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय वीरभद्र सिंह को इसीलिए साहित्य और संस्कृति प्रेमी मुख्यमंत्री कहा जाता है। प्रेम कुमार धूमल जी के कार्यकाल को भी साहित्य कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए स्मरण किया जाता है लेकिन जयराम ठाकुर जी का कार्यकाल तो इसके लिए “ध्वंस काल” के रूप में ही याद किया जाता रहेगा। जो एक दो काम हुए भी उसका श्रेय साहित्य अनुरागी और संस्कृति सचिव राकेश कंवर जी को ही जाता है और इस सरकार में भी उनकी सकारात्मक और समानता की भूमिका की पहले से ज्यादा अपेक्षाएं हैं कि वे सभी को साथ लेकर चलेंगे। 

 

विश्वास है इस घोषणा को संबंधित विभाग और नगर निगम ईमानदारी से कार्यान्वित करेंगे जिसमें हमारा पूरा सहयोग रहेगा।

 

पुनः कांग्रेस सरकार का इस बड़ी घोषणा के लिए साधुवाद।

Deepika Sharma

Related Articles

Back to top button
Close