
अभी हाल में ही हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा नई दिल्ली स्थित हिमाचल भवन को कुर्क करने के आदेश और हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम के 18 होटलों को बंद करने के आदेश दिए हैं, ने प्रदेश के आर्थिक हालात पर चर्चा करने पर विवश कर दिया है । संसाधनों से भरपूर इस छोटे से पहाड़ी प्रदेश में अरूणाचल प्रदेश के बाद देश में दूसरे नंबर पर 1.71 लाख प्रति व्यक्ति ऋण है । ये हिला देने वाले आंकड़े किन से सवाल पूछे? हिमाचल निर्माता कहे जाने वाले डॉ. यशवंत सिंह परमार के सपनों का पहाड़ी प्रदेश कभी 90 हज़ार करोड़ के कर्ज के डूब जाएगा उन्होंने इसकी कल्पना भी नहीं की होगी । वे ऐसे व्यक्तित्व थे खुद कम संसाधनों में रहकर प्रदेश के लिए अधिक से अधिक संसाधन जुटाने में विश्वास करते थे लेकिन दुर्भाग्यवश कोई भी राजनैतिक पार्टी उनके विजन को 100 प्रतिशत धरातल पर उतार नहीं पाई । बेशक प्रदेश में बहुत तरक्की की लेकिन उस विकास का आधार बढ़ता हुआ कर्ज होगा, इसको की भी प्रदेशवासी स्वीकार नहीं कर सकता ।
कई प्रदेश सरकारे आई, सभी ने अपने विकास का मॉडल घोषणापत्र के माध्यम से जनता के सामने रखा और जनता के भी उन घोषणाओं के आधार पर राजनैतिक पार्टियों को सत्ता की बागडोर सौंपी । लेकिन इस पूरे सिस्टम में प्रलोभित नीतियों का रूपान्तरण किस आधार पर होगा ? देश की दूसरे नंबर पर शिक्षित आबादी ने कभी गौर ही नहीं किया । पिछले कुछ सालों से प्रदेश मेंपनपती फ्री संस्कृति ने शायद जनता का मुंह ही बंद कर दिया । महिला वर्ग जो हर राज्य की राजनीतिक पार्टियों का सबसे बड़ा वोट बैंक होता है उनके लिए भी प्रदेश में अन्य राज्यों की तरह लगभग 5 लाख महिलाओं के लिए 1500 रूपये प्रति महीना और प्रदेश के लगभग 3000 सरकारी रोडवेज बसों में 50 प्रतिशत किराया निःशुल्क किया गाय है । जिसके कारण सरकार पर हज़ारों करोड़ रूपये का बोझ पड़ चुका है । ये कैसी सामाजिक कल्याण की योजनाएँ है जो एक तरफ राहत तो दूसरी तरफ अप्रत्यक्ष तौर पर महिला वर्ग को भई ऋण के बोझ की तरफ धकेल रही है । इन परिस्थितियों में तो महिलाओं का स्वयं गे आकर अनैतिक योजनाओं का बहिष्कार कर एक मिसाल कायम करनी चाहिए । वहीं दूसरी ओर प्रदेश में बढ़ती बिजली, सबसिडी और वीवीआईटी संस्कृति ने अर्थ की बोझ को बहाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है ।
वर्तमान में प्रदेश के बजट का विश्लेषण किया जाए तो 100 रूपये में से 26 रूपये सरकारी कर्मचारियों के वेतन, 16 रूपये पेंशन, 10 रूपये ब्याज की अदायगी पर, 10 रूपये लोन के भुगतान पर, 9 रुपये स्वायत्त संस्थाओं की ग्रांट पर और 29 रुपये अन्य सामाजिक न्याय की योजनाओं पर खर्च किया जा रहा है । इन योजनाओं में धरातल पर नैतिक और अनैतिक वर्गीकरण करना बहुत ज़रूरी है । सतासीन पार्टी की महत्वपूर्ण योजना ओल्ड पेंशन स्कीम के तहत सरकार पर अतिरिक्त पड़ने वाले 10 हजार करोड़ रुपये के बोझ को सहन करने का धन कहाँ से आयेगा? इसका विवरण भी ज़रूर बजट में किया जाना चाहिए था क्योंकि पिछले वित्तीय वर्ष में सरकार पहले से ही वेतन, पेंशन और ब्याज अदायगी पर कुल खर्च का 46.3 प्रतिशत खर्च कर रही है । ये बात तो तय है कि सामाजिक कल्याण व आर्थिकी सुरक्षा प्रदान करना हर सरकार का कर्तव्य है लेकिन घोषणाओं के साथ-साथ खर्च व आय की पादर्शिता सुनिश्चित करना भी सरकार का काम है ।
वहीं दूसरी ओर केन्द्रीय सरकार अन्य राज्यों के समान प्रदेश का राजस्व घाटा कम कर रही है । पीआरएस विधान अनुसंधान की रिपोर्ट के मुताबिक 2024 में प्रदेश का 8058 करोड़ का राजस्व घाटा 2026 तक 3 हज़ार करोड़ तक कम कर सकती है । जिसके पीछे केन्द्रिय सरकार की दलील है कि राज्य वित्तीय स्वास्थ्य बेहतर करने और ऋण बोझ को कम करना उसकी प्राथमिकता है । क्योंकि प्रदेश सरकार द्वारा ही इस वित्तीय वर्ष में कुल जीडीपी का 42.5% ऋण अनुमानित किया गया है जो 15वें वित आयोग द्वारा प्रस्तावित 36 प्रतिशत टारगेट से काफी अधिक है । इस परिस्थिति में कोई भी निवेशक प्रदेश में निवेश के लिए पुलोभित नहीं हो सकता, चाहे सरकार कोई भी दावा करे । हालांकि सतासीन सरकार का कहना है कि केन्द्र सरकार द्वारा मानसून में हुई भारी तबाही के तहत आंपदा राहत कोष की 9000 करोड़ की राशि, केन्द्र सरकार के पास पड़े पेंशन रेगुलेटरी फंड में प्रदेश सरकार के 9200 करोड़, ग्रीन फण्ड और जीएसटी के तहत करोड़ो बकाया राशि उपलब्ध नहीं करवाई गई है । लेकिन आरोप व प्रव्यारोप में फण्ड की राजनीति में सबसे ज्यादा नुकसान आम जनता का और प्रदेश की छवि का हो रहा है । इसकी जवाबदेही सरकार को ही लेनी पड़ेगी । क्योंकि बकाया राशि के दम पर लोक लुभानी घोषणाएँ नहीं की जा सकती । सत्ता में आने वाली कोई भी सरकार जितना जल्दी समझ जाए, उतना ही अच्छा ।
इस परिस्थिति में सबसे पहले सरकार को संभव हो सके तो अमेरिका अगले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की घोषणा की तर्ज पर डिर्पाटमैंट ऑफ गवर्मेंट एफिशियंसी (डॉज) की स्थापना करनी चाहे । जिसके अंतर्गत भ्रष्टाचार, पारदर्शिता, अतिरिक्त नियमों को कम करने, व्यर्थ व्यय में कटौती करने और सरकारी कामों में पारदर्शिता लाने का काम करना चाहिए । वर्तमान की परिस्थितियों में सरकार को तुरंत प्रभाव से स्वच्छ छवि वाले कुशल अधिकारियों एवं राजनैतिज्ञ नहीं बल्कि टेक्नोक्रेट व्यक्तियों के टीम की आवश्यकता है । जनता भी लोकलुभावनी स्वप्नदर्शी नीतियों से बाहर निकलकर प्रदेश के हित में सांमजस्य बिठाए । तभी प्रदेश की आर्थिक तौर पर धूमिल हो रही छवि को संवारा जा सकता है ।




