सम्पादकीय

असर संपादकीय: बैशाखी का पर्व भारत की विविधता में एकता का प्रतीक

सहायक प्रोफेसर प्यार सिंह ठाकुर की कलम से...

 

 

बैसाखी के पर्व की शुरुआत भारत के पंजाब प्रांत से हुई और इसे रबी की फसल की कटाई शुरू होने की सफलता के रूप में मनाया जाता है।

यह पर्व भारत के अन्य प्रांतों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है और इस पर्व से नववर्ष की शुरुआत हो जाती है। पंजाब, हरियाणा में बैसाख पर्व बहुत हर्षोल्लास से मनाया जाता है और अन्य राज्यों उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों में बैसाख पर्व को अलग-अलग नामों से पुकारते हैं, भले ही नाम और पर्व मनाने की परंपरा व विधि व विश्वास भिन्न हो सकते हैं लेकिन यह पर्व कृषि प्रधान देश भारत से जुड़ा पर्व है, रबी की फसल की कटाई और नववर्ष की शुरुआत का का भी प्रतीक है। वहीं यह पर्व इतिहास की उस घटना की याद दिलाता है जब 13 अप्रैल, 1919 में ब्रिटिश साम्राज्य में जनरल डायर ने पंजाब के अमृतसर में बेकसूर और हज़ारों निहत्थे मासूम स्त्री-पुरषों और बच्चों व बूढ़ों पर गोलियां चलाई थी। यह पर्व उन लोगों की भारत की आज़ादी के लिए दी गई शहादत को भी याद करवाता है कि जुल्म के आगे कभी भी निरंकुश सत्ता बरकरार नहीं रह सकती और आखिरी सत्य की ही जीत है।

पंजाब में बैसाखी का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। भारत अनेकता में एकता का सर्वोत्तम उदाहरण है, जो हजारों वर्षों से पूरे विश्व को एकता का सन्देश देता आ रहा है। भारत सिर्फ एक शब्द नहीं बल्कि हर भारतीय की आत्मा है जो उन्हें एकता के सूत्र में बांधता है। जिसकी शान के लिए लोग अपना सब कुछ कुर्बान करने को तैयार हैं, जिसकी आजादी के लिए करोड़ों भारतीय लोगों ने खून की नदियां बहाई हैं। भारत में अनेक जातियों, धर्मों, पंथों, भाषाओं, संस्कृतियों, सभ्यताओं के लोग रहते हैं, जिनके अपने रंग, रूप, पहनावे हैं और बोलियां भले ही अलग हों, लेकिन उनकी पहचान एक भारतीय की है।यहाँ दिवाली, ईद, होली, क्रिसमस, बैसाखी किसी एक धर्म तक सीमित नहीं है।

भारत में कुछ त्यौहार ऋतुओं और मौसमों से जुड़े है तो कुछ सांस्कृतिक परंपराओं और घटनाओं से, लेकिन बैसाख का सम्बन्ध हमारी कृषि तथा भारत के अन्नदाताओं से है। भारत एक ऐसा देश जहाँ हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी ख़ुशी को मनाने के लिए त्यौहार मनाये जाते है। भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी आत्मा गाँवों में बसती है। भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ किसान धरती को माता का सम्मान देते है। किसान अपना खून पसीना एक कर अनाज उगाता है और यह त्यौहार सम्पूर्ण भारत के किसानों के लिए खुशी और उत्साह लाता है, यह वर्ष का वह दिन है जब हमें भारत की विविध संस्कृतियों की सुन्दर झलक देखने को मिलती है। हालांकि बैसाखी का त्योहार तैयार रबी की फसलों की कटाई से जुड़ा हुआ है। नए साल की पहली फसल को देख किसान फूले नहीं समाते है। देश भर के किसान बैसाखी, बोहाग बिहू, विशु, पोइला बोसाख और पुथंडू जैसे त्योहारों को बड़े जोश और उत्साह के साथ मनाकर अपनी खुशी जाहिर करते हैं। भारत के लगभग हर राज्य में किसान अपनी फसलों के साथ-साथ अपने देवी-देवताओं की पूजा करते हुए अपने-अपने लोक नृत्यों के माध्यम से अपनी खुशी व्यक्त करते हैं। पिछले कुछ दशकों के दौरान कृषि के पतन के बाद, वर्तमान केंद्र सरकार और हिमाचल सरकार कृषि को एक लाभदायक व्यवसाय बनाने के लिए कृषि में निवेश कर रही हैं और कृषि के विकास के लिए कई नए कार्यक्रम एवं योजनाएँ लेकर आई हैं और कृषि के विकास के लिए केंद्र सरकार ने कृषि विविधता विधेयक 2021 पारित किया है और हिमाचल प्रदेश सरकार प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है और किसान हित में कई सुविधाओं का प्रबंध भी कर रही है।

यदि पंजाब के ऐतिहासिक और धार्मिक संदर्भ में बैसाखी पर्व की चर्चा की जाए तो बैसाखी और सिख धर्म का अनोखा एवं अटूट सम्बन्ध है। बैसाखी सिख इतिहास का एक ऐसा पन्ना है जिनका महत्व समस्त संसार जानता है। 13 अप्रैल 1699 को खालसा का सृजन एक ऐसी ही क्रांतिकारी घटना है। 1699 में, सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने आनंदपुर साहिब में ‘खालसा पंथ’ की स्थापना की थी । खालसा का अर्थ होता है शुद्ध, अर्थात वह व्यक्ति या सत्ता जो पूरी तरह से पवित्र हो जो लूट और अत्याचार से मुक्त हो। गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना अत्याचार के खिलाफ लड़ने और समाज में बढ़ते जातिगत मतभेदों को मिटाकर लोगों को एकजुट करने के उद्देश्य से की थी। दसवें पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने पाँच प्यारों जो भारत के विभिन्न राज्यों, धर्मों और जातियों से सम्बन्ध रखते थे को अमृत पान करवाया तथा स्वयं भी अमृत पान किया। गुरुगोबिंद सिंह जी ने सिखों ने पाँच प्यारों को “सिंह” कह कर सम्बोधित किया और सच्ची लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की स्थापना की। इसी खालसा सेना ने गुरिल्ला युद्ध रणनीति से मुगल साम्राज्य की नींव हिला कर ईंट से ईंट बजा दी थी।

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सिख इतिहास में ‘गुरु दा लंगर’ की स्थापना भी इसी दिन हुई थी। वैसे तो लंगर प्रथा की शुरुआत गुरु नानक देव जी ने की थी, लेकिन इसे सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमरदास जी ने सिख धर्म का एक अनिवार्य अंग बना दिया था क्योंकि उस समय जाति के नाम पर भेद भाव हो रहा था, ऊंची जातियाँ नीची जाति के साथ भेदभाव करती थीं, इस छुआछूत को समाप्त करने के लिए उन्होंने 1539 में बैसाखी के दिन ‘संगत-पंगत-लंगर’ प्रथा शुरू करने की घोषणा की। आज सिख धर्म में लंगर का बड़ा महत्व है। पंजाब में हर जगह बैसाखी के मेले लगते हैं और उन मेलों में अटूट लंगर चलाया जाता है। खुशी के मौकों पर ही नहीं, भारत अथवा विदेश में जब भी, कहीं भी, किसी भी तरह की विपदा आती है तो सिख बिना किसी जाति, धर्म, भाषा, रंग के भेदभाव के हर जगह लंगर की सेवा प्रदान करते हैं क्योंकि गुरुओं साहिबानों ने सेवा को सर्वोच्च धर्म माना है, जिसका पालन हर सिख पूरी निष्ठां से करता है।

जलियांवाले बाग में घटित नरसंहार, ब्रिटिश साम्राज्य और गुलामी के खिलाफ भारतीयों के साझा संघर्ष का प्रतीक है। रॉल्ट एक्ट जैसे काले कानूनों के खिलाफ एकजुट होकर सभी धर्मों के हज़ारों निहत्थे लोगों ने श्री अमृतसर साहिब की पवित्र भूमि पर जुल्म के खिलाफ अपना खून बहाया था। जलियांवाला बाग की घटना उत्पीड़न के खिलाफ उस आम लड़ाई का प्रतीक है जिसने करतार सिंह सराभा, उधम सिंह और भगत सिंह जैसे शहीदों को आज़ादी के लिए लड़ने की प्रेरणा दी।

बैशाखी का त्यौहार फसल से जुड़ा हुआ है। हिमाचल प्रदेश में बैशाखी त्यौहार को अलग अलग नाम से जाना जाता है जैसे की सिरमौर में विशु, ऊपरी हिमाचल में बिशु, कांगड़ा में विसोबा और चम्बा-पांगी में लिशू नाम नाम से यह त्यौहार प्रसिद्ध है। बैसाखी के दिन हिमाचल प्रदेश के लोग अलग-अलग पवित्र झीलों में जाकर स्नान करते हैं। इस दिन मण्डी ज़िला के लोग पवित्र स्थान रिवालसर एवं पराशर झील में, बिलासपुर के लोग मारकंडा में, कांगड़ा के लोग बंगाना और शिमला के लोग तत्तापानी एवं गिरी गंगा तीर्थन स्थान में स्नान करते हैं । इस दिन शिमला और सिरमौर जिले में माला नृत्य किया जाता है।

वहीं भारत के अन्य राज्यों और कुछ पड़ोसी देशों में बोहाग बिहू बैसाख महीने के पहले दिन असम, मणिपुर, बंगाल, नेपाल, उड़ीसा, केरल और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। बोहाग बिहू के दिन किसान अपनी तैयार फसलों की कटाई शुरू करते हैं, अपनी फसलों और पशुओं की पूजा करते हैं तथा अपने देवताओं और बड़ों की पूजा-अर्चना करते है। इस शुभ अवसर पर वे आम, चिरा और पीठा जैसे विभिन्न व्यंजन तैयार करते हैं। इस दिन महिलाएं, पुरुष और बच्चें नाचते-गाते, दावत करते है तथा उपहारों का आदान-प्रदान करते है। अपने बड़ों से आशीर्वाद लेना, नए कपड़े पहनना और पारंपरिक बिहू नृत्य करना बोहाग बिहू की मुख्य विशेषता है।

केरल और कर्नाटक में इसे ‘विशु’ या ‘चिथिराई’ के रूप में मनाया जाता है। विशु को केरल में वसंत और फसल के मौसम की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। इसमें भगवान कृष्ण की नरकासुर पर विजय को भी दर्शाया गया है। विशु की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक विशु कनिका दर्शन है। इस त्योहार को देखने और मनाने वाले लोग सुबह सबसे पहले विशु कनि के दर्शन करते हैं। केरलवासियों का मानना है कि विशु कनि के केवल दर्शन मात्र से उनका पूरा साल खुशियों एवं सौभाग्य से भर जायेगा । कर्नाटक की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हिंदू धर्म के तीन सर्वोच्च देवताओं में से एक और संपूर्ण ब्रह्मांड के निर्माता, भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन दुनिया का निर्माण किया था।

बंगाली कैलेंडर के अनुसार इस दिन पोइला बोसाख पर्व मनाया जाता है। इस दिन बंगाली पिछले साल की फसल की कटाई और नए साल में आने वाली फसल के लिए ईश्वर को धन्यवाद देते हैं। यह बंगाली व्यापार के लिए भी एक महत्वपूर्ण दिन है, क्योंकि इस दिन, व्यापारी नए बही खाते खोलकर नए लेखा वर्ष की शुरुआत करते हैं।

इस दिन ओडिशा के लोग भी अपना नववर्ष मनाते हैं, इसे महा बिशुव संक्रांति या पाना संक्रांति कहते हैं। यह पर्व शिव, शक्ति या हनुमान मंदिरों में पूजा-अर्चना कर मनाया जाता है।

हमारे पर्व हमारी भारतीय संस्कृति, परम्पराओं, मान्यताओं, सभ्यता तथा लोगों की एकता का प्रतीक है। पर्व प्रत्येक भारतीय को ऊँच-नीच, अमीर-गरीब, जाति-धर्म से ऊपर उठ कर एक दूसरे से जुड़ने, उनकी संस्कृतियों और रीती-रिवाज़ों का हिस्सा बनने का मौका देते है। जिससे आपसी वैर, ईर्ष्या, द्वेषकी भावना का नाश होता है। इन्ही पर्वों ने सदियों से भारतीयों को एकता के सूत्र में बांध कर रखा है। अनेक बाहरी शक्तियों ने कई बार भारत को धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक रूप में नुक्सान पहुंचने की कोशिश की है लेकिन वे भारतीयों की अखंड एकता को हानि नहीं पंहुचा सके। भारत की विविधता में एकता ही इसकी सबसे बड़ी ताकत है जो भारतीयों में देशप्रेम, भाईचारे और एकता को मज़बूत बनाती है तथा बाहरी शक्तियों को यह यह सन्देश देती है कि भारत अखंड था और हमेशा रहेगा।

Deepika Sharma

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