
रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी
यक्ष प्र्शन – 11
विद्वान और नास्तिक
प्रश्नों की झड़ी को आगे बढ़ाते हुए यक्ष ने युधिष्ठिर से अगले प्रश्न पूछे। यक्ष ने पूछा, “ऋषियों ने दृढ़ता, स्थिरता को क्या कहा है?” वास्तविक स्नान क्या है? दान क्या है?” युधिष्ठिर ने उत्तर दिया, – स्थिरता अपने धर्म में रहने में निहित और सत्य है. इन्द्रियों को वश में करना ही धैर्य है। एक सच्चे स्नान में धुलाई होती है मन की जो सभी अशुद्धियों से मुक्त हो जाता है, और दान में सभी प्राणियों की रक्षा होती है। यक्ष ने पूछा, – “किस आदमी को विद्वान माना जाना चाहिए, और किसे नास्तिक कहा जाता है? अज्ञानी भी किसे कहा जाए? युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि विद्वान कहलाता है जो अपने कर्तव्यों को जानता है। नास्तिक वह है जो अज्ञानी है और इसलिए भी वह अज्ञानी है जो नास्तिक है।
आइए इन उत्तरों में छिपे गहरे अर्थ को समझने की कोशिश करते है। स्थिरता अपने धर्म में रहने में निहित और सत्य तथा अपनी इन्द्रियों को वश में करना धैर्य एक बहुत बड़ी बात है। अपने धर्म में रहने का अर्थ अपनी उन विशेषताओं के प्रति प्रतिबद्ध रहना है, जिन की परिधि में रहते हुए मनुष्य अपने कर्म करता है। इन्द्रियों को अपने वश में करने से तात्पर्य है
कि अपने मन की चंचलता को, वासनाओं को, लालसाओं को लगाम लगा कर रखना। यह आसान नहीं है लेकिन उचित शिक्षा, परंपरा और उपयुक्त परिवेश के साथ इन्हें भी विकसित किया जा सकता है। एक सच्चे स्नान में धुलाई होती है मन क। शरीर की सफाई से भी अधिक आवश्यक है मन की सफाई करना। जिस तरह से एक कंप्यूटर से पुरानी , गैर ज़रूरी व् अवांछित फाइलों को डिलीट कर दिया जाता है ताकि उससे कचरा निकल जाये और उसकी गति व कुशलता बेहतर हो जाए, उसी तरह से मन का स्नान ही सच्चा स्नान होता है, जिसमें मन में पड़े, छिपे संक्रीन विचारों को हटा कर सुविचार व् तर्कसंगत विचारधारा का परवाह हो सके. जब युधिष्ठिर कहते हैं कि दान में सभी प्राणियों की रक्षा होती है तो उन के कहने का अर्थ है कि किसी भी निर्बल, लाचार व मजबूर की मदद करना ही दान कहा जाता है, जो कि किसी भी तरह से हो लेकिन उसका उदेशय सहायता करना हो न कि पाप- पुण्य की आशा रखना। जब युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि विद्वान वो मनुष्य कहलाता है जो अपने कर्तव्यों को जानता है तो यह इस बात की और इशारा करता है कि अपने अधिकारों के मुकाबले कर्तव्यों की कितनी महत्ता है। अर्थात, दूसरों के लिए अपने फ़र्ज़ क्या है, और उनको पूरा करना बहुत बड़ा है इसके मुकाबले कि दूसरे हमारे लिए क्या कर रहे है या कर सकते हैं. और नास्तिक वह है जो अज्ञानी है यानी नास्तिक वो नहीं जो कि ईश्वर में विश्वास नहीं रखता, बल्कि नास्तिक वो हैं जिसने मनुष्य हो कर, एक चेतन दिमाग के होते हुए भी, स्वयं को अज्ञानता के अँधेरे में ढँक कर रखा हुया है।

