विशेषसम्पादकीय

असर विशेष: भृतहरि के ज्ञान सूत्र (7) धन की अहमियत

रिटायर्ड मेजर जनरल ए के शौरी की कलम से

रिटायर्ड मेजर जनरल एक शौरी

सारी योग्यताएँ नरक में चली जाएँ, सारे सांस्कृतिक मूल्य ख़त्म हो जाएँ, नैतिकता ख़त्म हो जाए, घर की इज्जत, मान-प्रतिष्ठा जाए भाड़ में, मुझे तो बस एक ही बात की चिंता है कि मुझे सिर्फ धन-दौलत ही मिले। समाज को बर्बाद होने दो, लोगों को कष्ट सहने दो, बाद में घोटाले होने दो, पैसा ही एकमात्र ऐसी चीज है जिसका महत्व है। पर्यावरण को नष्ट होने दीजिए, भूकंप और बाढ़ आने दीजिए, केवल पैसा ही मायने रखता है, ये लोगों की सोच है। ऐसे व्यक्ति को आजकल प्रतिष्ठित व्यक्ति माना जाता है, जिसके पास खूब पैसा हो। परिवार, जनजाति, समृद्ध परंपराएं तब तक अर्थहीन हैं जब तक किसी के पास पैसा न हो। बड़ी संख्या में लोग वैसे तो अनपढ़ होंगे लेकिन अगर उनके पास पैसा है तो लोग उनकी बात बहुत ध्यान से सुनते हैं। यदि व्यक्ति के पास धन है तो वह, चतुर, बुद्धिमान और आकर्षक माना जायेगा। यह पैसे का चलन और मूल्य है और यह एक वास्तविकता है जिसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। 

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भृर्तहरि आगे बताते हैं यदि राजा अपने मंत्रियों की गलत सलाह का पालन करने लगे तो शक्तिशाली राजाओं का साम्राज्य समाप्त हो जाता है। उसे दी गई गलत सलाह अंततः राजा को विनाश के रास्ते पर ले जाती है। जो साधक सांसारिक इच्छाओं से दूर हो गया है वह भी आकर्षण में फंसकर भ्रष्ट हो जाता है। यदि पुत्र को ज़रूरत से अधिक प्यार और लाड प्यार दिया जाए तो वह भी बिगड़ जाता है। एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी भ्रष्ट हो जाता है यदि वह अपने मार्ग से भटक जाता है। एक बुरा पुत्र अपने कुकर्मों से अपने पूरे परिवार को नष्ट कर देता है। एक सज्जन और सौम्य व्यक्ति भी अपने जैसे व्यक्तियों की संगति से दूर हो जाता है तो वह भी भटक जाता है। यदि कोई अत्यधिक शराब पीता है तो वह अपने स्वास्थ्य व् धन को एक समान नष्ट कर देता है, यदि मित्रों के बीच प्रेम और स्नेह नहीं है तो उनकी मित्रता भी खराब हो जाती है, गलत नीतियों और खराब निर्णयों के कारण राज्य भी पतन की स्थिति में पहुंच जाता है और इसी प्रकार, प्फिज़ूलखर्ची और लापरवाह रवैये से धन भी कम हो जाता है।

जिस व्यक्ति को अपने दैनिक जीवन में मुश्किल से दो वक्त की रोटी मिल पाती हो, वही व्यक्ति जब धनवान और साधन संपन्न हो जाता है तो दूसरों को तुच्छ समझना शुरू कर देता है। अमीर और संपन्न व्यक्तियों द्वारा मूल्यांकित मूल्य के अनुसार वस्तुओं और चीजों का मूल्य बढ़ता भी है और घटता भी है। दूसरे शब्दों में, संपूर्ण आर्थिक व्यवस्था अमीरों और इसे नियंत्रित करने वाले अमीर लोगों द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित की जाती है। इसलिए राजा को अपनी प्रजा के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसे गाय अपने बच्चों की देखभाल करती है। यदि राजा अपनी प्रजा की इस प्रकार देखभाल करता है तो वे भी उसी प्रकार से प्रत्युत्तर देते हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनका राजा और उसका राज्य समृद्धि से समृद्ध हो।

Deepika Sharma

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