रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी
यक्ष द्वारा पूछे जा रहे सभी प्रश्नों का युधिष्ठिर बहुत ही धैर्य और आत्मविश्वास के साथ उत्तर दे रहे थे। यक्ष ने अपने प्रश्नों की सूची जारी रखी और आगे युधिष्ठिर से पूछा – “अभिमान क्या है, और पाखंड क्या है? देवताओं की कृपा क्या है, और दुष्टता क्या है?” युधिष्ठिर ने उत्तर दिया, – “स्थिर अज्ञान अभिमान है। धार्मिक मानक स्थापित करना पाखंड है। देवताओं की कृपा हमारे उपहारों का फल है, और दुष्टता में दूसरों की बुराई करना शामिल है। आइए इसे समझने की कोशिश करते हैं।
जब युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि स्थिर ज्ञान ही अभिमान है तो इसका अर्थ यह हुआ कि जो व्यक्ति यह अनुभव करता है कि उसे अपने ज्ञान को बढ़ाने की आवश्यकता नहीं है और वह यह अनुभव करने लगता है कि वह प्रत्येक वस्तु के बारे, हर तरह के विषय के बारे में जानता है, तो वास्तव में इसका अर्थ है कि वह कुछ नहीं जानता है और वह अपने बारे में ही भ्रम में है। ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती, यह एक सतत प्रक्रिया है। यहां तक कि न्यूटन ने भी एक बार कहा था कि ज्ञान एक विशाल महासागर है और वह सिर्फ इसके किनारे पर बैठकर कंकड़ और सीपियाँ ही बटोर रहा है। आइए हम इसे आधुनिक समय में देखने की कोशिश करें। पहले भी एक लेख में मैंने उल्लेख किया था कि ज्ञान असीमित श्रेणी का होता है और एक दुर्लभ प्रकार की वस्तु है जिसे किसी भी कट शार्ट रास्ते या तरीके से प्राप्त या हासिल नहीं किया जा सकता है। आम तौर पर लोग नौकरी पाने के लिए अध्ययन करते हैं और एक बार जब उन्हें नौकरी मिल जाती है या वे अपने खुद के व्यवसाय के लिए भी अध्ययन करते हैं, तो सामान्य तौर पर वे अपने ज्ञान के स्तर को बढ़ाने पर एक किस्म का अर्ध विराम सा लगा लेते हैं। उन्हें जो भी अतिरिक्त ज्ञान मिलता है, वह उनके अनुभव से ही प्राप्त होता है और उनका जीवन और काम का अनुभव भी संकीर्ण दायरे में ही सिमट कर रह जाता है। अब तक उन्होंने अपने स्कूलों और कालेजों में जो कुछ भी पढ़ा या सीखा होता है, वह ज्यादातर केवल परीक्षाओं को पास करने के लिए है और उनके व्यक्तिगत ज्ञान का स्तर हमेशा बहुत सीमित और सुकड़ा होता है. वह भी अध्ययन के बाद, पारिवारिक जिम्मेदारियों में उलझ कर काफी हद तक बे मानी हो जाता है। वास्तव में अपने ज्ञान के स्तर को बढ़ाने के लिए, उन्हें कठोर अध्ययन करने की आवश्यकता होती है, खुद को किसी जुनूनी शौक में शामिल करने, प्रतिष्ठित लोगों के साथ बातचीत करने की आवश्यकता होती है, जो कि वे कई मजबूरियों के कारण ऐसा करने में विफल रहते हैं। आधुनिक समय में नवीनतम तकनीक और हाथों में तेज प्रक्रिया आधारित मोबाइल के कारण हम ज्ञान प्राप्त करने के लिए छोटे-छोटे तरीके अपनाते हैं और खुद को बहुत अधिक प्रबुद्ध महसूस करते हैं, जो ऐसा नहीं है। जब युधिष्ठर ऐसा कहते हैं कि दुष्टता में दूसरों की बुराई करना शामिल है तो ऐसा हम अपने दैनिक जीवन में अक्सर करते रहते हैं और इसी में अपना समय भी नष्ट कर देते है और दूसरों में उनकी कमियां निकालने से हम अपने आप को बहुत चालाक समझते हैं, जो कि एक भ्रम की बात है।